आज की बात: चलो बच्चों, सपनों की ओर!
~ आनंद किशोर मेहता
सोचो, एक बच्चा खिड़की के पास बैठा है। किताब उसके सामने खुली है, लेकिन उसका मन कहीं और भटक रहा है। आँखों में एक सवाल है — "क्या मैं सच में कुछ कर सकता हूँ?" तभी एक आत्मीय आवाज आती है —
बेटा, अब उठो… तुम्हारा समय आ गया है।
यह आवाज किसी और की नहीं, बल्कि उस उम्मीद की किरण की है, जो हर बच्चे के भीतर बसती है। आज की हमारी यही बात थी — बच्चों को वह आवाज सुनाना, उन्हें उनके भीतर छिपे सपनों से मिलवाना।
हर बच्चा कुछ बनना चाहता है — कोई डॉक्टर, कोई वैज्ञानिक, कोई खिलाड़ी या कलाकार। पर सिर्फ चाहने से कुछ नहीं होता। सपनों को हकीकत बनाने के लिए रोज़ थोड़ा-थोड़ा चलना पड़ता है। हमने बच्चों से एक सीधी और सच्ची बात कही:
धीरे-धीरे चलो, लेकिन रुकना मत।
हर दिन थोड़ा पढ़ो, थोड़ा समझो, थोड़ा आगे बढ़ो।
और अगर मन में कोई डर आए, तो खुद से कहो —
बेटा: लेकिन मुझसे नहीं हो पाएगा।
शिक्षक (मुस्कुराते हुए): अगर चलोगे नहीं तो कैसे जानोगे?
पहला कदम भरोसे से भरोसा दिलाता है।
हमने बच्चों को एक कविता सुनाई — जो जैसे उनके मन की आवाज बन गई। ये पंक्तियाँ उनके दिल में उतर गईं:
हर रोज़ खुद से कुछ कहना —
"मैं कर सकता हूँ, मैं चलूँगा,
हर मुश्किल से लड़ूँगा!"
हमने बच्चों को समझाया कि कामयाबी एक जादू नहीं होती। वह मेहनत, धैर्य और आत्म-विश्वास का परिणाम होती है। जैसे बीज धीरे-धीरे पेड़ बनता है, वैसे ही हर बच्चा थोड़ा-थोड़ा करके महान बनता है।
तो बच्चों, किताबें तुम्हारा इंतज़ार कर रही हैं,
कक्षा तुम्हारी मुस्कान चाहती है,
और सफलता तुम्हें पुकार रही है।
अब समय है — चल पड़ो अपनी मंज़िल की ओर!
क्योंकि —
तुम कर सकते हो,
तुम खास हो,
और तुम्हारा सपना सच हो सकता है —
अगर तुम ठान लो।
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