भाग पहला :
जीवन का सच्चा स्वर — भावनाएँ, ज़िम्मेदारियाँ और आत्मिक रिश्तों के रंग
~ आनंद किशोर मेहता
Freedom and Responsibility: A True Balance
"स्वतंत्रता का अर्थ केवल चुनाव का अधिकार नहीं, बल्कि उसके परिणामों की जिम्मेदारी भी है।"
"Freedom doesn't just mean the right to choose, but also the responsibility to face the consequences."
मनुष्य जीवन की सबसे सुंदर विशेषता है — स्वतंत्रता। यह हमें यह अधिकार देती है कि हम अपने रास्ते, अपने विचार और अपने निर्णय स्वयं चुन सकें। लेकिन अक्सर हम यह भूल जाते हैं कि हर स्वतंत्रता के साथ एक गहरी जिम्मेदारी भी जुड़ी होती है।
जब हम किसी राह को चुनते हैं — चाहे वह करियर की हो, जीवनसाथी की हो, या किसी आदर्श की — तो उस चुनाव से जुड़ी हर परिस्थिति को भी हमें स्वीकार करना होता है। केवल अच्छे परिणामों का हिस्सा बनना ही नहीं, बल्कि कठिनाइयों, संघर्षों और चुनौतियों में भी डटे रहना हमारी परिपक्वता को दर्शाता है।
यह संतुलन — चयन की स्वतंत्रता और परिणाम की जिम्मेदारी — हमें आत्मनिर्भर, सशक्त और जागरूक बनाता है। जब हम अपने फैसलों को पूरी ईमानदारी से स्वीकारते हैं, तो हम जीवन के सबसे गहरे पाठों को सीखते हैं।
अतः स्वतंत्रता को केवल अधिकार के रूप में न देखें, बल्कि उसे कर्तव्य और उत्तरदायित्व के साथ निभाएं — यही जीवन की सच्ची पूर्णता है।
© 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved.
2. मनाओ मत… समझो मुझे
~ आनंद किशोर मेहता
कभी-कभी इंसान नाराज़ नहीं होता,
बस थक जाता है…
जीवन की जिम्मेदारियों से,
लोगों की उम्मीदों से,
और सबसे अधिक — खुद से।
ऐसे समय में हम मुस्कराते हैं,
बातें करते हैं,
काम भी करते हैं,
पर भीतर कहीं एक सन्नाटा सा होता है।
कोई सुन ले… कोई देख ले…
ऐसी भी कोई चाह नहीं रहती,
पर अगर कोई समझ ले —
तो शायद आंखें भर आएँ।
मैं नाराज़ नहीं हूं,
इसलिए मनाने की जरूरत नहीं।
मैं चुप हूं,
क्योंकि हर शब्द थक चुका है।
हर उत्तर से पहले एक गहरा "क्यों?" खड़ा है,
जिसका जवाब सिर्फ समझने में छिपा है।
क्या कभी किसी को यूँ देखा है —
जो भीड़ में है, फिर भी अकेला लगता है?
जो बोलता है, पर उसकी बात में खालीपन होता है?
जो आपके पास बैठा है,
पर जैसे बहुत दूर कहीं खोया हुआ है?
ऐसे लोगों को प्यार की नहीं,
दया की नहीं,
समझ की जरूरत होती है।
आपका एक वाक्य —
"मैं समझता हूँ तुम्हें…"
उसके भीतर की हजारों आवाजों को शांत कर सकता है।
समझना… एक अनमोल कला है।
यह सुनने से ज़्यादा गहरा है,
यह जवाब देने से ज़्यादा ज़रूरी है।
यह सामने वाले को वो सम्मान देता है,
जो शायद पूरी दुनिया मिलकर भी नहीं दे पाती।
इसलिए,
जब कोई चुप हो जाए,
तो उसे "क्यों चुप हो?" मत पूछो।
बस उसके पास बैठो…
और कहो —
"मैं हूं… और तुम्हारे साथ हूं।"
कभी-कभी यही सबसे बड़ा सहारा होता है।
© 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved.
3. अंतिम समय की सच्चाई...
जब जीवन ढलने लगता है,
दोस्त, यार, रिश्तेदार, समाज — सब धीरे-धीरे दूर हो जाते हैं।
यहाँ तक कि अपनी औलाद भी अपनी ज़िम्मेदारियों में उलझ जाती है।
पर एक चेहरा, एक साथ —
जो हर परिस्थिति में आपके साथ खड़ा रहता है,
वो है आपका जीवनसाथी।
इसलिए...
समय रहते उसकी कद्र कीजिए,
क्योंकि अंत में वही होता है
जो आपके साथ सच में होता है।
"जिसने आपके संघर्ष, आँसू, मुस्कान और खामोशी — सब को जिया है, वही जीवनसाथी कहलाने के योग्य है।"
© 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved.
4. रूहानी रिश्ता: जहाँ "मैं" और "तुम" नहीं, केवल "हम" होता है
~ आनंद किशोर मेहता
रिश्ते कई प्रकार के होते हैं – खून के, सामाजिक, जिम्मेदारियों के, या भावनात्मक जुड़ाव के। लेकिन इन सबसे ऊपर एक और रिश्ता होता है – रूहानी रिश्ता, जो दिल से दिल का, अंतरचेतना (inner consciousness) से जुड़ा होता है। यह किसी शरीर, रूप, समय या दूरी पर निर्भर नहीं करता। इसमें कोई शर्तें नहीं होतीं, कोई अपेक्षाएँ नहीं — बस शुद्ध प्रेम और ऊर्जा का मिलन होता है।
इस संबंध में न “मैं” होता है, न “तुम”; सिर्फ एकता की भावना होती है। अहंकार, अधिकार या अपेक्षा जैसे शब्द इस पवित्र रिश्ते में स्थान नहीं पाते। यह मौन में भी संवाद करता है, और दूरी में भी निकटता बनाकर रखता है।
जब दो व्यक्तित्व अपने अंतर्मन या spiritual essence के स्तर पर एक-दूसरे को अनुभव करते हैं, तो यह जुड़ाव इतना गहरा होता है कि उसमें कोई अंधकार टिक नहीं सकता।
यह रिश्ता हमें जीवन की सच्ची ऊँचाइयों तक ले जाता है — जहाँ प्रेम आकर्षण नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक जागरूकता (spiritual awareness) बन जाता है। इसमें आप किसी को “पाने” के लिए नहीं जुड़ते, बल्कि उसे समझने और उसके लिए मौन प्रार्थना बनने के भाव से जुड़ते हैं।
इस तरह के रूहानी रिश्ते जीवन की राह में रोशनी बनते हैं। इनमें दूरी भी पासी बन जाती है, और मौन भी संवाद। ऐसे रिश्ते हमें सिखाते हैं कि सच्चा प्रेम वह है जो किसी को बाँधता नहीं, बल्कि उसे उसकी सम्पूर्णता के साथ स्वीकार करता है।
ऐसे रिश्ते को समझना और जीना ही सच्ची चेतना की पहचान है।
© 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved.
5. जो दिल से सबके लिए जीते हैं, अक्सर खुद के लिए कोई नहीं होता
~ आनंद किशोर मेहता
प्रस्तावना
कभी आपने गौर किया है कि जो इंसान सबसे ज़्यादा मुस्कुराता है, वही अंदर से सबसे ज़्यादा टूटा होता है? और जो सबसे ज़्यादा दिल से मदद करता है, वही सबसे ज़्यादा अकेला रह जाता है? इसका कारण सिर्फ़ एक है—दिल की सच्चाई और भावनात्मक गहराई।
दिल के साफ़ लोग: भावनाओं की मिसाल....
ऐसे लोग न दिखावा करते हैं, न स्वार्थ से संबंध निभाते हैं। उनका प्रेम, उनकी सेवा और अपनापन बिल्कुल निस्वार्थ होता है। वे किसी से कुछ पाने के लिए नहीं, बल्कि देने के लिए जीते हैं। लेकिन यही निश्छलता उन्हें भीड़ में अकेला बना देती है, क्योंकि आज के समय में लोग दिल नहीं, स्वार्थ देखते हैं।
वे हर किसी को अपना मानते हैं, पर…
दिल के साफ लोग हर किसी की मदद करना चाहते हैं, हर चेहरे पर मुस्कान लाना चाहते हैं। लेकिन जब वही लोग उनके दुखों को नहीं समझते, तो वे चुप हो जाते हैं। अपने दर्द को अकेले सहते हैं, क्योंकि वे किसी को तकलीफ़ नहीं देना चाहते। उनकी यही भावना उन्हें एक ‘अदृश्य अकेलापन’ दे देती है।
उन्हें समझने वाले बहुत कम होते हैं.....
ऐसे लोग दिखावे से दूर, गहराई से जुड़ाव चाहते हैं। लेकिन अधिकतर लोग उनके मौन, सरल और सच्चे स्वभाव को ‘कमज़ोरी’ समझ लेते हैं। जब कोई उनकी भावनाओं को हल्के में लेता है, तो वे टूट जाते हैं—पर बिना कुछ कहे।
फिर भी वे बदलते नहीं......
दुनिया चाहे जितना बदल जाए, दिल के साफ लोग अपनी प्रकृति नहीं बदलते। वे फिर भी मदद करेंगे, फिर भी प्रेम देंगे, फिर भी मुस्कुराएंगे—क्योंकि यही उनकी आत्मा की आवाज़ है। उनका अकेलापन उनका दुख नहीं, बल्कि उनका सौंदर्य होता है।
निष्कर्ष
सच तो यह है कि दिल के साफ लोग अकेले इसलिए होते हैं क्योंकि वे खुद भीड़ से ऊपर उठ चुके होते हैं। उनकी आत्मा इतनी निर्मल होती है कि वे केवल सच्चाई, अपनापन और भावनाओं की तलाश में रहते हैं। अगर आपके जीवन में ऐसा कोई व्यक्ति है, तो उसका सम्मान करें—क्योंकि वो इस मतलबी दुनिया में एक दुर्लभ खज़ाना है।
एक प्यारा Thought
"जो हर किसी की रोशनी बनते हैं, अक्सर खुद अकेले अंधेरे से लड़ते हैं।"
© 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved.
6. दिल से जीने वाले: मौन के पीछे की कहानी
~ आनंद किशोर मेहता
प्रस्तावना
हर दिल में एक दुनिया बसती है, जिसे कोई देख नहीं पाता। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो हर किसी के लिए जीते हैं—बिना शर्त, बिना अपेक्षा, बिना थकावट के। लेकिन जब बात खुद की होती है, तो वही दिल अक्सर सबसे अकेला रह जाता है।
सबके लिए जीने की आदत....
कुछ लोग अपने जीवन का हर क्षण दूसरों के लिए समर्पित कर देते हैं। वे अपनों की खुशी में खुद को भूल जाते हैं। दूसरों की परेशानी में पहले खड़े होते हैं, लेकिन जब खुद टूटते हैं, तो अक्सर कोई पास नहीं होता। क्योंकि सबको लगता है—“वो तो हमेशा मजबूत है।”
मौन के पीछे की आवाज़.....
ऐसे लोग बहुत कुछ कहते हैं, पर शब्दों से नहीं—अपने व्यवहार से, अपने त्याग से, अपने मौन से। उनका मौन उनकी आत्मा की सबसे गहरी पुकार होता है, जो सिर्फ वही सुन पाता है जो सच्चा होता है। वे अपनी बात ज़ाहिर नहीं करते, क्योंकि वे किसी को परेशान नहीं करना चाहते।
खुद के लिए कोई नहीं होता.....
जो सबसे ज़्यादा अपनापन देता है, उसे अक्सर ही सबसे ज़्यादा उपेक्षा मिलती है। वो सोचता है कि कभी तो कोई ऐसा आएगा, जो बिना माँगे उसकी तकलीफ को समझेगा। पर जब कोई नहीं आता, तो वह चुपचाप फिर से दूसरों के लिए जीने लग जाता है। और इस बार थोड़ी और टूटन के साथ।
यही होते हैं असली रौशनी के दीप....
ये लोग किसी रोशनी की तलाश नहीं करते, बल्कि खुद ही दीपक बनकर दूसरों का अंधेरा मिटाते हैं। इन्हें कोई ताली नहीं चाहिए, कोई पहचान नहीं चाहिए। ये बस दिल से जुड़ना जानते हैं, और उसी में उन्हें संतोष मिलता है।
निष्कर्ष
कभी अपने आसपास ऐसे किसी इंसान को देखो जो बहुत कम बोलता है लेकिन सबके लिए बहुत करता है। शायद वह वही इंसान है जो खुद के लिए किसी को तरस रहा है। उसकी चुप्पी को समझो… क्योंकि शायद वह आज भी उम्मीद कर रहा है कि कोई तो होगा जो उसे सिर्फ इसलिए चाहेगा—क्योंकि वह “वह” है।
"कुछ लोग अपनी मुस्कान से सबका जीवन रोशन करते हैं, और बदले में सिर्फ समझे जाने की खामोश ख्वाहिश रखते हैं।"
© 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved.
7. मुस्कुराने की सज़ा: एक मौन चीख की कहानी
~ आनंद किशोर मेहता
हर मुस्कान कोई खुशी नहीं होती, और हर हँसी के पीछे कोई मज़ाक नहीं छुपा होता। कई बार वो मुस्कुराता चेहरा, एक टूटी हुई आत्मा की दीवार होता है — जो दुनिया से अपनी सच्चाई छुपा रहा होता है।
हमने जीवन के किसी मोड़ पर जब पूरी सच्चाई और प्रेम के साथ हँसना चाहा, तो वही हँसी कई बार दुनिया की नजरों में हमें कमजोर बना गई। हमने विश्वास किया, अपनापन समझा, और जब जवाब में चोट मिली, तो वो सबसे गहरा ज़ख़्म बन गया।
ऐसे अनुभवों के बाद, मन डरने लगता है — किसी की मुस्कान से, किसी की मीठी बातों से। लगता है, कहीं फिर वही कहानी न दोहराई जाए। अब लोग चेहरे पर तो अपनापन लाते हैं, लेकिन भीतर की भावनाओं में कहीं न कहीं औपचारिकता और स्वार्थ छिपा होता है।
फिर भी, क्या यही अंत है? नहीं।
हर अनुभव हमें मजबूत बनाता है।
हर धोखा हमें सिखाता है कि अब किसे कितना स्थान देना है।
हर आंसू हमें भीतर से निखारता है — जैसे आग में तपकर सोना शुद्ध होता है।
अब मुस्कुराना हमारे लिए एक "अभिनय" नहीं, बल्कि एक आत्मिक संकल्प है — कि चाहे दुनिया जैसा भी व्यवहार करे, हम अपने भीतर की सच्चाई, करुणा और सकारात्मकता को नहीं छोड़ेंगे। क्योंकि सच्ची मुस्कान भीतर से आती है — और वह मुस्कान जो दर्द सहकर भी बनी रहती है, वही सबसे सुंदर होती है।
हम जब मुस्कराते हैं, तो वो किसी स्वार्थ से नहीं — बल्कि इसलिए कि हम टूटकर भी फिर खड़े हुए हैं। और यह मुस्कान अब एक मौन विद्रोह है — उस दुनिया के विरुद्ध जो बार-बार हमें गिराना चाहती है।
"खुश रहने का दिखावा करते हैं हम, वरना अंदर तो अब भी सन्नाटा रोता है।"
© 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved.
8. सच्चाई, भरोसा और टूटता आत्मविश्वास
~ आनंद किशोर मेहता
कभी सोचा है — जब हम किसी को अपनी सच्चाई बताते हैं, तो हम क्या करते हैं?
हम अपने भीतर के बंद दरवाज़े खोल देते हैं...
अपनी आंखों की नमी, अपने शब्दों की गहराई, अपने दिल की थरथराहट — सब कुछ किसी और की हथेली में रख देते हैं। यह कोई सामान्य व्यवहार नहीं, यह सबसे नाजुक, सबसे पवित्र भरोसे का रिश्ता होता है।
पर जब यही भरोसा उपहास बन जाए,
जब वही इंसान जिसे हम अपना समझते थे, हमारी सच्चाई को मज़ाक बना दे,
तो विश्वास के साथ-साथ आत्मा भी दरकने लगती है।
भरोसा — एक अनमोल लेकिन नाज़ुक पुल
हम जीवन में बहुत से लोगों से मिलते हैं, लेकिन कुछ ही होते हैं जिनसे हम अपने मन की गहराइयों को साझा करते हैं। और यह साझेदारी कोई सामान्य बात नहीं होती — यह एक पुल होता है, जो दो आत्माओं को जोड़ता है।
पर अगर यह पुल ही टूट जाए...?
अगर सामने वाला इस पुल पर चलने के क़ाबिल न हो...?
तो नीचे गिरती है केवल भावनाओं की दुनिया।
कमज़ोरी नहीं — साहस है अपनी सच्चाई बताना
लोग सोचते हैं कि अपनी कमज़ोरियाँ बताना मूर्खता है, परंतु सच्चाई यह है कि
कमज़ोरी को उजागर करना साहस का सबसे उज्ज्वल रूप है।
लेकिन यह साहस तब दुःख बन जाता है, जब हम गलत इंसान को चुन लेते हैं।
हर मुस्कुराता चेहरा वफ़ादार नहीं होता,
हर सुनने वाला समझने वाला नहीं होता।
चोट देने वाला दोषी है, नहीं कि सच्चाई बताने वाला
अगर किसी ने आपकी सच्चाई को मज़ाक बनाया —
तो आप दोषी नहीं हैं, वो है जिसने आपके भरोसे को ठुकराया।
आपकी सच्चाई आपकी ताक़त है, और अगर कोई उसे समझ नहीं सका,
तो वह व्यक्ति उस सच्चाई के लायक ही नहीं था।
सीख यही है — सच कहो, लेकिन सही शख़्स को
सच्चाई को दबाना नहीं है,
बस यह समझना है कि हर कोई आपके दिल की किताब पढ़ने लायक नहीं होता।
भरोसा दो — लेकिन पहले परखो।
सच्चाई बाँटो — लेकिन पहले समझो कि सामने वाला उसे संभाल भी सकेगा या नहीं।
कभी-कभी सबसे बड़ी समझदारी यह होती है कि आप खामोश रहें — जब तक कोई ऐसा न मिल जाए जो आपकी चुप्पी भी समझ सके।
“Sharing your truth is an act of courage, not weakness.
But only the wise know who truly deserves to hear it.”
© 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved.
9. मुझे ही क्यों ख्याल आता है ?
~ आनंद किशोर मेहता
कभी-कभी दिल ये सवाल करता है —
"मुझे ही क्यों ख्याल आता है कि किसी को बुरा न लग जाए?"
और फिर वही दिल धीरे से फुसफुसाता है —
"क्या कभी किसी को ये ख्याल आता है कि मुझे भी बुरा लग सकता है?"
हम में से कई लोग ऐसे होते हैं जो हर बात कहने से पहले दस बार सोचते हैं — कहीं कोई आहत न हो जाए, किसी का मन न दुखे, कोई गलत न समझ ले।
हम अपनी भावनाओं को सहेजते रहते हैं, और अक्सर दूसरों की खुशी के लिए खुद को चुप कर लेते हैं।
हम सोचते हैं — "चलो, मुझे सह लेना आता है।"
लेकिन क्या यह सहनशीलता हमेशा उचित होती है?
समाज में बहुत से लोग बेझिझक कह देते हैं जो उनके मन में आता है, बिना इस बात की परवाह किए कि सामने वाले पर क्या असर पड़ेगा।
और जब हम अपने भीतर की पीड़ा छिपाकर मुस्कुराते हैं, तो वे इसे हमारी 'मजबूती' समझ बैठते हैं — जबकि वह मुस्कान हमारे टूटते मन की ढाल होती है।
हकीकत यह है:
संवेदनशीलता एक ताकत है,
लेकिन अगर वह एकतरफा हो जाए, तो धीरे-धीरे अंदर से खोखला कर देती है।
हर बार दूसरों के लिए सोचने वाला इंसान भी चाहता है कि कोई एक बार उसके लिए भी सोचे।
कोई ऐसा हो, जो पूछे — "तुम्हें कैसा लगा?"
जो यह माने कि तुम्हारे दिल की चोट भी असली है।
इसलिए ज़रूरी है कि हम अपनी भावना को भी उतना ही सम्मान देना सीखें,
जितना हम दूसरों की भावनाओं को देते हैं।
अपनी आत्मा की आवाज़ को दबाना नहीं,
बल्कि उसे ससम्मान प्रकट करना सीखना चाहिए।
शायद हमें अब यह भी कहना होगा —
"हाँ, मैं तुम्हें समझता हूँ... लेकिन मुझे भी समझे जाने की ज़रूरत है।"
"जिस दिन तुमने अपने आँसुओं को भी वही इज़्ज़त दे दी जो तुम दूसरों की मुस्कानों को देते हो,
उस दिन से तुम्हारी आत्मा रोशनी में नहाने लगेगी।"
© 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved.
10. जो बीत रहा है वो समय नहीं, जीवन है
(यत् गच्छति तत् न कालः जीवनम्)
~ आनंद किशोर मेहता
हम अक्सर कहते हैं, “समय बहुत तेज़ी से बीत रहा है” — लेकिन क्या वास्तव में केवल समय बीत रहा है? या फिर हमारे जीवन का वह हिस्सा, जिसे हम कभी दोबारा नहीं जी सकते?
संस्कृत का एक अत्यंत सारगर्भित वाक्य है —
"यत् गच्छति तत् न कालः, जीवनम्।"
अर्थात् जो बीत रहा है, वह केवल समय नहीं है, वह स्वयं जीवन है।
यह वाक्य केवल दार्शनिक नहीं, बल्कि गहराई से जीवन के मूल सत्य को उद्घाटित करता है।
समय तो वह माप है जो घड़ी में टिक-टिक करता है, परन्तु जो वास्तव में समाप्त हो रहा है, वह है हमारा वर्तमान, हमारी साँसें, हमारी चेतना में बीतता हुआ जीवन।
समय का भ्रम और जीवन का यथार्थ
कई लोग कहते हैं — "समय खराब चल रहा है," "कुछ समय बाद सब ठीक होगा," या "थोड़ा और समय मिल जाता तो..."
पर क्या हम यह समझते हैं कि जो समय 'बीत गया' उसे कभी पाया नहीं जा सकता?
समय न अच्छा होता है, न बुरा — वह तो निष्पक्ष और निरंतर बहता रहता है।
असल में, हम समय को जैसे जीते हैं, वैसा ही वह हमारे लिए बन जाता है।
जीवन की जागरूकता
हममें से बहुत से लोग भविष्य की चिंता और अतीत के पछतावे में उलझ कर वर्तमान को खो देते हैं।
परंतु वर्तमान ही जीवन है।
भविष्य एक भ्रम है, और अतीत एक स्मृति।
जीवन वहीं है जहाँ आप इस क्षण हैं — आपकी आँखों में, आपकी साँसों में, आपके कर्मों में।
हर क्षण की पवित्रता को समझें
एक विद्यार्थी के लिए बीता हुआ समय पढ़ाई का अवसर खोने जैसा है।
एक माता-पिता के लिए, बच्चों के साथ न बिताया गया समय, पलट कर नहीं आता।
एक शिक्षक के लिए, बच्चों की आँखों में जागी हुई जिज्ञासा का वह क्षण, शायद फिर न लौटे।
इसलिए जो भी कर रहे हैं, उसे पूरी जागरूकता, प्रेम और सम्मान के साथ करें।
हर क्षण, हर अनुभव, हर संबंध जीवन का ही एक पवित्र अंश है।
जीवन का सम्मान = समय का सम्मान
जब हम समय का सम्मान करते हैं —
समय हमें अनुभव, शांति, और परिपक्वता देता है।
और जब हम समय को व्यर्थ गँवाते हैं —
समय हमें अपूर्णता, पछतावा, और असंवेदनशीलता दे जाता है।
निष्कर्ष: जीवन को जीना है, गिनना नहीं
घड़ी की सुइयों को मत देखिए,
अपने हृदय की धड़कनों को महसूस कीजिए।
हर धड़कन कह रही है — “मैं जीवन हूँ, मुझे व्यर्थ मत जाने दो।”
इस लेख का उद्देश्य यही है —
कि हम जीवन को समझें, समय का सच्चा मूल्य जानें,
और हर बीते पल को एक अर्थपूर्ण स्मृति बना कर जिएं।
© 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved.
Comments
Post a Comment