तुम्हारी कहानी, तुम्हें ही पता है
जीवन के हर मोड़ पर, लोगों की राय मिलना स्वाभाविक है।
कभी कोई तारीफ़ करेगा, तो कोई आलोचना। कोई तुम्हारे निर्णय को सराहेगा, तो कोई उसे ग़लत ठहराएगा। लेकिन क्या कोई तुम्हारी आँखों से दुनिया देख सकता है? क्या कोई तुम्हारे मन के दर्द, संघर्ष और स्थितियों को उतनी ही गहराई से समझ सकता है जितनी तुमने उन्हें जिया है?
सच तो यह है कि लोग वही देखते हैं जो बाहर दिखता है,
पर जो भीतर चलता है – वो सिर्फ़ तुम्हें पता है। तुम्हारे आर्थिक हालात, पारिवारिक जिम्मेदारियाँ, मानसिक द्वंद्व, सपनों की लड़ाई और आत्मबल की परीक्षा – ये सब तुम्हारा व्यक्तिगत सत्य है, जिसे दूसरों की नज़रों से आँका नहीं जा सकता।
अगर तुम हर किसी की बातों को महत्व देने लगो, तो अपने आप से दूर हो जाओगे।
हर कोई तुम्हारा मार्गदर्शक नहीं होता – कई बार लोग तुम्हें अपनी अधूरी समझ से तोलते हैं। वे तुम्हारी उस 'कहानी' के सिर्फ एक-दो 'पृष्ठ' पढ़कर पूरा 'निष्कर्ष' सुना देते हैं।
पर जीवन कोई खुली किताब नहीं,
यह तो भावनाओं, अनुभवों और परिस्थितियों से बुनी गई आत्मगाथा है – जिसे सिर्फ़ तुम ही समझ सकते हो।
इसलिए...
- जब कोई तुम्हारे संघर्षों को नहीं समझे, तो मुस्कुरा दो – क्योंकि तुम्हें पता है, तुम कितनी दूर से आए हो।
- जब कोई तुम्हारे निर्णयों पर सवाल उठाए, तो शांत रहो – क्योंकि उन्हें नहीं मालूम कि तुम्हारे पास क्या विकल्प थे।
- जब कोई तुम्हें गिराने की कोशिश करे, तो उठ खड़े होओ – क्योंकि तुम्हारा आत्मबल तुम्हारा सबसे बड़ा मित्र है।
अपने जीवन की डोर अपने हाथों में रखो।
लोगों की राय, हवा की तरह बदलती रहती है। लेकिन जो तुम्हारा 'सच' है, वो अडिग रहता है – जैसे कोई पहाड़, जो आँधी-तूफान में भी अपनी जगह पर डटा रहता है।
खुद पर भरोसा रखो, क्योंकि अंततः तुम्हें ही अपने रास्ते तय करने हैं।
हर सुबह जब तुम आईने में अपनी आँखों में झाँको, तो खुद से कहो –
"मुझे पता है मैं क्या कर रहा हूँ, और क्यों कर रहा हूँ। बाकी सब… शोर है।"
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