वो अनकहा जो रिश्तों को तोड़ देता है
~ आनंद किशोर मेहता
रिश्ते कभी एक दिन में नहीं टूटते।
ना ही कोई बड़ी घटना इसकी वजह होती है।
यह तो छोटे-छोटे अनदेखे क्षणों की वो दरारें हैं,
जब किसी ने सुना नहीं, किसी ने समझा नहीं,
और किसी ने चाहकर भी कुछ कहा नहीं।
हर बार जब हम अपनी भावनाएँ दबा जाते हैं,
हर बार जब हम सामने वाले को 'समझ जाएगा' मान लेते हैं —
हम अनजाने में एक ईंट खींच लेते हैं उस नींव से,
जिस पर कभी विश्वास की दीवार खड़ी थी।
हम सोचते हैं, "अभी नहीं तो बाद में कह दूँगा",
पर वो 'बाद' कभी आता नहीं।
और एक दिन,
हम पाते हैं कि वो रिश्ता सिर्फ यादों में रह गया है —
उससे जुड़ा इंसान अब हमारे पास नहीं।
या अगर है भी...
तो वैसा नहीं रहा, जैसा कभी हुआ करता था।
ऐसे में हमें खुद से पूछना होगा —
क्या हम सच में आगे बढ़े हैं?
या दूसरों को पीछे छोड़ते हुए खुद को खो बैठे हैं?
जीवन में सम्मान चाहिए, पर उस कीमत पर नहीं
कि किसी को छोटा करके खुद बड़े दिखें।
हमें हँसना है, मगर किसी की चुप्पी की कीमत पर नहीं।
हमें उड़ना है, मगर किसी के सपनों को रौंदकर नहीं।
रिश्ते सँजोने हैं...
तो शब्दों से नहीं, संवेदनाओं से बोलना सीखिए।
ताकि कोई चुपचाप अपनी ईंट खींचने से पहले,
आपसे एक बार जरूर बात करे।
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© 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved.
रिश्ते थे... रूह की सरहदों जैसे
~ आनंद किशोर मेहता
रिश्ते थे... रूह की सरहदों जैसे,
ना छुए जा सकते थे, ना भुलाए जा सकते थे।
हर लम्हा वो पास थे, फिर भी
हर सवाल अधूरा था, हर जवाब चुप।
कोई आवाज़ नहीं दी, कोई शिकायत नहीं की,
बस धीरे से... अपने हिस्से की ईंट खींच ली।
और इमारत जो थी यकीन की,
वो मुस्कराकर ढह गई — बिना शोर के।
हमें लगा, खो दिया… शायद पल भर को,
पर खोने का दर्द तब आया,
जब लौटने की कोई राह नहीं बची।
अब समझ आया —
मौन भी बोलता है, जब दिल सुनना जानता है,
और प्रेम भी चुप हो जाता है,
जब स्वार्थ ऊँचा बोलने लगे।
हमने सीखा —
सम्मान बाँटना है, झुककर नहीं;
प्रेम देना है, भूलकर नहीं;
आगे बढ़ना है, ठोकर मारकर नहीं।
क्योंकि रिश्ते…
सिर्फ नामों से नहीं टिकते,
वो टिकते हैं वहाँ…
जहाँ आत्मा, आत्मा को पहचान ले।
THOUGHTS:
रिश्तों को निभाने के लिए शब्दों से ज़्यादा…
संवेदनाओं का होना ज़रूरी है।
जो मौन से डरते हैं,...वो अक्सर रिश्तों की गहराई तक पहुँच ही नहीं पाते।
अहंकार रिश्तों को नहीं तोड़ता,....वो बस धीरे-धीरे रूह से रूह की दूरी बढ़ा देता है।
सम्मान माँगने से नहीं मिलता,...वो उस मौन में बसता है… जहाँ दिल दिल से बात करता है।
हर बार जाना जरूरी नहीं होता,.....कभी-कभी रुककर सुन लेना ही रिश्ता बचा लेता है।
जिसने चुप रहकर दर्द बाँटा है,...उसे कभी हल्के में मत लेना —वो प्रेम का सबसे मजबूत स्तंभ होता है।
© 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved.
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