साँवले रंग की कीमत
~ आनंद किशोर मेहता
परिचय
सौंदर्य की परिभाषा समय के साथ बदलती रही है। कभी गोरा रंग श्रेष्ठता और आकर्षण का प्रतीक माना गया, तो कभी साँवला और गहरा रंग गरिमा, शक्ति और रहस्य का। लेकिन क्या सुंदरता केवल त्वचा के रंग तक सीमित है? क्या किसी व्यक्ति का मूल्य उसकी सोच, चरित्र और कर्म से अधिक उसके बाहरी रूप पर निर्भर करता है?
यह लेख समाज में व्याप्त इस मानसिकता की पड़ताल करता है और साँवले रंग की वास्तविक कीमत को उजागर करता है।
सौंदर्य का वास्तविक पैमाना
सौंदर्य केवल बाहरी रंग-रूप से परिभाषित नहीं होता, बल्कि यह आत्मविश्वास, आचरण और व्यक्तित्व की आभा में प्रकट होता है। साँवले रंग वाले लोग भी उतने ही सम्मान और गरिमा के अधिकारी हैं, जितने किसी अन्य रंग के व्यक्ति।
इतिहास साक्षी है कि महात्मा गांधी, नेल्सन मंडेला, बाबा साहेब अंबेडकर और ए. पी. जे. अब्दुल कलाम जैसे महान व्यक्तित्वों का रंग गोरा नहीं था, लेकिन उनके विचारों और कार्यों की रोशनी ने पूरे विश्व को आलोकित किया। उन्होंने यह सिद्ध किया कि असली पहचान रंग में नहीं, बल्कि ज्ञान, संघर्ष और कर्म में होती है।
समाज में व्याप्त पूर्वाग्रह
आज भी समाज में यह धारणा गहराई से जमी हुई है कि गोरा रंग सुंदरता और सफलता का प्रतीक है। विज्ञापन, फिल्में और सौंदर्य उत्पाद इस सोच को और मजबूत करते हैं। "गोरी त्वचा" को उच्च वर्ग, आकर्षण और श्रेष्ठता से जोड़ा जाता है, जबकि साँवले रंग को आत्मविश्वास बढ़ाने की सलाह दी जाती है, मानो यह कोई कमजोरी हो।
यह सोच पूरी तरह से भ्रामक और अन्यायपूर्ण है। सौंदर्य का कोई निश्चित पैमाना नहीं हो सकता। यदि हम केवल बाहरी रंग-रूप को सुंदरता का मापदंड मानेंगे, तो हम सच्ची सुंदरता और प्रतिभा की अनदेखी कर देंगे।
साँवले रंग की गरिमा
गहरे रंग के लोगों में एक अनोखी आभा होती है। उनका आत्मविश्वास, धैर्य और व्यक्तित्व की दृढ़ता उनके रंग से कहीं अधिक प्रभावशाली होती है। साँवला रंग सहजता, स्थिरता और गहराई का प्रतीक है।
भारतीय संस्कृति में भगवान श्रीकृष्ण, श्रीराम और माँ काली जैसे दिव्य रूप साँवले रंग के प्रतीक हैं। यह दर्शाता है कि साँवला रंग कमजोरी नहीं, बल्कि शक्ति, ऊर्जा और आत्मिक सौंदर्य का प्रतीक है।
मानसिकता में बदलाव की आवश्यकता
समाज को इस रूढ़िवादी सोच से ऊपर उठना होगा। व्यक्ति का मूल्य उसकी बुद्धिमत्ता, कर्म और चरित्र से आँका जाना चाहिए, न कि उसकी त्वचा के रंग से। असली सुंदरता चेहरे में नहीं, बल्कि विचारों और हृदय की पवित्रता में होती है।
हमें यह संकल्प लेना होगा कि हम रंगभेद की मानसिकता को छोड़कर एक समानता और सम्मान से भरा समाज बनाएँ, जहाँ हर व्यक्ति को उसकी प्रतिभा, योग्यता और गुणों के आधार पर पहचाना जाए, न कि उसके रंग के आधार पर।
निष्कर्ष
साँवला रंग कोई सीमा नहीं, बल्कि एक विशिष्टता है। यह गहराई, गरिमा और सच्चे आत्म-सौंदर्य का प्रतीक है। सुंदरता आँखों से नहीं, बल्कि हृदय से देखी जाती है। हमें इस सच्चाई को स्वीकार कर समाज में व्याप्त भेदभाव को समाप्त करना होगा और हर रंग की सुंदरता को समान रूप से अपनाना होगा।
क्योंकि असली सुंदरता चेहरे में नहीं, विचारों में होती है!
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