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Showing posts from April, 2025

भीतर देखो, दुनिया बदल जाएगी।

1. भीतर का सच: बुराई कहीं और नहीं, भीतर है। © 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved. कभी-कभी जीवन हमें उस मोड़ पर लाकर खड़ा कर देता है, जहाँ हम दुनिया को कोसते हैं, हालात को दोष देते हैं, और दूसरों को अपनी तकलीफ़ों का कारण मान लेते हैं। हम सोचते हैं कि सारी बुराई इस दुनिया में फैली है — लोग स्वार्थी हैं, समाज गलत है, व्यवस्था दूषित है। लेकिन क्या हमने कभी आईने के सामने खड़े होकर खुद की आंखों में झांकने की कोशिश की है? एक युवक रोज़ दुनिया की आलोचना करता, जीवन से असंतुष्ट रहता। एक दिन उसने एक आईना खरीदा — सुंदर, चमकदार और बेहद स्पष्ट। जैसे ही वह आईने के सामने खड़ा हुआ, उसे अपने चेहरे पर एक गहरी कालिमा दिखाई दी। घबराया हुआ वह पीछे हट गया, मगर देखा — उसका असली चेहरा तो साफ था। फिर आईने में काला चेहरा क्यों? कई बार आईना सिर्फ चेहरा नहीं दिखाता, अंतर्मन का प्रतिबिंब भी प्रस्तुत करता है। यह घटना उस युवक के लिए आत्मबोध की शुरुआत थी। उसने समझा — “जिस बुराई को मैं दुनिया में ढूंढ रहा था, उसका बीज तो मेरे भीतर ही था।” संत कबीर की वाणी गूंजती है: "बुरा जो देखन मैं चला, बु...

कविताएँ: शिक्षा और बचपन की लौ

कविताएँ: शिक्षा और बचपन की लौ © 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved. (शिक्षा, संस्कार और मानवीय संवेदनाओं पर आधारित प्रेरणादायक काव्य संग्रह) ~ आनंद किशोर मेहता 1. ज्ञान की किरने (शिक्षा से चमकता भारत, मुस्कुराता विश्व) नन्हीं सी किरण, जब चलती है, अंधेरों से जंग वो पलती है। ज्ञान बनकर जो मन में उतर जाए, तो मिट जाए पीड़ा, हर दिशा मुस्काए। पाटशाला नहीं बस ईंटों की दीवार, वो तो होती है भविष्य की रचनाकार। जहाँ शिक्षक न हो बस शाब्दिक पाठक, बल्कि हो प्रेम से पोषक, पथदर्शक। हर बच्चा एक दीप, हर मन में उजाला, सच्ची शिक्षा से बने जीवन हाला। न हो बस अंक, न हो रटने की दौड़, हो आत्मा का विकास, हो विवेक की गूँज। भारत के कोने-कोने में जले यह दीप, संस्कारों से हो हर बालक सजीव। नैतिकता, संवेदना और श्रम से जो सने, वो बालक फिर दुनिया को दिशा दें। जब हर विद्यालय बने उपवन जैसा, हर शिक्षक हो प्रेम का झरना प्यारा। तब भारत नहीं, विश्व भी मुस्कुराएगा, “We are one” हर कोना गुनगुनाएगा। © 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved. 2. बचपन की लौ (शिक्षा से संवरता जीवन, जगता ...

मन के घाव: मौन से उभरती जीवन की औषधि

मन के घाव: मौन से उभरती जीवन की औषधि भूमिका: धरती पर चाहे जितनी भी गहरी दरारें पड़ें, समय के साथ वहाँ हरियाली लौट आती है। फटे हुए कपड़े भी कुशल हाथों से फिर से जोड़े जा सकते हैं। चोटिल तन को औषधियाँ और समय भर सकते हैं। किन्तु जब मन टूटता है — तो उसके घाव अदृश्य होते हैं, और उसका उपचार बाहर नहीं, भीतर से ही संभव होता है। मन के टूटने पर कोई शब्द काम नहीं आते। न कोई औषधि, न कोई सलाह। केवल मौन, प्रेम और धैर्य — यही वे अदृश्य औषधियाँ हैं जो धीरे-धीरे बिखरे हुए मन को फिर से संजो सकती हैं। मुख्य विचार: जब धरती फटती है, तो बादल उसे संजीवनी देते हैं। कपड़ा फटने पर डोरी उसे जोड़ देती है। तन घायल हो, तो औषधियाँ सहारा बन जाती हैं। परन्तु मन के टूटने पर — ना कोई बादल बरसता है, ना कोई डोरी उसे सिलती है, ना कोई औषधि उसे भर पाती है। मन के घाव चुपचाप भीतर रिसते रहते हैं। चेहरे पर मुस्कान बनी रहती है, पर आत्मा भीतर कहीं रोती रहती है। इसलिए मन के आघात को केवल वही समझ सकता है जिसने स्वयं अपने भीतर ऐसी चुप्पी को महसूस किया हो। मौन और प्रेम की अदृश्य औषधि: मन के घावों का उपचार किस...

सही या गलत से परे जाओ: आत्मा की स्वच्छंद उड़ान

सही या गलत से परे जाओ: आत्मा की स्वच्छंद उड़ान ~ आनंद किशोर मेहता हम अपने जीवन में हर क्षण निर्णय करते हैं — यह सही है या गलत? यह अच्छा है या बुरा? यह पाप है या पुण्य? पर क्या कभी आपने सोचा है कि यह "सही और गलत" का विचार स्वयं कहाँ से आता है? यह समाज से आता है, परंपराओं से आता है, संस्कारों से आता है — परंतु आत्मा की आवाज़ इन सबसे परे होती है। द्वैत से अद्वैत की ओर हमारा जीवन द्वैत (Duality) से भरा है: सुख-दुख, जीत-हार, दोष-गुण, सही-गलत। परंतु जब आत्मा जागती है, तो वह इन सभी द्वंद्वों को पार करके अद्वैत में प्रवेश करती है — जहाँ कोई पक्ष नहीं होता, केवल शुद्ध चेतना होती है। वहाँ न आलोचना होती है, न प्रशंसा; न अस्वीकार होता है, न पक्षपात — केवल साक्षीभाव होता है। साक्षी बनो, निर्णायक नहीं जब हम स्वयं को और दूसरों को सही या गलत ठहराने लगते हैं, तो हम अहंकार से भर जाते हैं। पर जब हम साक्षीभाव में आते हैं, तब हम समझने लगते हैं कि हर जीव अपनी स्थिति, परिस्थिति और चेतना के अनुसार ही व्यवहार करता है। हममें करुणा आती है, और प्रतिक्रिया की जगह समझदारी जन्म लेती है...

तुम्हारी कहानी, तुम्हें ही पता है

तुम्हारी कहानी, तुम्हें ही पता है जीवन के हर मोड़ पर, लोगों की राय मिलना स्वाभाविक है। कभी कोई तारीफ़ करेगा, तो कोई आलोचना। कोई तुम्हारे निर्णय को सराहेगा, तो कोई उसे ग़लत ठहराएगा। लेकिन क्या कोई तुम्हारी आँखों से दुनिया देख सकता है? क्या कोई तुम्हारे मन के दर्द, संघर्ष और स्थितियों को उतनी ही गहराई से समझ सकता है जितनी तुमने उन्हें जिया है? सच तो यह है कि लोग वही देखते हैं जो बाहर दिखता है, पर जो भीतर चलता है – वो सिर्फ़ तुम्हें पता है। तुम्हारे आर्थिक हालात, पारिवारिक जिम्मेदारियाँ, मानसिक द्वंद्व, सपनों की लड़ाई और आत्मबल की परीक्षा – ये सब तुम्हारा व्यक्तिगत सत्य है, जिसे दूसरों की नज़रों से आँका नहीं जा सकता। अगर तुम हर किसी की बातों को महत्व देने लगो, तो अपने आप से दूर हो जाओगे। हर कोई तुम्हारा मार्गदर्शक नहीं होता – कई बार लोग तुम्हें अपनी अधूरी समझ से तोलते हैं। वे तुम्हारी उस 'कहानी' के सिर्फ एक-दो 'पृष्ठ' पढ़कर पूरा 'निष्कर्ष' सुना देते हैं। पर जीवन कोई खुली किताब नहीं, यह तो भावनाओं, अनुभवों और परिस्थितियों से बुनी गई आत्मगाथा है – जिसे सिर्फ़...

पवित्र भूमि भारत: विश्व को दिशा देने वाला देश

पवित्र भूमि भारत: विश्व को दिशा देने वाला देश प्रारंभिक भाव: भारत—यह केवल एक भूखंड नहीं, यह एक चेतन संस्कृति, एक आध्यात्मिक ऊर्जा और मानवता के कल्याण की भावना का अद्भुत संगम है। यह वह पुण्य भूमि है जिसने न केवल हमें जन्म दिया, बल्कि हमें यह सौभाग्य भी प्रदान किया कि हम मानवता के मार्गदर्शक इस महान देश के नागरिक हैं। यह भूमि अपने आप में एक प्राचीन तपस्या है, जहाँ हर धूल कण ऋषियों की साधना से पवित्र है और हर नदी माँ की तरह जीवनदायिनी। यहाँ के पर्वत, यहाँ की हवाएँ, यहाँ की गूँज—सब कुछ किसी दिव्य संगीत की तरह आत्मा को छूते हैं। भारत की दिव्यता: भारत की धरती को केवल पावन कहना पर्याप्त नहीं। यह वह भूमि है जहाँ वेदों की ऋचाएँ गूंजीं, उपनिषदों की गहराई में आत्मा की खोज हुई, बुद्ध और महावीर जैसे संतों ने करुणा, अहिंसा और आत्म-साक्षात्कार का मार्ग दिखाया, और जहाँ गुरु नानक, संत कबीर, तुलसीदास और मीरा ने भक्ति की निर्झरिणी बहाई। भारत वह भूमि है जहाँ प्रेम केवल भाव नहीं, एक जीवन-पथ है। जहाँ सेवा केवल कार्य नहीं, आत्मा की अभिव्यक्ति है। और जहाँ तप, त्याग और समर्पण जीवन के मूलभूत सिद्धां...

संस्कार, सहयोग और एकता की शक्ति: एक उज्जवल भविष्य की ओर

संस्कार, सहयोग और एकता की शक्ति: एक उज्जवल भविष्य की ओर आज का समय केवल शिक्षा अर्जित करने का नहीं, बल्कि जागरूकता, मूल्य और व्यवहार में शिक्षित बनने का है। शिक्षा का असली उद्देश्य तब पूर्ण होता है, जब वह जीवन में संस्कार, विवेक और एकता का भाव भी पैदा करे। हम सभी जानते हैं कि एक व्यक्ति का वास्तविक विकास केवल अकादमिक ज्ञान से नहीं, बल्कि उसकी सोच, संस्कार और सामाजिक उत्तरदायित्व से होता है। हमारे समाज में जितनी विविधताएँ हैं, उतनी ही ताकत और संभावनाएँ भी। हर व्यक्ति का अपना अनुभव, संस्कार और सोच होती है, परंतु यह सच्चाई है कि हम सभी का उद्देश्य एक ही है — एक उज्जवल, समृद्ध और नैतिक समाज का निर्माण। यह तभी संभव है जब हम अपने बीच की विविधताओं को समझे, एक दूसरे का सम्मान करें और एकजुट होकर अपने बच्चों का भविष्य संवारे। हमारे बच्चों की तरह, हमारा समाज भी धीरे-धीरे आकार लेता है। अगर हम चाहते हैं कि हमारा समाज प्रगति की ओर बढ़े, तो हमें पहले खुद को सजग और जागरूक बनाना होगा। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि शिक्षा केवल किताबों तक सीमित नहीं हो सकती। यह जीवन की सच्चाइयों को, संस्कारों को और रिश्...

पहलगाम की पुकार: एकता पर हमला, इंसानियत का इम्तिहान

पहलगाम की पुकार: एकता पर हमला, इंसानियत का इम्तिहान  (22 अप्रैल 2025 की आतंकी घटना पर आधारित) 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम के बाइसारन घाटी में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। यह घटना न केवल एक आतंकी हमला है, बल्कि यह हमारे देश की एकता, अखंडता और सहिष्णुता पर सीधा प्रहार है। ऐसे समय में हमें एकजुट होकर आतंकवाद के खिलाफ सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है। यह हमला हमें याद दिलाता है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में कोई ढील नहीं दी जा सकती। हमें अपने सुरक्षा तंत्र को और मजबूत करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि निर्दोष नागरिकों की जान की सुरक्षा सर्वोपरि हो। इस दुखद घटना में जान गंवाने वालों के परिवारों के प्रति हमारी गहरी संवेदनाएं हैं। हम उनके दुख में सहभागी हैं और प्रार्थना करते हैं कि घायल जल्द से जल्द स्वस्थ हों। इस हमले के दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा मिले, यही हमारी न्याय प्रणाली से अपेक्षा है। आज समय आ गया है जब देश के हर नागरिक को इस बात का संकल्प लेना होगा कि नफरत, हिंसा और आतंक के विरुद्ध हम एकजुट हैं। धर्म, भाषा, क्षेत्र – इन सबसे ऊपर उठकर हमें...

जब रिश्तों में डर समा जाए: दूरी बनाना कोई गुनाह नहीं

जब रिश्तों में डर समा जाए: दूरी बनाना कोई गुनाह नहीं ~ आनंद किशोर मेहता रिश्ते केवल शब्दों से नहीं, बल्कि व्यवहार और भावनाओं से बनते हैं। जब कोई यह कहता है — "मैं हर पल तुम्हारे साथ हूँ," तो यह वादा सिर्फ एक भावनात्मक संवाद नहीं होता, बल्कि एक गहरी जिम्मेदारी बन जाता है। मैंने भी एक ऐसा अनुभव जिया, जब किसी ने प्रेम और उत्साह के साथ मेरे जीवन में प्रवेश किया। उसके शब्द मधुर थे — साथ, साया, विश्वास, हमेशा… सब कुछ बेहद आत्मीय लगा। परंतु समय के साथ उन शब्दों के पीछे की सच्चाई सामने आने लगी। जो साया पहले सुखद प्रतीत होता था, वही धीरे-धीरे अंधकार फैलाने लगा। और फिर एक दिन उसने कह दिया — "तुझे जान से मार दूँगा।" यह वाक्य केवल एक आक्रोश नहीं था — यह मेरी आत्मा को झकझोर देने वाला गहरा आघात था। लोग पूछते हैं, “क्यों दूरी बना ली?” उत्तर सरल है, परंतु गंभीर — "मैंने दूरी इसलिए बनाई क्योंकि मुझे स्वयं को बचाना था।" यह दूरी घृणा से नहीं, आत्म-संरक्षण से थी। कभी-कभी सबसे सच्चा प्रेम वही होता है जो स्वयं को टूटने से बचा ले। "खुद को बचाना कोई स्वार्थ नहीं — यह आत्...

प्रेम से पुकारा… ज़ेब्रा ने दी सलामी

प्रेम से पुकारा… ज़ेब्रा ने दी सलामी (एक सच्ची घटना जो दिल को छू गई)  लेखक: ~ आनंद किशोर मेहता कभी-कभी जीवन के छोटे-छोटे क्षण ही सबसे बड़ी भावनाएँ जगा देते हैं। हाल ही में पटना के चिड़ियाघर की एक यात्रा ने मुझे और मेरे परिवार को कुछ ऐसा महसूस कराया, जिसे शब्दों में बाँधना आसान नहीं। ज़ेब्रा… हाँ, वही सीधी धारियों वाला पशु — वो हमारे दिल में कुछ छोड़ गया। एक शांत, हरियाली से घिरे मैदान के उस पार, वह ज़ेब्रा एक पेड़ की ओट में बिल्कुल मौन बैठा था। मैंने कई बार उसे पुकारा, आवाज़ लगाई… पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। फिर मुझे लगा कि अगर दिल से पुकारा जाए — तो शायद ये मौन भी जवाब दे दे। “प्रेम से पुकारो… शायद वो जिसे तुमने खोया समझा, पास आ जाए।” और ऐसा ही हुआ। जब दिल की सच्चाई से उसे पुकारा, तो वह दौड़ता हुआ मेरी ओर आया… और आकर एक पल के लिए ठहर गया। फिर उसने गर्दन उठाकर बिल्कुल वैसे खड़ा होकर पॉज़ (Salute) किया — जैसे मानो कोई सैनिक श्रद्धा से अभिवादन कर रहा हो। यह क्षण मात्र एक दृश्य नहीं था — यह एक जवाब था… उस प्रेम का, जो शब्दों से नहीं, हृदय से निकला था। Though...

चुप रह जाना या सजग हो जाना: मौन की शक्ति में छिपी पहचान

शीर्षक: चुप रह जाना या सजग हो जाना: मौन की शक्ति में छिपी पहचान लेखक: ~ आनंद किशोर मेहता कभी-कभी हम किसी बातचीत में बस समझाने की कोशिश कर रहे होते हैं, लेकिन सामने वाला मानो बहस करने या अपनी बात थोपने के मूड में होता है। और फिर, बात बढ़ती है… हम उलझ जाते हैं। उसी क्षण हमारे भीतर कुछ टूटता है— क्या मैं ही गलत था? क्या मुझमें ही कमी है? और तब अचानक हम चुप हो जाते हैं। ऐसे मौन का अनुभव लगभग हर संवेदनशील व्यक्ति ने किया है। लेकिन प्रश्न ये है कि यह चुप्पी डर से है या समझदारी से? चुप रहना हमेशा कमजोरी नहीं है अगर चुप रहना केवल इसलिए है कि हम डर गए, या खुद को ही दोषी मान बैठे, तो यह चुप्पी धीरे-धीरे हमारी आत्मा को थका देती है। लेकिन अगर चुप रहना इसलिए है कि हम समझते हैं कि इस समय शब्दों से नहीं, शांति से जवाब देना ज़रूरी है—तो यही मौन हमारी सबसे बड़ी ताकत बन जाता है। "हर बात का जवाब देना ज़रूरी नहीं होता। कभी-कभी मौन ही सबसे सुंदर उत्तर होता है।" हर जगह टकराव क्यों? आजकल संवाद की जगह बहस ने ले ली है। बात कहने की जगह बात थोपने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। लोग अपनी बात सही...

(भाग पहला) दयालबाग: सेवा, प्रेम और चेतना का जीवंत उपवन

(भाग पहला)  1. दयालबाग: सेवा, प्रेम और चेतना का जीवंत उपवन  ~ आनंद किशोर मेहता दयालबाग — यह कोई सामान्य भू-खंड नहीं, बल्कि दिव्यता, चेतना और प्रेम का जीवंत संगम है। एक ऐसी पावन धरा, जिसे “The Garden of the Merciful” कहा गया, जहाँ मानव जीवन को अपने सर्वोच्च उद्देश्य तक पहुँचाने की प्रेरणा मिलती है। यह उपवन राधास्वामी मत की मधुर गूंज, संतों की चरण-धूलि और सेवा की परंपरा से सिंचित है। प्रेम और सेवा का ध्येयस्थल सर साहब जी महाराज द्वारा स्नेह से बसाया गया यह क्षेत्र, मात्र एक बस्ती नहीं, बल्कि सहयोग, भक्ति और समर्पण की एक आदर्श परंपरा है। यहाँ के हर मार्ग, हर गली और हर गतिविधि में एक ही भाव झलकता है — “प्रेमियों का सहयोग और मालिक की रज़ा।” यहाँ का हर कण पुकारता है — “हम एक हैं।” इस भूमि पर सेवा केवल कर्म नहीं, बल्कि आत्मा की पुकार है। यहाँ तन, मन और धन का अर्पण केवल एक लक्ष्य के लिए होता है — समस्त प्राणियों का कल्याण। सादगी में छिपा जीवन का सौंदर्य दयालबाग की सबसे बड़ी विशेषता उसकी सादगी है। यहाँ दिखावा नहीं, श्रद्धा है। यहाँ का अनुशासन, श्रम और सहयोग एक ऐसी धारा बनाते हैं, जो आ...