📖 संस्कारों की ज्योतिर्मय धारा (एक काव्य-संग्रह)
"संस्कार, प्रेम और अनुशासन की ऊर्जा से जीवन को नवचेतना देने वाला सृजनात्मक काव्य-संग्रह!"
🌿 रा धा / ध : स्व आ मी 🌿
("शब्दों की इस दिव्य आभा में खोकर, प्रेम, सेवा और कर्तव्य की गहराइयों को महसूस करें।")
🌿 आभार एवं समर्पण 🌿
यह काव्य-संग्रह "संस्कारों की ज्योतिर्मय धारा" सम्पूर्ण श्रद्धा, प्रेम और समर्पण के साथ परमपिता रा धा/ध: स्व आ मी दाता दयाल के पावन चरणों में समर्पित है। उनकी अनंत कृपा, मार्गदर्शन और दिव्य आशीर्वाद से ही यह सृजन संभव हुआ।
विशेष आभार
➤ सतसंगी परिवार – जिनकी संगति, प्रेरणा और आशीर्वाद इस काव्य यात्रा की संजीवनी बनी।
➤ हमारे विद्यालय के नन्हे दीपक – जिनके संस्कार, जिज्ञासा और पवित्र हृदय इस सेवा को और अधिक सार्थक बनाते हैं।
➤ अर्धांगिनी संजू रानी एवं शांतिमय संतति – जिनका प्रेम, धैर्य और अटूट विश्वास मेरी निरंतर प्रेरणा का स्रोत रहा।
🌸 यह काव्य-संग्रह मात्र शब्दों का संकलन नहीं, बल्कि मालिक की असीम दया-मेहर और सभी के स्नेह का प्रकाश है। 🌸
सप्रेम रा धा / ध : स्व आ मी एवं कोटिशः आभार! 🙏
"संस्कारों की ज्योतिर्मय धारा"
"संस्कार ही जीवन की सबसे मूल्यवान पूँजी हैं, जो हमें सच्चे आनंद, प्रेम और अनुशासन से जोड़ते हैं।"
"संस्कारों की ज्योतिर्मय धारा" केवल एक काव्य-संग्रह नहीं, बल्कि एक दिव्य प्रकाश है, जो हृदय को प्रेम, आत्मिक शांति और जीवन के सच्चे अर्थों से आलोकित करता है। यह पुस्तक उन हृदयों तक पहुँचे, जो सत्य, सेवा और आत्मबोध की खोज में हैं।
इस संग्रह का उद्देश्य केवल साहित्यिक आनंद देना नहीं, बल्कि संस्कार, प्रेम और आत्मिक चेतना को जागृत करना है। इसके प्रत्येक शब्द में आत्मविकास की ऊर्जा, प्रेम की मिठास और जीवन के सच्चे मूल्यों की झलक समाई हुई है।
📖 सप्रेम,
✍ लेखक: आनंद किशोर मेहता (Creator)
📅 प्रकाशन वर्ष: 2025
© कॉपीराइट: आनंद किशोर मेहता
कविताएं:
1. संस्कारों की ज्योतिर्मय धारा
लेखक: आनंद किशोर मेहता
संस्कारों की ज्योति जले,
अंधकार से लड़कर दीप बने।
प्रेम, करुणा, सेवा लेकर,
मानवता के पथ पर चले।
निज आचरण शुभ्र गगन सा,
मन हो निर्मल, जल सम बहता।
प्रेम सुधा की धारा बनकर,
हर अंतर को निर्मल करता।
संस्कारों की पावन गंगा,
अविरल बहती हर युग में।
जिसने छू ली इसकी धारा,
वो जगमग करता अंबर में।
कर्तव्य, तप, त्याग की मूरत,
संस्कारों का अद्भुत नर्तन।
हर पीढ़ी में ज्योति जलाए,
बने सृजन का पावन स्पंदन।
इस पावन धारा का हर कण,
ज्ञान-प्रकाश से दमक रहा।
यह अंधकार को दूर भगाए,
जग को नई राह दिखा रहा।
चलो मिलकर दीप जलाएं,
संस्कारों की लौ बढ़ाएं।
प्रेम, अनुशासन, सेवा लेकर,
विश्व को नवचेतना दिलाएं।
संस्कारों की रोशनी से जगमगाते रहें, अच्छाई की राह पर बढ़ते रहें!
2. अनुशासन का प्रकाश
लेखक: आनंद किशोर मेहता
ज्ञान का दीप जले सदा, जब हो उसमें संस्कार,
साहस, धैर्य, अनुशासन से, होते है हर सपने साकार ।
विद्यालय के आंगन में खिल रहा, एक बालक प्रतिभावान,
पर घर में था अनुशासन हीन, करता माँ-बाप को परेशान।
टीवी के आगे बैठा रहता, करता अपनी मनमानी,
पढ़ाई से अब दूर हो रहा, शैतानी की हद पहचानी।
माता-पिता व्यथित मन से, पहुँचे गुरुजी के पास।
शिक्षक विचारमग्न हो, सोच रहे थे, कैसे होगा परिवर्तन?
एक दिवस वह बढ़ गया, अनुशासन से बाहर,
शिक्षक ने हल्की छड़ी रखी, ताकि सुधरे उसका भविष्य।
पर इस पर माँ-बाप भड़क गए, विद्यालय में मचाया शोर,
एफआईआर की धमकी देकर, शिक्षक को किया कमजोर।
पर शिक्षक ने धैर्य रखा, और पहुँचे घर उसी शाम,
समझाया उन्हें प्रेम से, संस्कार ही है जीवन का सार।
विद्या का दीप जलता है, जब अनुशासन साथ चले,
यदि घर और स्कूल समन्वय करें, तो हर बच्चा आगे बढ़े।
माता-पिता ने समझ लिया, शिक्षक की यह गूढ़ बात,
अब वे भी देने लगे ध्यान, बालक की सुधरी हर बात।
बालक ने भी यह सीखा, शिक्षा केवल ज्ञान नहीं,
संस्कार और अनुशासन से, बनती है जीवन की जमीं।
अब वह बना अनुशासित, घर-विद्यालय एक समान,
ज्ञान के संग संस्कार लेकर, बढ़ा सफलता की ओर महान।
3. विद्यालय प्रार्थना
लेखक: आनंद किशोर मेहता
हे परम पिता, दाता दयाल!
हममें भर दो ज्ञान की ज्योत।
सत्य, प्रेम, विनम्रता का संग,
हर हृदय बने निर्मल और स्वच्छ।
न हो हममें अहंकार कहीं,
बस सेवा का दीप जले यहीं।
तेरी राह पर बढ़ते जाएँ,
हर अंधकार को दूर भगाएँ।
शिक्षा बने हमारी साधना,
संस्कारों से हो मन रोशन।
करें शुक्राना बारंबार,
हर दिशा में गूँजे गुणगान।
हममें ऐसा तेज भर दो,
मानवता के पथ पर बढ़ते चलें।
तेरे चरणों में दृढ़ विश्वास रहे,
तेरी दया-मेहर से जीवन सँवरे।
हे परम पिता ज्ञान के सागर,
सेवा में समर्पण का स्वर दो।
हर क्षण तेरा नाम जपें,
तेरी राह पर सदा चलूं ।
4. ज्ञान दीप का प्रहरी
लेखक: आनंद किशोर मेहता
मैं उजियारा बन फैल जाऊँ,
अंधकार को दूर भगाऊँ।
ज्ञान की किरणें बिखर-बिखर कर,
हर मन को आलोकित कर जाऊँ।
मेरा कर्तव्य, मेरा अरमान,
बच्चों का हो उज्ज्वल भविष्य।
न चाहूँ मैं जग की स्वीकृति,
बस बने वे आत्म-निर्भर महान।
न कोई चाह, न कोई गिला,
बस कर्म-पथ पर बढ़ता चला।
समाज माने या ठुकराए,
सच्चाई की लौ मैं जलाता चला।
मेरी मेहनत रंग लाएगी,
हर मन में जोत जलाएगी।
समय स्वयं साक्षी बोलेगा,
गुरु की तपस्या रंग लाएगी।
मुझे न पद, न धन की इच्छा,
न ही जग की कोई अपेक्षा।
बस चाहता हूँ यह संसार,
बने उज्ज्वल, बने साकार।
मेरा कर्म, मेरी आराधना,
बच्चों का उत्थान ही साधना।
ज्ञान दीप मैं जलाए जाऊँ,
हर मन में प्रेरणा जगाऊँ।
"मैं अब मान्यता की परवाह नहीं करता, क्योंकि सत्य को सिद्ध करने के लिए समय स्वयं सबसे बड़ा प्रमाण है। मैं केवल कर्म करता हूँ, क्योंकि यही मेरा धर्म और मेरी साधना है।"
5. सही दिशा की ओर
लेखक: आनंद किशोर मेहता
राह कठिन हो, धैर्य धरो, विश्वास से आगे बढ़ना,
छोटी-छोटी बातों को छोड़, मानवता का दीप जलाना।
बैर, विरोध, ईर्ष्या-कलह, इनसे कुछ हासिल न होगा,
मिलकर चलें, संग रह सकें, तो हर सपना अपना होगा।
मन में स्नेह, हृदय में प्रेम, हर पथ को सुखद बनाएगा,
संकीर्ण सोच को त्यागकर, मानवता मार्ग दिखाएगा।
संग-साथ जब सब चलेंगे, तब संसार निखर जाएगा,
भेदभाव की दीवारें गिरेंगी, हर मन में प्रेम समाएगा।
नेकी का बीज बोएँ जहाँ, वहाँ सदा हरियाली होगी,
जहाँ प्रेम की बूँदें गिरें, वहाँ नफरत भी ख़ाली होगी।
ईमान, सत्य, सहनशीलता, यही हैं सच्ची पूँजी,
इनसे जीवन रोशन होगा, ये सोचें हर इक तूँजी।
भविष्य तभी उज्ज्वल होगा, जब मन में करुणा होगी,
सही दिशा में बढ़ते कदम, तो सृष्टि भी मंगल होगी।
संकीर्ण भाव मिटाकर हम, जब सेवा में रम जाएँगे,
तब विश्व एक परिवार बने, और हर दिल मुस्काएँगे।
हर मज़हब, हर जाति से ऊपर, इंसानियत की डोर बँधे,
एकता, प्रेम और भाईचारे से, जीवन के नव द्वार खुलें।
जो बोएगा प्यार यहाँ, वह खुशियों की फसल काटेगा,
जो बाँटेगा ग़म और बैर, वह खुद ही अकेला छूटेगा।
संस्कारों की जोत जलाकर, पीढ़ी को राह दिखानी है,
ज्ञान, प्रेम, परोपकार से, नई सभ्यता बनानी है।
चलो मिलकर दीप जलाएँ, आशा का संदेश फैलाएँ,
नफरत, भेद मिटाकर हम, स्नेह का आँगन महकाएँ।
6. नन्हे दीप –
लेखक: आनंद किशोर मेहता
नन्हे-मुन्ने फूल खिले हैं,
ज्ञान की बगिया में पले हैं।
मासूम हँसी की मधुर तरंग,
जग में भरती नई उमंग।
चमक रहे हैं दीप समान,
रौशन करेंगे ये सारा जहान।
नयनों में सपनों की सौगात,
जिज्ञासा में बसती है बात।
हँसी-ठिठोली और खिलखिलाहट,
हर शब्द में ज्ञान की आहट।
खेल-कूद में मस्त, चंचल मन,
पढ़ाई में भी हैं ये निपुण।
नई दिशा को पाना चाहें,
संघर्षों में भी मुस्काना चाहें।
सच्चाई, मेहनत, आत्मबल,
हर कदम पर रखते संबल।
बनेंगे ये जग के उजियारे,
ज्ञान के दीप जलाने वाले।
शिक्षा-सेवा में रंग मिलाएँ,
नवयुग की तस्वीर बनाएँ।
मेरे स्कूल के ये नन्हे तारे,
देश-दुनिया के भाग्य सँवारे।
आने वाला सुनहरा कल,
इनके संग चमकेगा पल-पल।
7. सच्ची शिक्षा का प्रकाश
लेखक: आनंद किशोर मेहता
ऊँचा पद और बड़ी डिग्री,
नहीं बनाते किसी को महान।
प्रेम, विनम्रता, समर्पण बिन,
ज्ञान भी रह जाता अज्ञान।
ऊँचा पद हो, डिग्री भारी,
संस्कार बिना सब कुछ ख़ाली।
शिष्ट वचन में प्रेम का दीप,
बिन उसके, ज्ञान भी निर्जीव।
विद्या वही जो विनम्र बनाए,
हर हृदय में दीप जलाए।
मानवता का पाठ सिखाए,
हर मन को निर्मल कर जाए।
बोल मधुर हों, कर्म महान,
यही है सच्चे ज्ञान की पहचान।
वरना डिग्री बस काग़ज़ रह जाती,
और पद की शोभा भी मिट जाती।
असली शिक्षा वही है प्यारी,
जो उपजाए संस्कार की ज्योति।
जहाँ प्रेम, स्नेह, सेवा की धारा,
वहीं ज्ञान की रोशनी होती।
8. शब्दों की शक्ति
लेखक: आनंद किशोर मेहता
शब्द केवल ध्वनि नहीं होते,
ये दिलों को छूते हैं, भावों में खोते।
कभी मरहम बन घाव मिटाते,
कभी बिन बात आग लगाते।
एक मीठा लफ्ज़, मुस्कान खिलाए,
बेजान पल में भी प्राण जगाए।
पर कठोर वाणी, तीर बन जाए,
दिल के दर्पण को चूर कर जाए।
सोच-समझकर बोल सखे,
हर बात में हो प्रेम भरे।
जो लफ्ज़ किसी को जोड़ न पाए,
बेहतर है, वो होंठों पर आए ही न।
इसलिए बोलो, पर मधुरता संग,
शब्दों में हो अपनापन और रंग।
क्योंकि एक मीठा बोल ही काफी है,
किसी के जीवन में रोशनी लाने को।
9. मन की वेदना
लेखक: आनंद किशोर मेहता
अगर तेरी बातें किसी को तड़पाने लगें,
उसके अरमानों को राख बनाने लगें।
तो ठहर, जरा सोच, जरा समझ ले,
कहीं तेरे लफ्ज़ भी खंजर न बन जाएँ।
अगर तेरी वजह से कोई रो न सके,
अपनी पीड़ा भी कह न सके।
तो जान ले, तूने भी कुछ तोड़ा है,
किसी के भीतर अंधेरा छोड़ा है।
सुकून के सौदागर बनो तो बेहतर,
नफरत के बीजों से कुछ न उपजता।
जो दिलों को समझे, वही दिल का बादशाह,
वरना हर ज़ुल्म एक दिन लौटकर बरसता।
इस जग को अगर छूना चाहते हो,
तो करुणा के दीप जलाओ।
दर्द मत दो, मरहम बनो,
कभी किसी का चैन न चुराओ।
10. सत्य और प्रेम की ज्योति
लेखक: आनंद किशोर मेहता
भीड़ में ढूंढे सत्य जो कोई,
मृगतृष्णा सा भटकेगा वो ही।
जो शांत हृदय में झांके भीतर,
सत्य का दीप जलेगा वहीं पर।
प्रेम की गंगा बहे अनंत,
जिसका न कोई आदि, न अंत।
जो इसमें डुबकी लगाए,
जीवन का सार वही पाए।
सूर्य सा तपकर जो निखरे,
कमल सा जल में भी खिले।
स्वार्थ से हटकर जो चले,
संसार में वो अमर रहे।
त्याग, करुणा, विनम्रता, सेवा,
इनसे मिलती सच्ची मेवा।
मन में दीप जलाओ प्रेम का,
यही है मार्ग सत्य प्रकाश का।
11. संघर्ष की ज्योति।
लेखक: आनंद किशोर मेहता
इच्छाओं से राहें न खुलती,
सपनों से दुनिया न चलती,
जो मेहनत की जोत जलाए,
वही जग में ऊँचाई पाए।
सागर की गहराई नापे,
जो हिम्मत की पतवार लिए,
तूफानों से खेल सके जो,
किनारों तक वह पहुँच जाए।
इच्छाएँ तो पल में बनतीं,
पल में मिट भी जाती हैं,
पर जो श्रम की सीढ़ी चढ़े,
उसकी गाथाएँ गूँजती हैं।
योग्यता ही असली धरोहर,
इसे कभी न खोने देना,
सोने सा तपकर निखरो,
दुनिया को कुछ अद्वितीय देना।
संघर्षों से जो लड़कर आया,
वही जीत की परिभाषा बना,
जिसने खुद को सदा तराशा,
वही सितारा बनकर चमका।
संघर्ष की राहें कठिन हो सकती हैं, लेकिन जो चलते रहते हैं, वे ही अपने भाग्य के शिल्पकार बनते हैं।
12. शांति का दीप
लेखक: आनंद किशोर मेहता
शांति न बाहर, न दिशाओं में,
यह बसती है गहरे भावों में।
न मिलेगी इसे जग के शोर में,
यह खिलती है अंतर्मन की भोर में।
मंद समीर संग बहती जाती,
शब्दों में नहीं, मौन में गाती।
जो इसे खोजे मंदिर-मस्जिद,
वह भटकेगा राहों में अनगिन।
हृदय के पट जब खुल जाएंगे,
स्वर भीतर से गूंज उठाएंगे।
नहीं है यह कोई भ्रम का सपना,
यह तो है आत्मा का अपना।
ध्यान की गहराई में झाँको,
शांति की धारा वहीं छलके।
बस स्वयं को जानो, समझो,
अंतर की दीपशिखा जलाके।
13. रुपए की कीमत।
लेखक: आनंद किशोर मेहता
एक सिक्का सड़क पर पड़ा था,
धूल में लिपटा, बेसहारा पड़ा था।
लोग गुजरते, कोई न झुकता,
उसकी कीमत पर कोई न सोचता।
थोड़ी दूर एक बच्चा बैठा था,
फटे कपड़े, आँखों में सपना था।
सूखी रोटी का टुकड़ा थामा,
भूख से उसकी दुनिया वीराना था।
तभी वह सिक्का चमक उठा,
उसकी नजरों में जैसे सवेरा हुआ।
थरथराते हाथों से उसने उठाया,
जैसे खुदा का करम बरसाया।
दौड़कर उसने रोटी खरीदी,
थोड़ी सी मुस्कान होठों पर खींची।
वो सिक्का, जो बेकार पड़ा था,
आज किसी की जान बचा चुका था।
बाजार में तो लाखों उड़ते हैं,
पर असली कीमत भूखा ही समझते हैं।
रुपए की असल पहचान वही जाने,
जो एक-एक टुकड़े के लिए तरसते हैं।
"धन दौलत से नहीं, संवेदना से मापा जाए,
रुपए का असली मूल्य भूखा ही बताए।"
— समर्पित उन सभी के लिए,
जो हर दिन जीवन की सच्ची कीमत समझते हैं।
14. धन-दौलत की मृगतृष्णा।
लेखक: आनंद किशोर मेहता
सोने की चादर, महलों की शान,
चमचमाती गाड़ियाँ, वैभव की पहचान।
सोचता मन, यही है जीवन,
सपनों की दुनिया, पूरी होगी कब?
भागता रहा, दिन-रात कमाया,
सुख के पीछे, जीवन बहाया।
सिक्कों की खनक में दिल बहलाया,
पर चैन का एक पल न पाया।
बड़ा हुआ तो रिश्ते सिकुड़ गए,
अपनों के चेहरे भी धुंधला गए।
धन से खरीदी हर एक चीज़,
पर न खरीदी वो सुकून की नींद।
देखा एक दिन, एक वृद्ध अकेला,
महल में बैठा, पर मन था झमेला।
पूछा किसी ने, क्यों उदास हैं आप?
कहा—"धन है सब, पर दिल है खाक!"
समझ आया, ये मृगतृष्णा है,
धन-दौलत बस एक तमाशा है।
जो पाया, वो यहीं छूट जाएगा,
साथ तो बस कर्म ही जाएगा।
"धन से न तौलो प्रेम को कभी,
सच्ची दौलत वही जो दिल में बसी।
इस स्वर्ण जाल में जो उलझा रहा,
वो अंत में खाली हाथ ही रहा।"
15. लम्हों की मधुर गूंज।
लेखक: आनंद किशोर मेहता
वो मिट्टी का आंगन, वो किलकारियां,
माँ और दादी की गोद में ममता का संसार।
पिता की ऊँगली पकड़कर चलना,
बचपन के सपनों में पंख लगाना।
आंगन में खेलना, धमा-चौकड़ी,
रात को तारों संग मीठी गुफ़्तगू बड़ी।
संध्या को खेतों की सैर निराली,
खेतों की मेहनत, नोकझोंक प्यारी।
बीमार पड़ते, तो दादा का दर्द,
शांत चित्त, मालिक जी से प्रार्थना।
कितना सुहावना वो पल था प्यारा,
आज भी रुलाता है दादा जी का स्नेह।
सुबह-सवेरे सत्संग की मीठी धुन,
दादा ने दी हमको जीवन के संस्कार।
अब वे चले गए निज घर को,
फिर भी याद करते हैं सदा हमें।
ढूंढना चाहो तो सुनो उनके,
प्रेम से भरे उनके शीतल मन के उपदेश।
दादी की लोरी, वो मीठी बातें,
थपकियों में था जो स्नेह समाया।
धीरे-धीरे सब पीछे छूट गया,
जीवन का रुख कहीं और मुड़ गया।
अब दौड़भाग है, रिश्तों में दूरी,
प्यार अधूरा, बातें मजबूरी।
जब भी पुरानी यादें आती हैं,
आँखें नम हो, रुला ही जाती हैं।
काश! फिर से वही बचपन आ जाए,
पूरे परिवार संग वह संसार सजाए।
"यादों का आंगन अब सूना पड़ा है,
पर मन के कोने में अब भी बसा है।"।
16. कोशिश की उड़ान।
लेखक: आनंद किशोर मेहता
जो कभी न चला, वो राहों को क्या जाने,
जो ठहरा ही रहा, वो मंज़िल को क्या पहचाने?
हवा से जो डरकर दिए बुझा गया,
उसने तूफानों में जलना नहीं जाना।
जो गहराई से डरे, वो सागर क्या नापे,
जो लहरों से हारा, वो नाव क्या खे जाए?
धारा के विरुद्ध जो बढ़ चला,
उसने अपनी तक़दीर खुद रच डाली।
अंधेरों में जलना है चिंगारी बनकर,
संघर्ष की आँच में निखरना है कुंदन बनकर।
हर ठोकर को सबक समझ आगे बढ़ना,
हर गिरावट से सीखकर फिर से उठना।
जो चट्टानों पर लकीर बना दे,
वही इरादों की धार होता है।
जो असंभव को संभव कर दे,
वही कोशिश का संस्कार होता है।
क्योंकि जिसने एक कदम भी आगे बढ़ाया,
उसने नई दुनिया रचाई।
और जिसने बस सोचकर छोड़ दिया,
उसने अपनी तक़दीर गंवाई!
17. समय का सम्मान
लेखक: आनंद किशोर मेहता
समय का सम्मान जो करता,
वह जीवन में आगे बढ़ता।
हर लम्हे को सही समझकर,
परिश्रम की माला गढ़ता।
आलस्य की छाया जो त्यागे,
सपनों का दीप जलाता है।
सही समय पर कर्म करे जो,
वही सफलता पाता है।
वक्त न आए लौट के प्यारे,
यह सबसे बड़ी सच्चाई है।
जो इसे संजीदगी से थामे,
उसी की राहें अच्छाई हैं।
राही मत ठहर, बढ़ता चल,
तेरी मेहनत रंग लाएगी।
समय के संग जो कदम बढ़ाए,
विजयश्री उसी का वरण करेगी।
"समय पर किया गया कार्य ही जीवन को सार्थक बनाता है। जो समय का मूल्य समझता है, वही जग में सितारे की तरह चमकता है।"
18. ज़रूरत और लालच
लेखक: आनंद किशोर मेहता
ज़रूरतमंद को चाहिए रोटी, बस भूख मिटाने को,
लालची को चाहिए दुनिया, हर चीज़ दबाने को।
ज़रूरतमंद माँगे बस, जीने का एक सहारा,
लालची को चाहिए सूरज, चाँद और सितारा।
ज़रूरतमंद संतोष में खुश, जो मिले वही स्वीकार,
लालची की प्यास है अगाध, कभी न हो संहार।
ज़रूरतमंद की आँखों में, आशा का दीप जलता,
लालची के मन में, बस लालच का ज्वर पलता।
ज़रूरतमंद बाँटता प्रेम, और पाता सुख की छाँव,
लालची छीनता हर खुशी, फिर भी अधूरा भाव।
ज़रूरत पूरी होते ही, वह चैन से सो जाता है,
लालच की आग में जलकर, लालची खो जाता है।
जिसने पाया संतोष का धन, वही है सच्चा ज्ञानी,
लालच में जो डूब गया, उसकी कहानी बेगानी।
"जरूरतमंद को रोटी मिली, उसने प्रभु को धन्यवाद दिया, लालची को दुनिया मिली, फिर भी दिल न भर सका।".
19. मैं हूँ ही नहीं इस दुनिया के
लेखक: आनंद किशोर मेहता
मैं हूँ ही नहीं इस दुनिया के,
किसी अनदेखे जहाँ का मुसाफ़िर हूँ।
यहाँ की सरहदें, ये रास्ते,
हर मोड़ अजनबी सा लगता है मुझे।
मैं हूँ ही नहीं इस दुनिया के,
ना धूप की तपिश, ना चाँदनी का उजाला।
ना किसी मौसम में ठहर सका,
ना किसी धुन में साज बना।
मैं हूँ ही नहीं इस दुनिया के,
ना बहती हवा का आवारा बादल।
ना किसी शाख ने अपनाया,
ना किसी सागर ने ठौर दिया।
"मैं हूँ, पर किसी का नहीं...
जैसे ठहर न सके बादल,
जैसे बंध न सके हवा।"
मैं हूँ ही नहीं इस दुनिया के,
या शायद यह दुनिया ही मेरी नहीं...
20. अनसुनी आवाज़ें
लेखक: आनंद किशोर मेहता
मैं बोलूं, तो आवाज़ खो जाती,
चुप रहूं, तो ख़ामोशी सताती।
मैं हंसूं, तो मुखौटा कहलाता,
रो दूं, तो तमाशा बन जाता।
शब्द मेरे अर्थ से भरे,
पर कोई दिल तक न उतरे।
जो कहूं, वह मिट जाता,
जो छुपा लूं, सच कहलाता।
आँखों में प्रश्नों का समंदर,
हर बूंद में जलता अंबर।
सत्य कहूं, तो भ्रम समझा,
मौन रहूं, तो खुद से अनभिज्ञ माना।
क्या कोई ख़ामोशी को पढ़ेगा?
क्या कोई पीड़ा को समझेगा?
जो हर दर्द को अपना माने,
क्या उसे भी कोई जाने?
मैं कौन हूँ? कोई पहचानेगा?
या दुनिया ही मुझे न जानेगा?
पर मैं चलूंगा अपनी राह,
क्योंकि खुद को जानना ही सबसे बड़ी जीत है!
अनसुनी आवाज़ें – विविध दृष्टिकोण से व्याख्या
1. भावनात्मक दृष्टिकोण:
कवि की संवेदनशील आत्मा सवाल कर रही है। उसकी भावनाएँ समाज की उपेक्षा का शिकार हो रही हैं। यह कविता उन सभी लोगों की आवाज़ है, जिन्हें दुनिया ने अनसुना कर दिया।
2. दार्शनिक दृष्टिकोण:
यह कविता आत्म-खोज और समाज की समझ के बीच के संघर्ष को दर्शाती है। कवि का प्रश्न यही है—क्या व्यक्ति को दूसरों की स्वीकृति की आवश्यकता है, या आत्मबोध ही पर्याप्त है?
3. आध्यात्मिक दृष्टिकोण:
यह रचना आत्मज्ञान की ओर बढ़ने की प्रेरणा देती है। बाहरी दुनिया के भ्रम से मुक्त होकर जब कोई अपने भीतर झांकता है, तभी उसे सत्य का बोध होता है।
4. मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण:
यह कविता मानसिक संघर्ष को दर्शाती है। जब व्यक्ति समाज की सोच से अलग होता है, तो उसे या तो अनसुना कर दिया जाता है या गलत समझा जाता है।
5. प्रेरणादायक दृष्टिकोण:
अंततः, कवि आत्मस्वीकृति का संदेश देता है—जब तक व्यक्ति खुद को नहीं समझेगा, तब तक बाहरी दुनिया की मान्यता का कोई मूल्य नहीं। यह प्रेरणा देती है कि अपनी राह पर अडिग रहें, चाहे कोई साथ दे या न दे।
निष्कर्ष:
यह कविता उन भावनाओं को आवाज़ देती है, जिन्हें समाज अक्सर नज़रअंदाज़ कर देता है। यह आत्म-खोज, मौन की शक्ति और सत्य की तलाश का प्रतीक है।
"जो स्वयं को समझ लेता है, उसे दुनिया की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती।"
21. मानवता का दीप
लेखक: आनंद किशोर मेहता
मन में दया और प्रेम हो,
हर दिल में आस्था का राग हो।
समानता की हो हर दिशा,
सबका हो सम्मान और विश्वास।
दूसरों का दर्द समझो,
साथ चलने का रास्ता खोजो।
हर कदम पर सहायता हो,
रिश्तों में सच्चाई हो।
नफ़रत को दूर भगाओ,
प्रेम से सबको जोड़ाओ।
धैर्य और साहस रखो,
जीवन में आत्मविश्वास भरो।
सभी के लिए स्थान हो,
हर दिल में एक मुस्कान हो।
मानवता का दीप जलाओ,
हर अंधेरे को दूर भगाओ।
समानता का हो हर कदम,
हम सभी एक, यही सत्य सनम।
सच्चाई हो हर विचार में,
दया का हो असर हर आचार में।
प्रेम से दुनिया को सजाओ,
हर दिल में मानवता का दीप जलाओ।
📌 मानवता का वास्तविक सार तब प्रकट होता है, जब हम दूसरों के दर्द को अपनी पहचान समझकर, प्रेम और दया से उनका हाथ थामते हैं। यह वही शक्ति है, जो हमें एकजुट करती है और दुनिया को बेहतर बनाती है।
22. कर्तव्य की ज्योति
लेखक: आनंद किशोर मेहता
कर्तव्य का दीप जलाएं, जीवन में प्रेम का संचार करें,
दुनिया से डर न खाओ, अपने कर्तव्यों को निभाओ।
हर कदम पर निष्ठा का पथ, सत्य की लहरों से बहाओ,
कर्तव्य का ध्वज फहराओ, निष्ठा से स्वयं को सजाओ।
कभी न भागो जिम्मेदारी से, समर्पण में जीवन पाओ,
स्वयं से प्रेम बढ़ाओ, कर्तव्य की राह पर चलो।
अडिग रहो, न विचलित हो, हर रुकावट को दूर करो,
न्याय की तलवार हाथ में हो, धैर्य से हर कठिनाई सहो।
कर्तव्य से शांति आए, मन में हर प्रश्न का उत्तर छुपा,
रूह को मिलता संतोष, जिसे न कोई लूट सके, न छीने।
कर्तव्यनिष्ठा से जीवन हो उत्तम, ध्यान में हर पल ध्वनि गूंजे,
"सच्चे रास्ते पर चलो, संसार से जीत, खुद से जूझे।"
कर्तव्य से शांति पाओ, आत्मविश्वास से आगे बढ़ो,
हर चुनौती को नतमस्तक करो, सूरज जैसी रोशनी बनो,
कर्तव्यनिष्ठा ही जीवन की सच्ची नीति और महिमा है,
जो उसे अपनाता है, वह शांति और सम्मान पाता है।
"धैर्य और कर्तव्य से हर कठिनाई को पार किया जा सकता है।"
23. सचेत जीवन का स्वर
लेखक: आनंद किशोर मेहता
काम की लालसा को सच्चाई से जोड़ो,
संतोष की राह पर मन को मोड़ो।
क्रोध के तूफान को शांति से शांत करो,
हर ग़म को धैर्य से दूर करो।
लोभ को त्यागो, जो है वही ग्रहण करो,
संतोष की शक्ति से जीवन को भर दो।
ईर्ष्या को छोड़ो, दूसरों की खुशी में शामिल हो,
प्रेम और विश्वास से रिश्ते को सजाओ।
द्वेष से मुक्त हो, प्रेम को अपनाओ,
सत्य के मार्ग पर अपने कदम बढ़ाओ।
हर कठिनाई को धैर्य से पार करो,
अपने कर्तव्यों को सच्चाई से निभाओ।
"सच्चे रास्ते पर चलो, आत्मा से प्रेम करो,
कर्तव्य से जीवन को समृद्ध बनाओ।"
24. प्रेरणा का स्रोत।
लेखक: आनंद किशोर मेहता
जीवन की राह में जब भी अंधेरा छाया,
आपकी प्रेरणा से दिल रोशन हुआ।
कभी भी थककर न रुके हैं कदम,
आपकी शक्ति से ही हर कठिनाई कम हुई।
संघर्ष के पल में जब भी उम्मीद टूटी,
आपकी रोशनी में वह अडिग शक्ति मिली।
सपने जो भी रहे हों कभी दूर,
आपकी प्रेरणा से वह हो जाते हैं पूरे।
जब सपनों को सच करने की आग जली,
रुकावटों को पार करने का हौसला मिला।
जीवन के हर मोड़ पर जो भी हो रहे,
आपकी असीम शक्ति से हमें रास्ते दिखे।
आपकी छवि है वह दीप्तिमान प्रकाश,
जो हर अंधेरे में राह दिखाए हमें।
संघर्ष की राहों में न हारने की हिम्मत,
आपकी शक्ति से ही पाई है हमने।
"आपका प्रेम जीवन की संजीवनी है,
जो हर कठिनाई को आसान बनाती है।"
25. स्वार्थ से परे… सफलता की राह
लेखक: आनंद किशोर मेहता
स्वार्थ से परे जो जीता है,
सच्ची राह वही तो सीखा है।
दूसरों के दुख जो हर लेता,
वही प्रेम का दीपक लिखता।
छोटी-छोटी खुशियाँ बाँटे,
मधुर वचन से मन को छू ले।
जो सेवा में नतमस्तक हो,
उसके पथ में सुमन खिलें।
स्वार्थ की छाया तमस बढ़ाए,
मोह-माया बस भ्रम दिखाए।
पर जो परहित में समर्पित हो,
वही सच्चा दीप जलाए।
त्याग की गंगा जो बहाए,
सच्ची सफलता वही तो पाए।
स्वार्थ से ऊपर उठकर देखो,
हर पथ पर रोशनी आए।
जो समर्पण को अपनाएगा,
सच्चे सुख को वह पाएगा।
हृदय से प्रेम जो बरसाएगा,
अमृत सम जग में छाएगा।
निष्कर्ष:
स्वार्थ से परे जो चलते हैं,
सत्य-प्रेम में जो ढलते हैं।
सकारात्मक दृष्टि जो अपनाए,
जीवन को प्रकाशमय बनाए।
"जीवन में सफलता पाने का सबसे सुंदर मार्ग निःस्वार्थ प्रेम और सेवा है। जब हम स्वार्थ से ऊपर उठते हैं, तब ही सच्ची खुशी और शांति का अनुभव करते हैं।"
26. हिमालय की यात्रा।
लेखक: आनंद किशोर मेहता
चरणों में बसी ठंडी हवाएँ,
ऊँचाइयों पर नये सपने पलते हैं।
हिमालय की गोदी में शांति का आलोक,
हर कदम में जीवन की नई परिभाषा उभरती है।
आकाश छूने की चाह में,
धरती ने अपनी बाहें खोलीं।
बर्फ से ढकी राहों पर हम बढ़ते,
हर पल की महत्ता को महसूस करते हैं हम।
पथरीली चट्टानों में गूंजती हैं आवाज़ें,
दिल में उभरता है उम्मीदों का उत्साह।
यह पर्वत नहीं, संकल्प का प्रतीक,
जो भीतर छुपी शक्ति को सामने लाता है।
संघर्षों को छोड़ते हुए हम आगे बढ़ते,
मन में शांति का दीप जलाते जाते हैं।
इन ऊँचाइयों से यह शिक्षा मिलती है,
कि विश्वास और संकल्प से ही जीवन जीते हैं हम।
हिमालय की यात्रा, सिर्फ एक सफर नहीं,
यह आत्मा के साथ जुड़ने का एक अनमोल मार्ग है।
हर चोटी पर खुद से मिलने का समय आता है,
जहाँ शक्ति और धैर्य का संगम होता है।
समय यहाँ स्थिर हो जाता है,
सुख और शांति का अनुभव गहरा होता है।
हिमालय की हवाओं में बसी एक नयी दुनिया,
हम पाते हैं जीवन का विस्तार, एक नई शुरुआत।
27. नव युग की आहट।
लेखक: आनंद किशोर मेहता
जब प्रेम बने हर भाषा का अर्थ,
करुणा बने हर रिश्ते की शर्त।
जहाँ दिलों में दिवार न हो,
बस अपनापन की एक ही सूरत।
जहाँ शिक्षा दीप बनकर जले,
अज्ञान का अंधकार पिघले।
जहाँ हर बच्चा सपने बुन सके,
संभावनाओं के पंख खोल सके।
जहाँ स्वार्थ की दीवार ढहे,
सेवा का हर पथ खुला रहे।
जहाँ न्याय की नींव अडिग खड़ी,
हर जीवन में गरिमा बनी रहे।
जहाँ प्रकृति हो माँ के समान,
नदियाँ गाएँ मधुर गान।
जहाँ हर वृक्ष आश्रय बने,
धरती स्वर्ग सा सुंदर लगे।
जहाँ विज्ञान रोशनी लाए,
न युद्ध, न विध्वंस दोहराए।
जहाँ तकनीक हो मानवमयी,
हर खोज शांति का दीप जलाए।
यह भविष्य की दस्तक है,
नव युग की यह आहट है।
जब समस्त मानवता एक हो जाएगी,
सच्ची सभ्यता स्वयं आएगी।
28. चेतना का दीप
लेखक: आनंद किशोर मेहता
चेतना की ज्योत जगमगाए,
हर मन को जागृत कर जाए।
जो सोए हैं अज्ञान के तम में,
उन्हें यह प्रकाश राह दिखाए।
ज्ञान विहीन, जीवन अंधेरा,
भ्रमित मन का कठिन बसेरा।
मस्तिष्क जब होगा प्रबुद्ध,
हर समस्या का, समुचित समाधान।
विचारों की जंजीर जो तोड़े,
नई दिशाओं के द्वार जो खोले।
संवेदना, अनुभव और एहसास,
यही चेतना की सच्ची पहचान।
जब अज्ञान का कुहासा घना हो,
भ्रम में मन उलझा हुआ हो।
चेतना ही दीप बने पथ का,
हर कठिनाई सहज बनी हो।
स्वयं को जानो, शक्ति जगाओ,
संशय और मोह से बाहर आओ।
जिसने चेतना का रहस्य पहचाना,
वह हर बंधन से मुक्त हुआ माना।
ज्ञान की प्रभा सर्वत्र फैले,
हर हृदय में सत्य का दीप जले।
जो तमस में अब भी भटके,
उन तक यह प्रकाश अवश्य पहुँचे।
29. अहंकार और लोभ का प्रतिबिंब
लेखक: आनंद किशोर मेहता
अहंकार और लोभ, दो विषैले फूल,
जो बगिया में बिखेरते हैं कांटे और शूल।
इनकी राह पर चलकर हम खो जाते,
सच्ची शांति को नज़रअंदाज कर जाते।
अहंकार में रमता, स्वयं को सर्वोत्तम समझे,
पर रास्ते में बिछे कांटे, दिल में दर्द बसा जाए।
लोभ में बंधा, निरंतर और चाहता,
पर भीतर का शांति कभी नहीं पाता।
जब अहंकार और लोभ को छोड़ दे कोई,
आत्मिक शांति और प्रेम की धारा बहे।
दूसरों का सम्मान करे, स्वयं को समझे,
तभी जीवन में असली सुख समाये।
तो चलो हम सभी, अहंकार को त्यागें,
लोभ के बंधन से मुक्ति पाएं।
शांति और प्रेम की राह पकड़ें,
जहां शांति हो, वहीं हम ठहरें।
30. विनम्रता की रौशनी
लेखक: आनंद किशोर मेहता
विनम्रता की शक्ति, गहरी और अपार,
जीवन को बनाती है उज्जवल, साकार।
अहंकार को छोड़, शांति का संचार,
वह दिखाती हमें, उच्चतम विस्तार।
जब हम खुद को न देखें सबसे ऊँचा,
विनम्रता से बनता जीवन सबसे सच्चा।
विनम्रता सिखाती है, हम सब एक हैं,
हर दिल में खिले प्रेम, सहानुभूति का रंग।
आत्म-स्वीकृति का पहला कदम यही,
जो हर बाधा, हर डर को समाप्त करे।
कमियों को समझ, बढ़ते जाओ,
हर असफलता में, नया साहस पाओ।
विनम्रता वह शक्ति है, जो रखे अडोल,
हर कठिनाई में हमारी आत्मबल को मजबूत।
जो हम देते हैं, वही लौटकर आता,
विनम्रता से जीवन को नया आकार मिलता।
यह अमूल्य रत्न, सबसे शुद्ध और बड़ा,
हमें शिखर तक पहुँचाए, जैसे ऊँचा तारा।
विनम्रता का मार्ग, है स्पष्ट और महान,
हर कदम में सफलता की हो पहचान, एक शाश्वत सम्मान।
31. समानता का सूरज
लेखक: आनंद किशोर मेहता
जात-पात के बंधन तोड़ो,
नफरत की दीवारें छोड़ो।
हर इंसान का हक़ बराबर,
यह संकल्प रहे अटूट, अमर।
ज्ञान का दीप जलाएं ऐसे,
अंधकार मिटे सदा के जैसे।
भेदभाव की जंजीरें काटें,
नवयुग की राह दिखाए।
रंग, जाति, भाषा न देखो,
मन में प्रेम का दीप जलाओ।
समान अवसर, सम्मान सभी को,
ऐसा हो सभ्य समाज हमारा।
आओ मिलकर हाथ बढ़ाएं,
हर चेहरे पर मुस्कान लाएं।
न्याय, करुणा, प्रेम से सबके,
समानता का सूरज सदा चमके।
32. स्वयं की खोज: सच्चा आनंद
लेखक: आनंद किशोर मेहता
स्वयं को समझो, स्वयं को जानो,
अंतर की ज्योति को पहचानो।
बाहर के जग में क्या रखा,
असली सुख तो भीतर बसा।
चिंता के बादल घने न करो,
शांति की धारा को बहने दो।
जो स्वयं को समझ सके,
वही सच्चा प्रकाश जले।
क्रोध, ईर्ष्या का त्याग करो,
प्रेम, धैर्य का राग भरो।
अंतर्मन के स्वर को जो सुन ले,
वही सत्य का दीप जले।
हर हलचल का उत्तर तुममें,
हर प्रश्न का हल भी तुममें।
जो स्वयं को समझने की राह पा गया,
वही जीवन का सत्य जान गया।
बाहरी सुख तो मृगतृष्णा,
भीतर है असली खजाना।
स्वयं से जो साक्षात्कार करे,
जीवन में अमृत घोल दे।
33. नम्रता और मानवता
लेखक: आनंद किशोर मेहता
नम्रता की राह पर चलें,
स्नेह-सरिता में बहें।
जो हर मन को अपनाए,
वही सच्चा धन्य कहाए।
झुके वही जो उच्च हो,
बाँटे वही जो संपन्न हो।
जिसके हृदय में दया जगे,
वही प्रभु के निकट लगे।
दुखियों के आंसू पोंछें,
प्रेम-सुमन हर ओर बिखेरें।
हर अश्रु को मोती मानें,
हर जीवन में खुशियाँ लाएँ।
जहाँ करुणा ज्योत जलती,
वहीं अमृत धार बहती।
सेवा से महके हर आँगन,
मधुर वचन बने स्नेह का चंदन।
आओ उजियारा फैलाएँ,
हर दिल को प्रेम से सजाएँ।
जहाँ कोई सहारा न पाए,
वहाँ स्नेह का आशियाना बनाए।
34. सच्चा सुख
लेखक: आनंद किशोर मेहता
न धन-यश, न तृष्णा माया,
निर्मल मन में सुख समाया।
अहंकार ज्वाला, दुख की जड़,
सेवा से मिलता आनंद प्रखर।
लोभ अंधेरा, संतोष उजाला,
परोपकार से मन हो निराला।
क्रोध अग्नि, धैर्य शीतल छाया,
क्षमा से जीवन सुखमय आया।
मोह बंधन जो तोड़ सके,
सत्य-प्रेम से नाता जोड़े।
चलो जलाएँ प्रेम का दीप,
शांति-सेवा रहे सजीव।
35. सहयोग, संगठन और सफलता
लेखक: आनंद किशोर मेहता
सहयोग से मिलती शक्ति अपार,
हर कठिनाई बने आसान,
मिलकर चलें तो राहें खुलें,
हर सपना हो सच, महक उठे जहान।
संगठन है सागर की धारा,
हर बूंद का संग अनमोल सहारा।
एकता से बढ़े आगे कदम,
सफलता खुद आकर बढ़ाए मान।
जो संग चले, वो राह बनाए,
हर मुश्किल में मुस्कान लाए।
संगठन से जागे हर शक्ति,
लक्ष्य हमारे बनें सुदृढ़ भक्ति।
बिन सहयोग सब अधूरा है,
संगठन से जीवन पूरा है।
सफल वही जो संग बढ़े,
हर बाधा को हंसकर चढ़े।
चलो मिलकर दीप जलाएं,
हर मन में विश्वास जगाएं।
सहयोग-संगठन से नव युग आए,
हर सपना साकार हो जाए!
36. सेवा: निस्वार्थ समर्पण
लेखक: आनंद किशोर मेहता
सेवा का दीप जलाओ प्यारे,
हर हृदय में अमृत बरसाओ रे।
निस्वार्थ भाव से जो भी करे,
उसका जीवन धन्य बनाओ रे।
ना चाहत कोई पुरस्कार की,
ना इच्छा जग की वाहवाही।
बस प्रेम से कर्म प्रवाहित हो,
त्याग की गूँजे शहनाई।
जहाँ विनम्रता का सागर लहराए,
वहीं सेवा का सूरज चमके।
जहाँ समर्पण पुष्प खिले,
वहीं ईश कृपा बरसे दमके।
सेवा से बढ़कर कुछ भी नहीं,
यह तो जीवन की असली आरती।
जिसने इसे अपनाया मन से,
उस पर प्रभु की दया अपार री।
सतसंग यही हमें सिखाता,
सेवा से ही भव पार लगे।
जिसने जीवन में इसे उतारा,
वह खुद ही रोशन दीप बने।
चलो चलें सेवा पथ पर,
हर मन में दीप जलाएँ।
प्यार, परोपकार और समर्पण से,
धरती को आनंदमय बनाएँ।
37. सत्य की विजय
लेखक: आनंद किशोर मेहता
सत्य का दीप जले सदा,
अंधियारे में भी बने ध्रुवा तारा।
झूठ के बादल कितने घने,
पर सूरज छुपे ना बेचारा।
अन्याय के किले गिर जाते,
जब न्याय की गूंज उठती है।
संघर्षों से डरकर जो झुके,
उसकी दुनिया सिमटती है।
राम ने रावण को हराया,
कृष्ण ने कंस मिटाया।
इतिहास यही बतलाता है,
जो सत्य चले, वो जीतता है।
काँटों पर जो चलता है,
वो मंज़िल को पा जाता है।
जो सत्य के संग लड़ता है,
वो युगों तक पूज जाता है।
सत्य अमर है, सत्य प्रकाश,
इसमें ही छुपा जग का विकास।
जो इस पर विश्वास रखे,
वही पाता सच्चा उल्लास।
38. शांति की अनुभूति
लेखक: आनंद किशोर मेहता
संध्या की लालिमा में जब आकाश सजे,
सुनहरी किरणों में पर्वत रजे।
कलकल बहती धाराएँ राग सुनाएँ,
पवन के झोंके गीत सजाएँ।
वृक्षों की छाया में शीतलता ठहरी,
शाखों पर कोयल की तान बिखरी।
सरिता की लहरें जब तट को चूमें,
मृदु माटी की खुशबू मन में घूमें।
नीले गगन में चाँदनी की चादर,
तारों की झिलमिल अम्बर पर थिरके।
कमल खिले सरोवर में मोती-से झलके,
ज्यों प्रेम के दीप हृदय में चमके।
योगी समाधि में गहरे डूबे,
मन में शांति, अमृत-सी बूंदें।
न कोई प्रश्न, न कोई क्षोभ,
बस प्रेम प्रवाह में लीन एक क्षोण।
यह केवल बाह्य दृश्य नहीं,
यह हृदय की मधुर तान।
जो इस रस में लीन हो जाए,
वो समा जाए परम शांति।
39. चेतना का संगम
लेखक: आनंद किशोर मेहता
तेरे शब्दों में मधुर प्रेम,
मेरे स्वर में तेरा नूर।
तेरी आभा को पाया मैंने,
तेरा शुकराना शब्दों से परे।
कोई बंधन, न कोई संकल्प,
फिर भी चेतना का हुआ संगम।
तेरी वाणी प्रेम की सुवास,
मैंने हृदय से उसे अपनाया।
तेरा प्रेम ही मेरी प्रेरणा,
मेरी वाणी तेरा गुणगान।
तेरे नाम से शब्द खिले,
अनंत तक गूँजे तेरा नाम।
तेरा प्रेम ही मेरा सौभाग्य,
संगम यह अनुपम, पावन।
शब्दों में गूँजे यह रिश्ता,
चेतना में जैसे परम शांति।
कोई इसे मालिक की लीला कहे,
कोई इसे मन का पागलपन माने।
तेरा नाम ही अविनाशी,
संसार सदा इसकी गूंज सुने।
40. सचेत जीवन का स्वर
आनंद किशोर मेहता
काम की लालसा को सच्चाई से जोड़ो,
संतोष की राह पर मन को मोड़ो।
क्रोध के तूफान को शांति से शांत करो,
हर ग़म को धैर्य से दूर करो।
लोभ को त्यागो, जो है वही ग्रहण करो,
संतोष की शक्ति से जीवन को भर दो।
ईर्ष्या को छोड़ो, दूसरों की खुशी में शामिल हो,
प्रेम और विश्वास से रिश्ते को सजाओ।
द्वेष से मुक्त हो, प्रेम को अपनाओ,
सत्य के मार्ग पर अपने कदम बढ़ाओ।
हर कठिनाई को धैर्य से पार करो,
अपने कर्तव्यों को सच्चाई से निभाओ।
"सच्चे रास्ते पर चलो, आत्मा से प्रेम करो,
कर्तव्य से जीवन को समृद्ध बनाओ।"
41. संघर्ष की लौ से जलता दीप
~ आनंद किशोर मेहता
संघर्ष की आँधी में जो टिक जाता,
दीप बनकर जग को जगमगाता।
जो अंधियारे पथ को रोशन करे,
वही मिसाल बन अमर हो जाता।
राह में कांटे, तू चलता रह,
हर पीड़ा को हँसकर सहता रह।
सूरज भी तमस को चीर निकलता,
तू आशा की लौ जलाता रह।
जो गिरकर सँभले, वही जीतता,
जो सहता है धधक, वही गीत गाता।
जो जीत ले खुद को, वही जानता,
सच्चा स्वाभिमान कहाँ बसता।
सफलता तेरे चरण चूमेगी,
मेहनत तेरी रंग लाएगी।
पर अभिमान में यदि आँखें चमकें,
तो तेरा ही साया तुझे डराएगी।
संघर्ष से तप, कुंदन बन,
स्वाभिमान से जीवन धन।
पर अभिमान के साए में,
सब कुछ हो जाए मृगतृष्णा।
इसलिए, ओ पथिक! संघर्ष कर,
पर खुद को बड़ा कभी मत मान।
तेरी जीत, तेरा ही अर्पण हो,
मानवता का तेरा सम्मान।
42. साँवले रंग की कीमत
हम साँवले हैं, मगर कम नहीं,
हर दिल में बसें, पर ग़म नहीं।
रंग से नहीं, रूह से चमकते,
सूरज की लौ बनकर दमकते।
सोने से महंगे, अनमोल हैं हम,
हर किसी के नहीं, खास हैं हम।
जो समझे हमें, वही पाएगा,
हीरे की परख हर कोई न कर पाएगा।
रंग नहीं, यह हमारी पहचान है,
मिट्टी की महक, हिंदुस्तान है।
जिसने इसे चाहा, उसने जाना,
सच्ची सुंदरता का पैमाना!
~ आनंद किशोर मेहता
सौंदर्य की सही परिभाषा
रंग से न आँको इंसान,
मन का सुंदर हो पहचान।
धूप जितनी तेज़ जले,
छाँव उतनी गहरी पले।
क्या गोरा, क्या काला रूप,
दिल की ज्योति सबसे अनूप।
सौंदर्य न चेहरे से चमके,
सच्चे मन से रोशनी दमके।
सम्मान निहित हो कर्मों में,
न चमकते झूठे रंगों में।
जो मन की ज्योति को जाने,
वही असली मोल पहचाने।
भेदभाव की दीवार गिराएँ,
हर रंग की गरिमा गाएँ।
दिल हो निर्मल, सोच हो गहरी,
यही सुंदरता, यही है लहरी।
~ आनंद किशोर मेहता
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