पहलगाम की पुकार: एकता पर हमला, इंसानियत का इम्तिहान
(22 अप्रैल 2025 की आतंकी घटना पर आधारित)
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम के बाइसारन घाटी में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है।
यह घटना न केवल एक आतंकी हमला है, बल्कि यह हमारे देश की एकता, अखंडता और सहिष्णुता पर सीधा प्रहार है। ऐसे समय में हमें एकजुट होकर आतंकवाद के खिलाफ सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है। यह हमला हमें याद दिलाता है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में कोई ढील नहीं दी जा सकती। हमें अपने सुरक्षा तंत्र को और मजबूत करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि निर्दोष नागरिकों की जान की सुरक्षा सर्वोपरि हो।
इस दुखद घटना में जान गंवाने वालों के परिवारों के प्रति हमारी गहरी संवेदनाएं हैं। हम उनके दुख में सहभागी हैं और प्रार्थना करते हैं कि घायल जल्द से जल्द स्वस्थ हों। इस हमले के दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा मिले, यही हमारी न्याय प्रणाली से अपेक्षा है।
आज समय आ गया है जब देश के हर नागरिक को इस बात का संकल्प लेना होगा कि नफरत, हिंसा और आतंक के विरुद्ध हम एकजुट हैं। धर्म, भाषा, क्षेत्र – इन सबसे ऊपर उठकर हमें मानवता की रक्षा करनी है।
इस त्रासदी ने फिर हमें याद दिलाया है –
"हमें शांति के लिए नहीं, शांति के साथ मजबूती से खड़े होने के लिए तैयार रहना है।"
© 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved.:
ख़ामोश वादियों में चीख़
(22 अप्रैल 2025, पहलगाम की त्रासदी पर आधारित)
~ आनंद किशोर मेहता
वो बर्फ से ढँकी वादियाँ मौन थीं,
पेड़ों की शाखें भी सहमी-सहमी थीं।
जहाँ कभी गूंजते थे हँसी के तराने,
आज वहाँ बस चीख़ें दबी-दबी थीं।
पर्यटक आए थे सपनों की चादर ओढ़,
शांति के गीतों से मन को सजाने।
पर नफ़रत की आग में झुलसते हुए,
मौत ने उन्हें बेवजह था चुराने।
माँ की ममता, बच्चों की किलकारी,
एक पल में चुप सी हो गई।
किसी की बहन, किसी का उजला कल,
बस लहू की लकीर बन गई।
कश्मीर पूछता है हर दरख़्त से,
कब लौटेगा अमन का गीत?
क्या अब हर फिज़ा में बारूद ही होगा,
और हर सपना होगा अतीत?
हे वतन के प्रहरी, उठो अब संकल्प लो,
केवल मोमबत्तियाँ नहीं, प्रतिकार भी हो।
दोषी जो भी हो, बच न पाए,
अब न्याय का सूरज उभार दो।
शहीदों की आत्माएँ पूछती हैं मौन,
क्या मेरी कुर्बानी यूँ ही जाएगी?
या कोई नया सवेरा इस धरती पर,
इस अंधकार को हराएगी?
© 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved.
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