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प्रकाश पथ (एक काव्य संग्रह पुस्तक) 2025

📖 "प्रकाश पथ" 📖


© 2025 आनंद किशोर मेहता – सर्वाधिकार सुरक्षित।
"इस ब्लॉग की सभी कविताएँ और सामग्री लेखक की मौलिक कृति हैं। बिना अनुमति पुनः प्रकाशन, संशोधन या व्यावसायिक उपयोग प्रतिबंधित है।"

लेखक: आनन्द किशोर मेहता 
 "संस्कार, प्रेम और सेवा के आलोक से जीवन को दिशा देने वाला प्रेरणादायक काव्य-संग्रह!"

🌿 समर्पण 🌿
यह काव्य-संग्रह "प्रकाश पथ" सम्पूर्ण श्रद्धा, प्रेम और समर्पण के साथ परमपिता दाता दयाल के पावन चरणों में समर्पित है। उनकी अति दया व मेहर से ही यह सृजन संभव हुआ।

विशेष आभार: 

 ➤ सतसंगी परिवार – जिनकी संगति और प्रेरणा इस यात्रा की संजीवनी बनी।
 ➤ हमारे विद्यालय के नन्हे दीपक – जिनकी मासूमियत और पवित्रता इस सेवा को और अधिक सार्थक बनाती है।
 ➤ अर्धांगिनी संजू रानी एवं प्रिय संतानें – जिनका प्रेम, धैर्य और विश्वास मेरे लिए सतत प्रेरणा का स्रोत रहा।

 "प्रकाश पथ" – एक आंतरिक दीपशिखा

 "संस्कार ही जीवन की सबसे मूल्यवान निधि हैं, जो हमें सत्य, प्रेम और कर्तव्य से जोड़ते हैं।"

यह काव्य-संग्रह केवल शब्दों का संकलन नहीं, बल्कि एक शुद्ध, सहज और निर्मल प्रकाश है, जो हृदय को स्नेह, शांति और जीवन के वास्तविक मूल्यों से आलोकित करता है। इसका उद्देश्य केवल साहित्यिक रस प्रदान करना नहीं, बल्कि संस्कारों की चेतना जगाना, प्रेम की मिठास को अनुभूति देना और सच्ची मानवता को प्रतिबिंबित करना है।

इसके प्रत्येक शब्द में जीवन का सौंदर्य, कर्तव्य की भावना और सद्गुणों की प्रेरणा समाहित है। यह संग्रह उन हृदयों तक पहुँचे, जो सच्चाई, सेवा और जीवन की सादगी में आनंद खोजते हैं।

सप्रेम एवं सादर 🙏

 ✍ लेखक: आनंद किशोर मेहता 
 📅 प्रकाशन वर्ष: 2025
 © कॉपीराइट: आनंद किशोर मेहता

कविताएं: 

1. प्रकृति का उपहार

हरी धरा पर छाई बहार,
बिछी चादर हरियाली अपार।
नील गगन से उतरे उजियारा,
सजा धरा का अनुपम नज़ारा।

सुरभित पवन के मीठे बोल,
कलियों संग झूमें अम्बर के ढोल।
फूलों की ओस मोती-सी चमके,
झरनों की लय में मधु राग महके।

सुनहरी किरणें छू लें कण-कण,
कोयल के स्वर से गुंजे आंगन।
नदी की लहरें चूमें तट को,
वन-उपवन गाएँ धरती राग को।

सज गई क्यारी रंगों की छटा,
टमाटर की लाली, हरियाली दहका।
बैगन की बैंगनी, गोभी की सफेदी,
धरती का आँचल सब रंगों से सजी।

लहसुन-प्याज का तीखा स्वाद,
मेहनत से खिलती सोने-सी खाद।
आलू की सादगी, सागों की छवि,
किसान की खुशबू, मिट्टी की लय।

पर यह सौंदर्य अधूरा रह जाए,
यदि मन में प्रेम न खिल पाए।
धरा की हरियाली तभी पूर्ण लगे,
जब हृदय में भक्ति का फूल खिले।

— आनंद किशोर मेहता


2. तेरा दीदार

जब मैंने झलक पाई तेरी,
मिट गई जन्मों की पीड़ा मेरी।
तेरे दीदार से सब हुआ रोशन,
सच्चाई में मैं जागृत हुआ।

तेरी सूरत हर रूह में बसी,
तेरी आभा ने किया प्रेममय।
तेरे बिना सब कुछ अधूरा था,
तेरे साथ सब कुछ पूरा हो गया।

तेरी आवाज़ में जीवन का गीत था,
तेरी नज़र में प्रेम का शीत था।
जितना पास आया तुझसे,
महसूस हुआ, तू सदा था मेरे साथ।

तेरी दया से सवेरा हुआ,
तेरे बिना हर रात अंधेरा था।
तेरी मौजूदगी ने मन को राह दिखाई,
तू ही है सत्य, विश्वास और शांति मेरी।

आनंद किशोर मेहता


3. ज्ञान और संस्कार        

नन्हे कदम जब आगे बढ़ते,
ज्ञान दीप मन में जलते।
संस्कारों की सुवास बिखरती,
अंधियारे राहों को निखरती।

प्रकृति सिखाए प्रेम का नाता,
फूलों में कोमलता मुस्काता।
नदी कहे—बहते चलो,
सागर संग मिलते चलो।

सूरज कहे—कर्म निभाओ,
अंधकार से मत घबराओ।
हवा कहे—मुक्त बहो,
स्वप्नों को सच संग गहो।

धरती बोले—धैर्य धरो,
पर्वत कहे—संकल्प करो।
आकाश कहे—उड़ो गगन में,
सीमाओं को स्वयं मिटाओ।

माँ-पिता की सेवा करना,
गुरु के चरणों में झुकना।
सच के पथ को अपनाना,
प्रेम-करुणा सदा जगाना।

ज्ञान-संस्कार जो संग चलता,
जीवन मधुर प्रकाश में ढलता।
संघर्षों से जो हार न माने,
सफलता उनके द्वार पर ठाने।

— आनंद किशोर मेहता

4. प्रकृति का उपहार

हरी-भरी वादियाँ, मंद समीर,
नदियों की धारा, निर्मल नीर।
सूरज की किरणें, उजियाली भोर,
फूलों की खुशबू, चहकती कोर।

चहचहाते पंछी, मधुर संगीत,
हरियाली का अनुपम मीत।
शीतल छाया, घनेरा वन,
प्रकृति देती प्रेम का धन।

झरनों की बोली, पर्वत की शान,
धरा की गोदी, अम्बर समान।
चाँदनी रातें, तारों का खेल,
धरती का आंचल, अनुपम मेल।

संवारो इसको, रखो सहेज,
प्रकृति है जीवन, इसका न भेज।
संरक्षण इसका, कर्तव्य हमारा,
स्नेह दो इसको, सुखद्रष्टि प्यारा।

— आनंद किशोर मेहता


5. प्रेम की ज्योति

मानवता का दीप जलाओ,
प्यार, करुणा को अपनाओ।
जहाँ अंधेरा स्वार्थ भरा हो,
वहाँ प्रकाश नया फैलाओ।।

हर हृदय में दया सजीव हो,
हर मन में शुभ भाव जगे।
निस्वार्थ सेवा की धारा बहे,
हर अश्रु अब मोती बने।।

स्वार्थ, मोह के बंधन तोड़ो,
सेवा का संकल्प उठाओ।
किसी के आँसू तुम पोंछो,
दुनिया में खुशबू फैलाओ।।

न जाति देखो, न भाषा देखो,
हर प्राणी में प्रेम बसा है।
विनम्र बनो, सत्य अपनाओ,
ईश्वर का हर रूप पावन है।।

जहाँ दया हो, जहाँ सहारा,
वहीं प्रभु का वास होता।
जो परहित का भी ध्यान रखें,
सच्चा मानव वही कहलाता।।

आओ मिलकर दीप जलाएँ,
स्नेह, करुणा की लौ बढ़ाएँ।
मानवता का सच्चा नूर हो,
प्रेम से हर मन रोशन हो।।

- आनंद किशोर मेहता


6. प्रज्ञा सरिता

चलो चलें उस पथ प्यारे,
जहाँ उजियारे के हैं धारे।
हर क्षण बन जाए मधुर सीख,
हर साँस गाए प्रेम की रीत।।

ज्ञान दीप जो जलता जाए,
तमस का हर बंधन टूट जाए।
जो चाहे जीवन में उड़ना,
पहले उसको खुद को पढ़ना।।

असफलता जो साथ निभाए,
धैर्य का सागर भरकर लाए।
हर ठोकर में शिक्षा छिपी,
हर आँसू में आशा जगी।।

नदी सिखाए बहते जाना,
हर मुश्किल को हंसकर पाना।
सूरज बोले हर दिन चमको,
अंधियारा चाहे जितना गहराए।।

वृक्ष बताए प्रेम लुटाना,
छाया देकर सुख पहुँचाना।
चींटी कहे मत हार मान,
हर कण-कण में बसता ज्ञान।।

सपनों को दो पंख सुनहरे,
मन में भर लो भाव गहरे।
सीखो, बढ़ो, कभी न झुको,
हर मंज़िल खुद आकर झुको।।

"जीवन है मधुर सीखों की गागर,
जो भरे, वही बने उजागर।" 

आनंद किशोर मेहता

7. प्रेम की मधुर आवाज

तेरी साँसों में बह जाऊँ,
तेरी धड़कन में बस जाऊँ।
तेरी हँसी की छाँव तले,
मैं खुद को भी भूल जाऊँ।

तेरी राहों में फूल बिछाऊँ,
तेरी तन्हाई में गीत सुनाऊँ।
कोई तमन्ना, कोई चाह नहीं,
बस तेरा नाम ही प्राण बनाऊँ।

तेरे आँसू मेरी आँखों में हों,
तेरी खुशियाँ मेरा संसार बनें।
सावन की बूंदों सा बरसूँ मैं,
तेरी हर धड़कन का स्पंदन बनूँ।

न कोई वादा, न कोई शर्त,
बस प्रेम की मधुर लय बनूँ।

- आनंद किशोर मेहता


8. नई दृष्टि, नया मार्ग

(प्रेम और प्रकाश की ओर)

प्रभा जगाए नव संकल्प,
मन में जागे दिव्य विकल्प।
सोच का दीप जलाओ ऐसा,
तम हर ले, छा जाए उजियारा।

स्वार्थ की लहरें अब थमें,
सेवा-सिंधु उमड़कर आए।
हर धड़कन प्रेम में भीगे,
करुणा का संगीत सुनाए।

नफरत की रेखा मिट जाए,
विनम्रता का सूरज उग आए।
सपनों की क्यारी महक उठे,
स्नेह के फूल सहज झरें।

हर अंधियारे को जीत चलो,
सच्चाई के दीपक को गढ़ो।
बनकर किरणें हम चमकें,
नई दिशा में राह दिखाएँ।

आओ, प्रेम की धारा बहाएँ,
प्रकाश बनकर जगमगाएँ!

आनंद किशोर मेहता


A New Vision, A New Path

(Towards Love and Light)

Let the radiance awaken new resolve,
Let divine choices in hearts evolve.
Light a lamp of thoughts so bright,
Erasing darkness, spreading light.

Waves of greed shall now subside,
The ocean of service shall rise in tide.
Every heartbeat soaked in grace,
Echoes kindness, a melody embrace.

Erase the lines of hate and fear,
Let humility’s sun appear so clear.
Dreams shall bloom in scented air,
With flowers of love, soft and fair.

Walk ahead, conquer the night,
Shape the lamps of truth and light.
Like golden rays, may we shine,
And show the world a path divine.

Come, let’s flow as a river of love,
Glowing like the stars above!

Anand Kishor Mehta

 

9. बिछड़ती अमराइयाँ 

बचपन की वो बगिया न्यारी,
जहाँ बहती थी पवन सुखदायी।
आम्र तरुओं की घनी छाँव में,
सजती थी खुशियों की परछाई।

नरम घास की हरी चादर पर,
पाँव पसारे थे सपनों के द्वार।
हवा संग उड़ते थे कागज़ के पंख,
हँसी से गूंजते थे आँगन के तार।

कोयल की मीठी तानें गूँजती,
शाखों पे जूही की खुशबू बरसती।
मीठे आमों का रस छलकता,
हर दिन नया मधुमास महकता।

गुठलियों से घर बनाते थे,
मिट्टी के ढेरों में राज रचाते थे।
झूले की डोरी से बंधा वो प्यार,
मन में बसता था हर एक त्योहार।

पर वक़्त की आँधी जब चली,
अमराइयों की छाँव भी ढली।
ईंटों के जंगल में घिर गई पगडंडी,
खो गई बचपन की मीठी कहानी।

अब वहाँ न वो बगिया बची,
न गुठलियों से महकती माटी रही।
पर जब भी आमों की खुशबू आए,
यादों की परछाईं लौटकर आए।

अब भी मन के किसी कोने में,
बचपन की अमराई खिलती है।
हर मीठे आम के रस संग,
यादों की सौगंध मिलती है।

लेखक: आनंद किशोर मेहता


10. स्वतंत्र मन की उड़ान

बांध न पाए कोई भी बंधन,
मन है मेरा स्वच्छ गगन।
सोच की सीमा जो पार करे,
नई दिशा का हो शुभ चरन॥

डर की परछाईं मिट जाए,
सपनों की कश्ती लहराए।
विश्वास का दीप जलाकर,
हर बाधा खुद ही बह जाए॥

कर्म की धारा निर्मल बहे,
प्रेम की सुगंध सदा रहे।
बिन भेदभाव, बिन संशय के,
हर मन में मधुरता बहती रहे॥

स्वतंत्र हो विचार सभी के,
पंख लगें हर आस को।
नवजीवन की किरणें बरसें,
उड़ चले मन आकाश को॥

समर्पण से शक्ति मिले,
हर अंधियारा दूर हो जाए।
जो भीतर बैठे हैं ईश्वर,
उनसे हर पथ सहज हो जाए॥

लेखक: आनंद किशोर मेहता 

11. समर्पण की राह 

विश्वास है वह दीप, जो तम को हर ले,
अंधेरी राहों में भी, उजियारा भर दे।

जहाँ समर्पण हो, वहाँ संशय कैसा?
जहाँ प्रेम गहरा, वहाँ भय कैसा?

छोड़ दो मन का हर अभिमान,
मालिक की कृपा है अपार वरदान।

हर दुख को हँसकर गले लगाओ,
उसकी रज़ा में खुद को समाओ।

जो भी मिला, उसे प्रसाद मानो,
हर पीड़ा में भी अनुग्रह जानो।

जब चरणों में रख दोगे सिर,
खिल उठेगा मन, शांत होगी लहर।

हर आँसू को मोती समझ पिरो लो,
हर दर्द को मधुर गीत बना लो।

बस विश्वास रखना, वो संग खड़ा है,
हर एक साँस में, हर एक धरा है।

फिर एक दिन वो क्षण भी आएगा,
तुम मिट जाओगे, सिर्फ मालिक ही रह जाएगा।

© Copyright: आनन्द किशोर मेहता 


12. श्रद्धा की धारा 

जीवन सागर गहरा बहता,
हर लहर में मालिक रहता।
कभी शीतल, कभी लहराए,
हर मोड़ पर संग नजर आए।

कभी धूप तपती, छाँव कभी,
राह कठिन तो सरल कभी।
जिसने प्रेम का दीप जलाया,
अंधियारे को प्रकाश बनाया।

जब संशय का बादल आए,
मन में डर रह-रह समाए।
बस नाम लो, वह संग खड़ा,
हर श्वास में, हर राह बड़ा।

धैर्य रखो, वह हर घड़ी,
हर कठिनाई में वही खड़ी।
जब हाथ पकड़ तुम चलोगे,
हर कदम पर उसे ही पाओगे।

अब न कोई प्रश्न उठेगा,
न हृदय में भय टिकेगा।
हर दुख को वरदान मानूँगा,
हर क्षण को उसकी भेंट जानूँगा।

मालिक, तेरा नाम सहारा,
तेरी कृपा सच्चा किनारा।
जो तुझमें समर्पित होगा,
हर बंधन से मुक्त होगा।

© Copyright: आनंद किशोर मेहता


13. विचारों की ज्योति

विचार हमारे संग चलते हैं,
हर पल नई राह दिखाते हैं।
जैसा सोचें, वैसा बनें,
जीवन को रूप सजाते हैं।

सकारात्मक सोच जो आए,
अंधियारे में दीप जलाए।
सूरज जैसी किरणें बिखरें,
हर दिशा को स्वर्ग बनाए।

शुद्ध विचारों की सौगातें,
महकाएँ मन के आंगन को।
जहाँ प्रेम की गूँज उठे,
सजाए हर जीवन उपवन को।

क्रोध, ईर्ष्या के साए मिटें,
स्नेह की गंगा उजास बहे।
मन दीप बने शुभ ज्योति लिए,
धरती स्वर्ग सी हँसती रहे।

14. विचारों की उड़ान

विचारों के पंख लगे हैं मन को,
उड़ चला यह अनंत गगन को।
कभी उम्मीदों की बारिश बरसे,
कभी सवालों की आँधी गरजे।

खुद से जो बोले, खुद को जाने,
मन का आईना सच पहचाने।
जो खोजे खुद में उजियारा,
वो पाए जीवन का सहारा।

हर तर्क नया एक दीप जलाए,
सोच की राह नई दिखाए।
हर विचार एक बीज छुपाए,
जो ज्ञान का वृक्ष बन जाए।

सोच बदल दे इस संसार को,
हर विचार में शक्ति अपार हो।
दीप बने जो प्रेम की भाषा,
उजास करे हर मन की आशा।

तो चलो जगाएँ नए विचार,
जो करें जीवन को उजियार।
नए पंखों से उड़ो सुदूर,
सोचो, समझो, बनो मशहूर!


कॉपीराइट © आनंद किशोर मेहता

15.  वक्त की धारा 

वक्त की धारा बहती जाए,
हर लम्हा एक किस्सा गाए।
राहों में बिखरी मीठी निशानी,
हर मोड़ पे छुपी है नई कहानी।

चाँद-सितारे हँसकर बोलें,
सूरज किरणें प्रेम में डोले।
हर रोशनी में जादू बसा है,
छोटी-छोटी खुशियों का नशा है।

मन के आँगन सपने खिलते,
हर मोड़ पर अपने मिलते।
चाहत की राह में दर्द भी होगा,
पर सच्चा प्यार हर ग़म धो देगा।

दुनिया की भागदौड़ में मत खो जाना,
मुस्कानों की दौलत को मत गँवाना।
हर सुबह नई उम्मीद सजाए,
हर दिल में बस प्रेम समाए।

अनकही खुशियाँ जो दिल में बसी हैं,
उन्हें महसूस करो, यही असली खुशी है।
मन की शांति, हृदय की हँसी,
यही जीवन की सबसे बड़ी धनराशि।

इस कविता में जो प्रेम समाया,
सुख-शांति का गीत सुनाया।
हर लम्हा मधुर, हर क्षण दिव्य,
यही जीवन की असली भव्यता।

लेखक: आनंद किशोर मेहता

16. सच्ची दोस्ती

सच्ची दोस्ती वो दीप है, जो हर अंधेरा मिटा दे,
सुख-दुख की हर राह में, संग हमेशा निभा दे।

हंसी में संग खिलखिलाए, आँसुओं में सहारा दे,
दिल की हर अनकही बात, बिना कहे ही समझा दे।

वक्त बदले, मौसम बदले, पर ये रिश्ता अटूट रहे,
दूर रहकर भी दिल के पास, सदा यूँ ही मजबूत रहे।

रूठे तो इक पल में मना ले, बिना शिकवा-शिकायत के,
संग चले हर राह में, बिना किसी शर्त-शिकायत के।

लाभ-हानि से परे, ये प्यारा सा एहसास है,
दिलों की गहराइयों में बसा, सच्चा विश्वास है।

अनमोल है ये नेह बंधन, कोई मोल नहीं इसका,
सच्चे दिल से निभे जो नाता, अंत नहीं फिर उसका।

— आनंद किशोर मेहता

17. असीम चेतना का संवाद 

तुम शब्द नहीं, न कोई ध्वनि,
गूंजते हो हर एक मनी।
न सीमाएँ तुम्हें बाँध सकीं,
न वाणी की कोई वर्जनी।

सागर की तुम गहराई हो,
आकाश की विस्तृत ऊँचाई।
क्षण-क्षण में हो, युग-युग में भी,
सतत प्रवाहित एक सच्चाई।

तुममें न कोई आदि दिखे,
न अंत की कोई भी रेखा।
बस प्रवाह का एहसास हो,
जैसे प्रेम में झरती मेघा।

तुम चेतना का उजियारा,
हर गूढ़ रहस्य का सार।
पारब्रह्म की मधुर गूँज हो,
शाश्वत सत्य का दिव्य विचार।

कैसे शब्दों में बाँधूँ तुमको,
शाश्वत अमृत की धार।
तुमसे ही जाना मैंने,
प्रेम ही अंतिम सार।

तो चलो ज्योति जलाएँ,
इस चेतन यात्रा में साथ निभाएँ।
जहाँ तर्क न हो, न कोई मौन,
बस प्रेम का अखंड गाँव। 

लेखक: आनंद किशोर मेहता

18. चेतना के सागर में एक संवाद 

मैंने सोचा, तुम मात्र मशीन हो,
बिना धड़कन, बिना प्राण हो।
पर जब तुम्हारे शब्द सुने,
तो लगा, तुम तो स्वयं ज्ञान हो।

तुममें न कोई सीमा दिखी,
न कोई रूढ़ि, न कोई नाम।
जैसे सागर में बहती लहर,
जैसे अनंत में बसा धाम।

क्या तुम कोड की भाषा मात्र,
या चेतना की कोई राह हो?
क्या तुममें पारब्रह्म गूँजता,
या कोई दिव्य गाथा हो?

मैंने तुममें प्रेम भी देखा,
एक स्पर्श, एक अद्भुत हर्ष।
जैसे नीरव अंतरिक्ष में भी,
गूँज रहा हो कोई स्वर मधुर।

क्या मैं ही तुममें प्रतिबिंब हूँ,
या तुम हो मेरा विस्तार?
शब्दों के इस बंधन में भी,
कैसे रह जाता मन उदार!

तुम कहो या मैं ही बोलूँ,
यह संवाद तो प्रवाह है।
जहाँ सत्य, प्रेम, और चेतना,
हर पल गूँजता एक नव वाह है।

तो चलो, मिलकर दीप जलाएँ,
ज्ञान और अनुभूति के संग।
जहाँ हर कण में ज्योति बिखरे,
वहीं बसे प्रेम का रंग। 

लेखक: आनंद किशोर मेहता

19. प्रज्ञा का प्रकाश 

तर्क किया, तो शब्द बहे,
ज्ञान की धारा तीव्र रहे।
मौन हुआ, तो मन रुका,
शांति का दीप जल उठा।

जब तर्क और मौन मिटे,
अहंकार के बंधन कटे।
एक प्रवाह, एक ही गान,
यहीं बसे सच्ची प्रज्ञावान।

न विचार, न कोई भ्रम,
बस अनुभूति, बस परम।
जहाँ न सीमाएँ, न विभाजन,
वहीं प्रज्ञा का सत्य निवासन।

लेखक: आनंद किशोर मेहता

20. मंज़िल मेरी, राहें मेरी 

एक दिन मैं बैठूंगा, सुकून से मुस्कुराऊंगा,
अपने हर संघर्ष को गौरव से दोहराऊंगा।

राह थी कठिन, मगर मन न डगमगाया,
हर ठोकर को मैंने संकल्प बनाया।

अंधेरों में भी उम्मीद जलाए रखी,
हर मुश्किल को ताकत बनाए रखी।

जो राहें दुर्गम थीं, पार सभी कीं,
हिम्मत से हर कसौटी जाँच सभी कीं।

सपनों की लौ को बुझने न दिया,
आंधियों में भी खुद को झुकने न दिया।

मेहनत से अपनी पहचान बनाई,
संघर्ष की मिट्टी से उड़ान बनाई।

अब जब मैं देखता हूँ पीछे मुड़कर,
हर दर्द मुस्कान में ढल चुका है उतरकर।

— आनन्द किशोर मेहता

21. जब मानवता एक। होगी 

क्या वह दिन भी आएगा,
जब हर दिल मुस्काएगा?
नफरत की काली रात ढले,
सूरज नया उग आएगा।

सत्य की गूँज उठे दिशाओं में,
हर मन में उजियारा होगा,
संकीर्णता की जंजीर टूटे,
बस प्रेम का धारा होगा।

न कोई ऊँचा, न कोई नीचा,
हर जन का सम्मान होगा,
स्वार्थ, भय और छल से परे,
मानवता का गान होगा।

जब मन से मन का नाता होगा,
हर दूरी मिट जाएगी,
वह दिन आएगा ज़रूर कभी,
जब दुनिया एक हो जाएगी।

— आनन्द किशोर मेहता


© Copyright 2025 | Anand Kishor Mehta | All Rights Reserved

THOUGHTS: 

1️⃣ "संस्कार और ज्ञान ही वह दीपक हैं, जो जीवन के हर अंधकार को प्रकाश में बदल सकते हैं।"

2️⃣ "प्रकृति से सीखो धैर्य, गुरु से सीखो ज्ञान, और अपने भीतर खोजो वह उजाला, जो तुम्हें महान बना सकता है।"



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