मीठा झूठ और कड़वा सच: रूह की एक कहानी
© 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved.
कुछ लोग हर दिल अज़ीज़ होते हैं,
क्योंकि वो सच नहीं बोलते—
बल्कि मीठे झूठ से रिश्तों को सजाते हैं।
हर किसी के चहेते बनते हैं,
हर महफ़िल में मुस्कानें लुटाते हैं।
और कुछ...
जो रूह की बात करते हैं,
जिनके लफ़्ज़ आईने से साफ़ होते हैं,
वो हर हफ़्ते किसी अपने से दूर हो जाते हैं।
कभी 'कड़वे' कहलाते हैं,
तो कभी 'कठोर' या 'अहंकारी'...
पर हकीकत ये है—
जो झूठ से सजता है,
वो जल्दी बिखर जाता है।
और जो सच से बनता है,
वो देर से जुड़ता है—
मगर गहराई में उतर जाता है।
सच की राह आसान नहीं,
मगर यह वही रास्ता है
जिस पर चलकर इंसान
खुद से भी नहीं झिझकता।
सूफ़ी कहते हैं—
“सच वह इश्क़ है,
जो दिल को जलाता है,
मगर रूह को रोशन कर देता है।”
तो चुनो वही शब्द
जो प्रेम से लिपटे हों,
सच कहें—पर सिर नहीं झुकाएँ।
और झूठ ना कहें—बस चुप रह जाएँ।
सूफ़ियाना सार:
झूठ मीठा हो सकता है,
पर सच मुकम्मल होता है।
अगर बोलना ही है,
तो सच को स्पर्श बनाकर कहो—
जो लगे भी ना, मगर खुशबू छोड़ जाए।
सच की कीमत
(लेख/कविता)
मीठा झूठ बोलने वाले
हर महफ़िल में सरताज बन जाते हैं।
हर किसी के चहेते,
हर किसी के प्यारे कहलाते हैं।
और जो सच बोल दे—
साफ़, स्पष्ट, बिना लाग-लपेट के...
उन्हें लोग "कड़वा", "बद्तमीज़"
या "अहंकारी" कहकर दरकिनार कर देते हैं।
हर हफ्ते एक-दो रिश्ते टूट जाते हैं,
लेकिन आत्मा हल्की हो जाती है।
हर संवाद में झूठ नहीं भरना पड़ता,
इसलिए आंखें सीधी और आत्मा शांति में रहती है।
सच बोलने वाला जानता है—
रिश्तों की संख्या नहीं,
गहराई मायने रखती है।
और एक दिन,
जब दिखावे की दीवारें ढह जाती हैं,
तो सच बोलने वालों की ही बातें
सबसे ज़्यादा याद आती हैं...
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