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!! श्री कृष्ण कहते हैं !!
**"सुनो पार्थ — अपने साथ गलत करने वालों को जरूर याद रखो,
प्रस्तावना:
जीवन में जब हमें अन्याय का सामना करना पड़ता है, तो सिर्फ वही व्यक्ति हमें दुःख नहीं पहुँचाता जो हमें नुकसान पहुँचाता है। कभी-कभी, हमें उस चुप्पी से भी अधिक पीड़ा होती है, जो हमारे आस-पास के लोग रहते हुए भी किसी अन्याय के खिलाफ बोलने की बजाय तमाशा देखते हैं। श्री कृष्ण की यह वाणी, न केवल कर्म और न्याय का ज्ञान देती है, बल्कि यह यह भी समझाती है कि मौन दर्शक कभी-कभी अधर्म के बराबर होते हैं।
1. श्री कृष्ण की दृष्टि: केवल कर्म नहीं, चेतना का मार्ग
महाभारत के युद्ध के मैदान में अर्जुन, जब अपने अपनों से लड़ने की स्थिति में खड़ा था, उसकी मनःस्थिति अत्यंत संघर्षमय थी। वह धर्म और अधर्म के बीच झूल रहा था। श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा:
"न्याय के समय तटस्थ रहना भी अन्याय है। जो सत्य के पक्ष में खड़ा नहीं होता, वह अधर्म को मौन समर्थन देता है।"
यह वाक्य केवल युद्ध के संदर्भ में नहीं, बल्कि जीवन के प्रत्येक संघर्ष में लागू होता है।
2. वार्ता दृष्टिकोण: जब श्री कृष्ण अर्जुन से बोले...
श्री कृष्ण: "पार्थ, दुर्योधन का अधर्म स्पष्ट था, लेकिन क्या वही केवल दोषी था? जो भीष्म ने देखा और चुप रहे, जो द्रोण ने सहा और कुछ न कहा, जो सभा में बैठे और मौन रहे — क्या वे निर्दोष हैं?"
श्री कृष्ण की यह वाणी हमारे जीवन में भी अत्यधिक प्रासंगिक है। कई बार, हम अन्याय का शिकार होते हैं और चारों ओर लोग उसे देखकर चुप रहते हैं। वे तमाशा देखते हैं, परंतु बोलते नहीं। श्री कृष्ण कहते हैं, ऐसे लोग भी उतने ही दोषी होते हैं, जितना वह जो अन्याय करता है।
3. आज के जीवन में यह दृष्टि क्यों ज़रूरी है?
आजकल हम देखते हैं कि जब कोई पीड़ित होता है तो उसके पास सहारा देने वाला कोई नहीं होता। लोग अक्सर अपने आराम के कारण या भय से चुप रहते हैं। लेकिन जब हम किसी के दर्द को देखकर भी चुप रहते हैं, तो हम अप्रत्यक्ष रूप से उस अधर्म का हिस्सा बन जाते हैं। श्री कृष्ण का यह संवाद हमें सिखाता है कि मौन सहमति से बचना चाहिए, और हमें हर परिस्थिति में न्याय के पक्ष में खड़ा होना चाहिए।
4. संतुलन और आत्मज्ञान की सीख
यह संदेश प्रतिशोध या कटुता का नहीं है। यह संदेश है जागरूकता का — यह हमें यह समझने की ताकत देता है कि हमें केवल उन लोगों को ही याद नहीं रखना चाहिए जिन्होंने हमें ठगा, बल्कि हमें उन लोगों का भी हिसाब रखना चाहिए जिन्होंने तमाशा देखा और कुछ नहीं कहा।
श्री कृष्ण ने अर्जुन को यह सिखाया कि, “तुम्हें जीवन में परिस्थितियाँ बदलने के लिए खड़ा होना होगा। जब अन्याय हो, तब तुम अकेले खड़े रहकर भी सत्य का समर्थन करो।”
निष्कर्ष:
श्री कृष्ण की यह वाणी जीवन के उन हर क्षणों का आह्वान है, जब हमें न केवल अपनी स्थिति पर ध्यान देना होता है, बल्कि हमें यह भी देखना होता है कि कौन हमारे साथ था और कौन चुपचाप तमाशा देखता रहा। केवल अन्याय करने वालों को ही नहीं, बल्कि उन लोगों को भी याद रखना चाहिए जिन्होंने हमारा समर्थन नहीं किया।
जब हम अपने भीतर की चेतना से जागृत होते हैं, और सत्य के पक्ष में खड़े होते हैं, तब हम जीवन में सच्चे अर्थों में "योगस्थ" होते हैं। श्री कृष्ण का यह संदेश केवल युद्ध का नहीं, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के संघर्ष का मार्गदर्शन है।
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