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Showing posts from June, 2025

राजाबरारी आदिवासी विद्यालय: शिक्षा, सेवा और स्वावलंबन का आदर्श मॉडल

राजाबरारी आदिवासी विद्यालय: शिक्षा, सेवा और स्वावलंबन का आदर्श मॉडल    ~ आनंद किशोर मेहता प्रस्तावना भारत जैसे विशाल देश में जहाँ शिक्षा का अधिकार संविधान द्वारा सुनिश्चित किया गया है, वहीं कुछ क्षेत्र आज भी इस अधिकार से वंचित हैं। विशेष रूप से आदिवासी समुदायों में अशिक्षा, गरीबी और सामाजिक उपेक्षा ने वर्षों से विकास के रास्ते को रोके रखा है। ऐसे में यदि कोई विद्यालय न केवल शिक्षा का दीपक जलाता है, बल्कि सेवा, आत्मनिर्भरता और समग्र विकास का मार्ग भी प्रशस्त करता है, तो वह केवल स्कूल नहीं, एक क्रांति का केंद्र बन जाता है। "राजाबरारी आदिवासी विद्यालय" , मध्य प्रदेश के हरदा जिले के सघन वन क्षेत्र में स्थित, एक ऐसा ही आदर्श उदाहरण है, जिसे दयालबाग शिक्षा संस्थान (Dayalbagh Educational Institute, Agra) की प्रेरणा, मार्गदर्शन और सेवा भावना के अंतर्गत संचालित किया जा रहा है। स्थापना की पृष्ठभूमि इस विद्यालय की शुरुआत 1936–37 में एक प्राथमिक विद्यालय के रूप में हुई थी। उस समय राजाबरारी एक घना वन क्षेत्र था, जहाँ आधुनिक सुविधाओं और शिक्षण संसाधनों की कल्पना भी नहीं की जा...

आगरा से राजाबरारी: रेल की रफ्तार, जंगल की खामोशी और रास्तों की कहानी

🚆 आगरा से राजाबरारी: रेल की रफ्तार, जंगल की खामोशी और रास्तों की कहानी  ---- आनन्द किशोर मेहता  यात्रा की रूपरेखा तिथि: 21 जून 2025 मार्ग: आगरा → ग्वालियर → झाँसी → इटारसी → टिमरनी → राजाबरारी कुल दूरी: लगभग 700 किमी समय: लगभग 9–10 घंटे (विविध पड़ावों और विश्राम सहित) सांध्य अंधकार में प्रारंभ — जब यात्रा सिर्फ शरीर की नहीं, चेतना की होती है रात्रि 7:45 पर जैसे ही ट्रेन आगरा स्टेशन से रवाना हुई, मन में एक शांत रोमांच भर उठा। शहर की चकाचौंध और हलचल पीछे छूटती जा रही थी और सामने थी एक नई, अनदेखी दुनिया की ओर यात्रा। प्लेटफॉर्म पर विदाई की व्यस्तता, धीमे-धीमे बढ़ती रेल की गति, और बाहर छा रहा अंधकार — सब मिलकर एक आत्मिक संगीत रच रहे थे। खिड़की से झांकती नज़रों के सामने दृश्य बदलते जा रहे थे — मानो हर फ्रेम में कोई कहानी गूँज रही हो। चंबल की वादियाँ — रात की खामोशी में गूंजता जीवन जब ट्रेन चंबल की गहराइयों से गुज़री, तब चारों ओर सन्नाटा था। केवल पटरियों की खड़खड़ाहट और ट्रेन की सीटी उस मौन को चीरती प्रतीत हो रही थी। पेड़ों के साए, अंधेरे में टिमटिमाते गाँव, और रहस्...

When Consciousness Purifies Intelligence: A Journey Beyond the Mind

When Consciousness Purifies Intelligence: A Journey Beyond the Mind   --Anand Kishor Mehta Intelligence is, by nature, a function of the mind — it gathers, compares, stores, and analyzes information. It is sharp, logical, and analytical. But consciousness does not belong to the mind — it is the luminous presence behind the mind , a silent witness that does not react but reveals . In the early stages of life, we rely on intelligence to understand the world. It is shaped by education, experience, and memory. But as long as intelligence remains untouched by consciousness , it becomes a mechanical process — like a powerful computer disconnected from the soul. However, when consciousness begins to awaken , a miraculous transformation occurs. Intelligence slowly begins to drop its ego, pride in logic, and attachment to knowledge . It becomes humble , refined , and devoted — and starts to serve a higher spiritual purpose . Intelligence is Limited — Consciousness is Infinite...

बुध की भूमि गया: जहाँ चेतना आज भी साँस लेती है

बुध की भूमि गया: जहाँ चेतना आज भी साँस लेती है  ~ आनंद किशोर मेहता प्रस्तावना "हम उस बुध की भूमि से आते हैं..." यह कोई साधारण वाक्य नहीं, बल्कि एक चेतना की घोषणा है। यह उस भूमि की पहचान है, जिसने संसार को बुद्धत्व का मार्ग दिखाया — वह पवित्र स्थल जहाँ मानवता ने निःशब्दता में आत्मज्ञान की पुकार सुनी। गया — एक नगर नहीं, एक जागृति है, एक प्रकाशस्तंभ है, एक जीवित प्रतीक है। 1. गया: जहाँ बुद्धि से आगे बढ़कर बुद्धत्व ने जन्म लिया गया की भूमि पर, वर्षों की तपस्या के बाद सिद्धार्थ गौतम को बोधगया में ज्ञान की प्राप्ति हुई। यह वह क्षण था जब एक साधारण मनुष्य, आत्मज्ञान की अग्नि में तपकर, बुद्ध बन गया। इस धरती ने न केवल भारत, बल्कि पूरे विश्व को चेतना, करुणा और समत्व का संदेश दिया। बोधिवृक्ष की छाया में जन्मा वह सत्य — आज भी हवा में गूंजता है, मिट्टी में बसता है, और आत्मा को जगाता है। 2. "बुध की भूमि गया" — भावार्थ और प्रतीक "बुध की भूमि गया" — यह एक वाक्य नहीं, एक बहुस्तरीय प्रतीक है। बौद्धिक दृष्टि से: यह वह भूमि है जहाँ बुद्धत्व जागा। भावनात्मक ...

स्वाभिमान (Self-Respect)— आंतरिक शक्ति का मूल स्तंभ —

स्वाभिमान (Self-Respect)  — आंतरिक शक्ति का मूल स्तंभ — स्वाभिमान का अर्थ स्वाभिमान वह गहरी आत्म-मान्यता और गरिमा की भावना है, जो तब जन्म लेती है जब हम अपने मूल्यों, विश्वासों और ईमानदारी के अनुसार जीवन जीते हैं। यह दूसरों की प्रशंसा पर निर्भर नहीं करता, बल्कि इस पर आधारित होता है कि हम स्वयं को कैसे देखते और कैसे समझते हैं। स्वाभिमान के प्रमुख तत्व 1. आत्म-स्वीकृति • अपनी शक्तियों और कमजोरियों को बिना कठोर आलोचना के स्वीकार करना। • अपने अस्तित्व और बीते निर्णयों से संतुष्ट रहना। 2. व्यक्तिगत सीमाएँ (Boundaries) • जहाँ आवश्यक हो “न” कह पाने का साहस। • मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक सीमाओं की रक्षा करना। 3. गरिमामय आचरण • ईमानदारी और न्याय के साथ कार्य करना — चाहे कोई देखे या न देखे। • अपने अंतरात्मा के अनुरूप निर्णय लेना। 4. आत्म-संतुष्टि • दूसरों की प्रशंसा या मान्यता पर निर्भर न रहना। • अपनी अंतरात्मा और विवेक पर विश्वास रखना। 5. आलोचना का संतुलित सामना • बिना टूटे सुनना और समझना। • सीख लेना — परंतु आत्म-मूल्य को न खोना। स्वाभिमान क्यों महत्वपूर्ण है? •...

मौन सेवा

मौन सेवा                                                        आनंद किशोर मेहता सेवा वो — जो चुपचाप हो जाए, बिन बोले भी, कुछ बात हो जाए। न माँग हो, न कोई दिखावा, दिल से निकले — बस दुआ का साया। जहाँ न हाथ जुड़ें, न शब्द बहें, फिर भी दिल के दीप जलें। कोई थक कर जब चुप हो जाए, तो बस साथ चलो — वही साथ निभाए। न कर सको कुछ — तो ग़म न दो, अपनी वजह से कोई जख़्म न दो। हर पल किसी का सहारा बनो, कभी साया, कभी किनारा बनो। जो मौन में भी सुकून दे जाए, वही सेवा मालिक को भाए। जहाँ होने भर से शांति जगे, वहीं रूह को राहत लगे। न कुछ पाओ, न कुछ जताओ, बस चुपचाप किसी का बोझ उठाओ। जहाँ न दिखावा, न नाम रहे, बस करुणा ही हर काम रहे। इसी में इबादत का रंग खिले, इसी में बंदा रब से मिले। संक्षिप्त भावार्थ यह कविता बताती है कि सच्ची सेवा दिखावे या शब्दों से नहीं, मौन, करुणा और निस्वार्थ भाव से होती है। जब हम कुछ न कर सकें, तब भी किसी को दुख न देना ही सेवा का...