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मन और चेतना: वैज्ञानिक व आध्यात्मिक दृष्टि

मन और चेतना: वैज्ञानिक व आध्यात्मिक दृष्टि 

लेखक: आनंद किशोर मेहता

मनुष्य का मन एक गहरी और जटिल शक्ति है, जो हमारे विचारों, भावनाओं और कार्यों को संचालित करता है। यह मन ही है जो हमें सोचने, समझने और निर्णय लेने की क्षमता देता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि मन को चेतना के आधार पर कितने भागों में विभाजित किया जा सकता है?

दरअसल, मन को समझने के दो प्रमुख दृष्टिकोण हैं—आध्यात्मिक और वैज्ञानिक। इन दोनों के अनुसार, मन को मुख्य रूप से तीन या चार स्तरों में बांटा जा सकता है। आइए, इसे सरल भाषा में विस्तार से समझते हैं।


1. आध्यात्मिक दृष्टिकोण: मन की चार अवस्थाएँ

आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो मन केवल एक नहीं, बल्कि चार अलग-अलग स्तरों पर कार्य करता है। भारतीय योग और वेदांत दर्शन के अनुसार, मन को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है:

(i) जाग्रत अवस्था (सचेतन मन)

यह हमारी सामान्य चेतना की अवस्था है। जब हम जागते हैं, रोज़मर्रा के कार्य करते हैं, सोचते और निर्णय लेते हैं, तब हमारा सचेतन मन (Conscious Mind) सक्रिय रहता है। यह इंद्रियों से जुड़ा होता है और बाहरी दुनिया का अनुभव कराता है।

(ii) स्वप्न अवस्था (अवचेतन मन)

जब हम सोते हैं और सपने देखते हैं, तब हमारा अवचेतन मन (Subconscious Mind) काम करता है। यह मन हमारे भीतर संचित यादों, इच्छाओं और भावनाओं का भंडार होता है। कई बार, जो बातें हम जाग्रत अवस्था में भूल जाते हैं, वे सपनों में दिखाई देती हैं।

(iii) सुषुप्ति अवस्था (अचेतन मन)

यह सबसे गहरी नींद की अवस्था होती है, जहाँ न कोई विचार रहता है और न ही कोई सपना। इसे अचेतन मन (Unconscious Mind) कहा जाता है। इस अवस्था में हमारा मन पूर्ण रूप से शांत रहता है, लेकिन यह फिर भी हमारे शरीर और मस्तिष्क को नियंत्रित करता है।

(iv) तुरीय अवस्था (अति-चेतना)

यह मन की सबसे ऊँची अवस्था है, जहाँ व्यक्ति स्वयं और ब्रह्मांड के बीच संबंध को समझने लगता है। इसे अति-चेतन (Superconscious Mind) या समाधि की अवस्था भी कहते हैं। योग और ध्यान के माध्यम से इसे प्राप्त किया जा सकता है।


2. वैज्ञानिक दृष्टिकोण: मन की तीन अवस्थाएँ

अगर मनोविज्ञान और तंत्रिका विज्ञान (Neuroscience) की दृष्टि से देखें, तो मन को मुख्य रूप से तीन भागों में बाँटा जाता है:

(i) सचेतन मन (Conscious Mind)

  • यह वह भाग है जो तर्क करता है, निर्णय लेता है और हमें चीजों को समझने में मदद करता है।
  • जब हम कोई नई चीज़ सीखते हैं, बातें करते हैं या योजना बनाते हैं, तब यही मन काम करता है।
  • यह मस्तिष्क के नवमस्तिष्क प्रांतस्था (Neocortex) से जुड़ा होता है, जो हमारी बुद्धिमत्ता को नियंत्रित करता है।

(ii) अवचेतन मन (Subconscious Mind)

  • यह हमारी आदतों, विश्वासों और भावनाओं का भंडार होता है।
  • जब हम किसी चीज़ को बार-बार करते हैं, तो वह हमारी आदत बन जाती है। इसका कारण अवचेतन मन है।
  • यह मस्तिष्क के लिंबिक सिस्टम (Limbic System) से जुड़ा होता है, जो हमारी भावनाओं को नियंत्रित करता है।

(iii) अचेतन मन (Unconscious Mind)

  • यह मन का सबसे गहरा स्तर है, जहाँ वे सारी बातें छिपी रहती हैं, जो कभी हमें याद भी नहीं रहतीं।
  • इसमें बचपन की यादें, भय, गहरी इच्छाएँ और दबी हुई भावनाएँ शामिल होती हैं।
  • यह मस्तिष्क के बेसल गैंग्लिया (Basal Ganglia) और रिप्टिलियन ब्रेन (Reptilian Brain) से जुड़ा होता है, जो हमारी स्वचालित प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करता है।

आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का तुलनात्मक अध्ययन


निष्कर्ष: मन को समझने की यात्रा

मानव मन एक गूढ़ रहस्य की तरह है, जिसे पूरी तरह समझना आसान नहीं है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण में मन को चेतना की ऊँचाइयों से जोड़ा गया है, जबकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण इसे मस्तिष्क की कार्यप्रणाली से जोड़ता है।

लेकिन अगर हम ध्यान दें, तो पाएंगे कि दोनों दृष्टिकोणों में एक गहरा संबंध है। सचेतन, अवचेतन और अचेतन मन—ये तीनों स्तर दोनों विचारधाराओं में मौजूद हैं। फर्क सिर्फ नाम और समझने के तरीके का है।

आध्यात्मिक साधनाएँ (जैसे ध्यान और योग) हमें अपने मन के उच्च स्तर को अनुभव करने में मदद करती हैं, वहीं वैज्ञानिक खोजें यह बताने में सहायक हैं कि हमारा मस्तिष्क और मन किस तरह से काम करता है।

इसलिए, यदि हम अपने मन को बेहतर तरीके से समझना चाहते हैं, तो हमें दोनों ही दृष्टिकोणों को अपनाना होगा। तभी हम अपने भीतर छिपी अनंत संभावनाओं को पहचान पाएंगे और जीवन को नई ऊँचाइयों तक ले जा सकेंगे।


"मन को समझना ही स्वयं को समझने की पहली सीढ़ी है।"


कॉपीराइट © 2025 आनंद किशोर मेहता

मन और चेतना पर संक्षिप्त विचार:

  1. "मन की गहराई में छिपे विचार ही हमारे भविष्य का निर्माण करते हैं।"
  2. "मन को नियंत्रित करना सीख लिया, तो जीवन की हर चुनौती आसान हो जाएगी।"
  3. "जब चेतना शुद्ध होती है, तो संपूर्ण ब्रह्मांड उसमें प्रतिबिंबित होता है।"
  4. "सामूहिक चेतना वह शक्ति है, जो एक विचार से पूरे युग को बदल सकती है।"
  5. "ध्यान, भक्ति और सेवा – ये तीनों चेतना को परम स्रोत से जोड़ने के सबसे सहज मार्ग हैं।"
  6. "सत्य की खोज चेतना की गहराई में है, बाहर नहीं।"
  7. "जब विचारों की शुद्धता बढ़ती है, तो चेतना स्वयं परमसत्ता की ओर प्रवाहित होने लगती है।"
  8. "संपूर्ण सृष्टि चेतना का ही विस्तार है, और हम सभी उसमें एक लयबद्ध तरंग की भांति हैं।"
  9. "जिस दिन व्यक्ति 'मैं' और 'तू' के भेद से ऊपर उठ जाएगा, उसी दिन उसे परम सत्य का बोध होगा।"







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