जिससे उम्मीद थी समझने की, उसने मुझे सुधारने की ठान ली
~ आनंद किशोर मेहता
कभी-कभी जीवन में कोई ऐसा व्यक्ति आता है जिससे हम न सिर्फ अपने मन की बात कहते हैं, बल्कि दिल की परतें भी खोल देते हैं। हमें लगता है कि यही तो वो है जो हमें बिना कहे समझ लेगा। जिसकी आंखों में हमारे भीतर की हलचल पढ़ने की क्षमता होगी। जिसे हम अपने टूटे टुकड़ों के साथ स्वीकार कर पाएंगे। और वह हमें वैसे ही अपना लेगा।
पर जब वही व्यक्ति, जिसे हमने समझने वाला चुना, हमें 'सुधारने' लगे—तो वह सबसे बड़ी चुभन होती है।
"जो हमें समझते हैं, वे हमें कभी भी सुधारने की कोशिश नहीं करते।"
मैंने शब्द नहीं मांगे थे,
बस थोड़ा सा समझना चाहा था।
लेकिन उसने मेरे भावों को
'कमज़ोरी' समझ लिया।
"हमारी कमजोरी हमारी सबसे बड़ी ताकत बन सकती है, यदि उसे बिना किसी डर के अपनाया जाए।"
कभी-कभी इंसान बस चाहता है कि कोई उसे सुने, उसके दर्द को महसूस करे, बिना कोई नसीहत दिए। वह बस चाहता है कि कोई उसके साथ बैठे और कहे—"हाँ, मैं समझता हूँ तुम्हें, जैसा तुम हो वैसा ही।"
पर जब वह व्यक्ति आपको सुधारने की नीयत से देखे, आपकी सोच, आपका स्वभाव, आपकी भावनाएँ बदलने की कोशिश करे—तो वह समझ नहीं, नियंत्रण की भावना होती है।
"सबसे गहरी समझ वही है जो बिना किसी जजमेंट के, पूरी तरह से स्वीकार कर ली जाए।”
और तब लगता है,
शायद मैं गलत नहीं था,
गलत तो मेरी उम्मीद थी।
"सच्ची समझ वही है जो बिना बदलाव की चाहत के, किसी को वैसा ही अपनाए जैसा वह है।"
किसी को समझना एक कला है—और यह केवल वही कर सकता है जिसने खुद को गहराई से जाना हो। जो स्वयं संवेदनशील हो, वह ही किसी और की भावनाओं को बिना तोड़े पकड़ सकता है।
लेकिन अधिकतर लोग सोचते हैं कि समझने का मतलब है—अपनी सोच दूसरों पर थोप देना, उन्हें अपनी कसौटी पर कसना। यही भ्रम एक रिश्ते को धीरे-धीरे सड़ा देता है।
"समझने की कोशिश करना हमेशा बेहतर होता है, बजाय इसके कि हम किसी को बदलने की कोशिश करें।"
जब हम किसी को सुधारने लगते हैं, तो हम अनजाने में उसे यह संकेत देते हैं कि वह जैसा है, वैसा ठीक नहीं है।
पर क्या प्यार का मतलब शर्तों के साथ स्वीकारना है?
नहीं।
प्यार तो वह आइना है जो बिना बदले, बिना काटे, आपको खुद से मिलाता है।
"जिंदगी का असल जश्न तब होता है जब हम दूसरों को बिना किसी अपेक्षा के स्वीकार कर लेते हैं।"
मुझे आज भी कोई समझेगा, इसका भरोसा है।
लेकिन अब उम्मीद उन्हीं से है जो बिना बदले,
मुझे मेरे मौन में भी सुन सकते हैं।
तू जैसा है, वैसा ही रह
~ आनंद किशोर मेहता
तू जैसा है, वैसा ही रह,
बिन कहे भी, सब कुछ कह।
न कोई पर्दा, न कोई छल,
दिल हो जैसे खुला महल।
तेरे लब खामोश सही,
पर रूह मेरी तुझसे जुड़ी।
नज़र तेरी कुछ बोले ना,
फिर भी हर सच्चाई दिखी।
न तू मुझे सुधार सके,
न मैं तुझे संवार सकूं।
बस एक-दूजे को जान सकें,
यही काफी है, क्या कम सकूं?
प्यार अगर है सच में गहरा,
तो शर्तों का क्या काम वहाँ?
जहाँ खुदा बसता हो दिल में,
वहाँ न बदलाव, न कोई सज़ा।
तू रहे तू, मैं रहूं मैं,
और फिर भी एक रंग बनें।
जैसे मिट जाएं दो बूँदें,
दरिया में जाकर एक बनें।
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