अनदेखी रोशनियाँ: नारी, वृद्ध और बच्चे
~ आनंद किशोर मेहता
हर शाम जब दीपक जलता है,
तो अंधेरे भागते हैं, और चारों ओर उजाला फैल जाता है।
पर क्या हम उन दीपों को देख पाते हैं जो हमारे ही बीच जल रहे हैं —
मौन, उपेक्षित, और फिर भी रोशनी बाँटते हुए?
हाँ, बात हो रही है —
नारी, वृद्ध और बच्चों की।
ये तीनों जीवन के ऐसे आयाम हैं,
जो हमें नज़र तो आते हैं,
पर उनकी अहमियत अक्सर धुंध में छिप जाती है।
1. नारी: मौन दीप, जो हर आंधी में जलता है
वो माँ है — जो खुद भूखी रहकर भी बच्चों को पेटभर खिलाती है।
वो बहन है — जो त्याग में भी मुस्कुराहट खोजती है।
वो पत्नी है — जो टूटकर भी सबको जोड़ती है।
उसके हाथों में सृजन है, मन में शक्ति है, और आत्मा में सहनशीलता।
पर उसके संघर्ष को हम अक्सर साधारण मान लेते हैं।
वह घर की लक्ष्मी तो है,
पर कभी-कभी घर की "मौन मजदूर" भी बन जाती है।
लेकिन सच यह है —
नारी अगर रोशनी न होती, तो जीवन अंधकार ही रह जाता।
आज की नारी केवल घर की नहीं,
समाज, विज्ञान, राजनीति और अध्यात्म की रोशनी भी बन चुकी है।
हमें नारी को श्रद्धा से नहीं, सम्मान और समानता से देखने की जरूरत है।
2. वृद्ध: जले हुए दीप, जिनमें अब भी उजाला बाकी है
जिन हाथों ने कभी परिवार और समाज को आकार दिया,
वो आज अकेलेपन से लड़ रहे हैं।
जिन आँखों में कभी दिशाएँ थीं,
वो आज अपनों को तरस रही हैं।
वृद्ध कोई बोझ नहीं — वे तो बीते कल की रोशनी हैं,
जो आज के लिए मार्गदर्शन बन सकती है।
उनके अनुभव किसी ग्रंथ से कम नहीं,
पर हमारी व्यस्तता ने उन्हें "पुराना अख़बार" बना दिया है।
हमें उनकी कहानियाँ सुननी चाहिए —
क्योंकि उनमें जीवन की सच्ची सीखें छुपी होती हैं।
उन्हें समय, संवाद और सम्मान की ज़रूरत है —
न सहानुभूति की, न दया की —
बस एक इंसानी जुड़ाव की।
3. बच्चे: छोटी चिंगारियाँ, जिनमें कल का सूरज छिपा है
बच्चे खिलौना नहीं, कच्ची मिट्टी हैं —
उन्हें जैसा आकार देंगे, वैसा ही समाज लौटेगा।
उनकी आँखों में दुनिया देखने का कौतूहल है,
पर क्या उन्हें हम वो दुनिया दे रहे हैं
जिसमें सीख, संस्कार और सुरक्षा हो?
आज का बच्चा कल का नेतृत्व है —
अगर हम आज उनके सपनों को सींचें,
तो कल वो समाज को प्रकाशमान वृक्ष बना सकते हैं।
उन्हें महंगी चीज़ें नहीं चाहिए —
बस आपका सच्चा समय, ध्यान, और प्यार।
**अब सवाल यह नहीं कि रोशनी कहाँ है —
सवाल यह है कि हम उसे पहचानते हैं या नहीं।**
हर नारी के त्याग में एक दीप है।
हर वृद्ध की झुर्री में अनुभव की रेखा है।
हर बच्चे की मुस्कान में आशा की किरण है।
अगर हम इन तीनों को समझ लें,
तो समाज को बिजली की नहीं,
इन मानवीय दीपों की ज़रूरत है।
चलो अब रोशनी सिर्फ लें नहीं — रोशनी बनें।
- माँ को “अच्छी बेटी” बनकर जवाब दें।
- वृद्धों को “सम्मान से भरी बातचीत” का तोहफा दें।
- बच्चों को “समय, ध्यान और सच्ची परवरिश” दें।
क्योंकि समाज की असली रौशनी… दीवारों पर नहीं,
इन तीन दिलों में छिपी है।
© 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved.
Comments
Post a Comment