प्राचीन ज्ञान: आपकी ख़ुशी का रहस्य
~ आनंद किशोर मेहता
सच्ची ख़ुशी कहाँ है?
क्या यह दौलत, प्रसिद्धि या भौतिक सुखों में है? प्राचीन ऋषियों, संतों और महापुरुषों ने इस प्रश्न का उत्तर हज़ारों वर्ष पहले दिया — और वह उत्तर आज भी उतना ही प्रासंगिक है।
प्राचीन ज्ञान कहता है कि ख़ुशी बाहर नहीं, आपके भीतर है।
जब मन शांत होता है, विचार पवित्र होते हैं, और जीवन का उद्देश्य केवल अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के कल्याण के लिए होता है — तब आत्मा मुस्कुराने लगती है।
वेदों, उपनिषदों और भगवद्गीता जैसे ग्रंथों में यह स्पष्ट कहा गया है —
"आत्मा की प्रसन्नता ही परम सुख है।"
बुद्ध, महावीर, ईसा मसीह, और कबीर जैसे महापुरुषों ने भी यही सिखाया —
“जिसने अपने भीतर झाँका, उसने अमूल्य ख़ज़ाना पाया।”
प्राचीन ज्ञान की शिक्षाएँ:
- अहंकार छोड़ो, विनम्र बनो
- क्रोध पर नियंत्रण रखो, प्रेम से प्रतिक्रिया दो
- सत्य, करुणा और सेवा को जीवन का आधार बनाओ
- ध्यान और आत्मनिरीक्षण से अपनी आत्मा की आवाज़ सुनो
जब हम इन मूल्यों को अपनाते हैं, तो एक अद्भुत आंतरिक शांति और आनंद प्रकट होता है — जिसे कोई बाहरी वस्तु नहीं दे सकती।
आज की भागदौड़ भरी दुनिया में, यह प्राचीन ज्ञान हमें याद दिलाता है कि —
“ख़ुशी कोई मंज़िल नहीं, बल्कि एक यात्रा है — जो आत्मज्ञान से शुरू होती है।”
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