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चेतना का अनंत स्रोत और सामूहिक चेतना का प्रभाव

चेतना का अनंत स्रोत और सामूहिक चेतना का प्रभाव 

भूमिका

चेतना का रहस्य सदियों से दार्शनिकों, संतों और वैज्ञानिकों के अध्ययन का केंद्र रहा है। भारतीय दर्शन इसे ब्रह्म से जोड़ता है, जबकि आधुनिक विज्ञान इसे ऊर्जा के परिष्कृत रूप में देखता है। चेतना केवल एक व्यक्तिगत अनुभूति नहीं, बल्कि सामूहिक चेतना का भी निर्माण कर सकती है, जो संपूर्ण मानवता और ब्रह्मांड को प्रभावित करती है। यदि यह सामूहिक चेतना परम स्रोत से जुड़ जाए, तो यह आत्मिक उन्नति और मुक्ति का मार्ग खोल सकती है।

1. चेतना का अनंत स्रोत – भारतीय दृष्टिकोण

भारतीय दर्शन में चेतना को "ब्रह्म" कहा गया है।

  • ब्रह्मसूत्र (1.1.2) – "जन्माद्यस्य यतः", अर्थात संपूर्ण सृष्टि एक परम चेतन स्रोत से उत्पन्न हुई है।
  • अद्वैत वेदांत – "अहं ब्रह्मास्मि" (मैं ब्रह्म हूँ) – प्रत्येक जीव उसी परम चेतना का अंश है।
  • भगवद गीता (10.20) – "अहं आत्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः", अर्थात परमात्मा सभी जीवों के हृदय में स्थित है।
  • बौद्ध दर्शन में यह विचार "निर्वाण" के रूप में मिलता है, जहाँ चेतना शून्यता में विलीन हो जाती है।

2. चेतना और आधुनिक विज्ञान

आधुनिक विज्ञान भी चेतना को समझने के प्रयास कर रहा है।

  • क्वांटम यांत्रिकी (Quantum Mechanics) के अनुसार, ब्रह्मांड ऊर्जा क्षेत्र (Energy Field) से निर्मित है, और चेतना इसका एक परिष्कृत रूप हो सकती है।
  • डॉ. रोजर पेनरोज़ और स्टुअर्ट हैमेरॉफ़ ने चेतना को "क्वांटम सुपरपोजिशन" से जोड़ा है, जिसमें आत्मा को ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ा हुआ माना जाता है।
  • डॉ. क्लाइव वेर्नोन के अध्ययन में कहा गया कि "सामूहिक चेतना" एक वास्तविक ऊर्जा क्षेत्र बनाती है, जो समाज में परिवर्तन ला सकती है।

3. सामूहिक चेतना और आध्यात्मिक ऊर्जा

जब कई लोग एक ही विचार और ध्यान में एकत्र होते हैं, तो उनकी सामूहिक चेतना एक शक्तिशाली ऊर्जा प्रवाह का निर्माण करती है।

  • संतमत और सूफी दर्शन में कहा गया है कि संतों का ध्यान दूर-दूर तक ऊर्जा प्रभाव डाल सकता है।
  • कबीर साहेब कहते हैं:
    "जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहिं।"
    अर्थात जब अहंकार समाप्त होता है, तब व्यक्ति परम चेतना से एक हो जाता है।
  • महात्मा गांधी का सत्याग्रह सामूहिक चेतना का उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसने अहिंसा से सामाजिक परिवर्तन को संभव किया।

4. दयालबाग़ एजुकेशनल इंस्टीट्यूट में चेतना पर अनुसंधान

दयालबाग़ एजुकेशनल इंस्टीट्यूट (DEI) चेतना विज्ञान के अध्ययन और अनुसंधान में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।

  • (क) अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियाँ और शोध गतिविधियाँ – DEI का "दयालबाग़ साइंस ऑफ़ कॉन्शसनेस (DSC)" प्रोग्राम चेतना विज्ञान पर वैश्विक संगोष्ठियाँ आयोजित करता है।
  • (ख) शैक्षिक अनुसंधान और प्रकाशन – डॉ. आरती सिंह सहित अन्य शोधकर्ताओं ने चेतना पर गहन अध्ययन किए हैं।
  • (ग) तकनीकी नवाचार – TriCaster® और NDI® जैसी तकनीकों का उपयोग कर शोध को वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत किया जा रहा है।
  • (घ) मूल्य-आधारित शिक्षा और सतत विकास – संस्थान शिक्षा, नैतिकता और वैज्ञानिक अनुसंधान को एकीकृत कर चेतना विकास को प्रोत्साहित कर रहा है।

5. संत सुपरमैन योजना – चेतना विकास की दिशा में एक प्रयास

दयालबाग़ की "संत सु-परमैन" योजना के अंतर्गत दुनिया भर की शाखाओं में शिक्षा, आध्यात्म और समाज सेवा को एकीकृत किया जा रहा है। यह योजना छोटे बच्चों से लेकर सभी उम्र के लोगों को ध्यान, कृषि सेवा, नैतिकता और शारीरिक व्यायाम के माध्यम से संपूर्ण विकास प्रदान कर रही है।

6. चेतना और मुक्ति की प्रक्रिया

यदि सभी का ध्यान परम चेतना में विलीन होने पर केंद्रित हो जाए, तो यह पूरे ब्रह्मांड में मुक्ति की प्रक्रिया को तेज कर सकता है।

  • जब मनुष्य अहंकार, द्वेष और भौतिक लालसाओं से ऊपर उठता है, तो उसकी चेतना उच्चतर स्तर पर पहुँचने लगती है।
  • यदि यह सामूहिक रूप से जाग्रत हो जाए, तो यह समस्त जीवों की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।
  • संत इसे "सहज समाधि", "कैवल्य" या "ब्रह्मलीनता" कहते हैं, जहाँ चेतना अपने अनंत स्रोत में विलीन हो जाती है।

संक्षिप्त निष्कर्ष

चेतना का अनंत स्रोत हमारी वास्तविक पहचान है। यह केवल एक व्यक्तिगत अनुभूति नहीं, बल्कि एक सामूहिक ऊर्जा प्रवाह है, जो संपूर्ण मानवता और ब्रह्मांड को प्रभावित करता है। यदि यह चेतना परम स्रोत से जुड़ जाए, तो यह आत्मिक उन्नति और मुक्ति की प्रक्रिया को तेज कर सकती है।

दयालबाग़ एजुकेशनल इंस्टीट्यूट विज्ञान और आध्यात्म के समन्वय से इस दिशा में महत्वपूर्ण शोध कर रहा है। सतसंग, सामूहिक ध्यान और सेवा कार्यों के माध्यम से चेतना के विकास को प्रोत्साहित किया जा रहा है। 'संत सु-परमैन' जैसी योजनाएँ शिक्षा, नैतिकता और समाज सेवा को एकीकृत कर, व्यक्तित्व निर्माण और चेतना के विस्तार में सहायक सिद्ध हो रही हैं।

इन प्रयासों का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत उत्थान तक सीमित नहीं, बल्कि एक जाग्रत, समरस और उन्नत समाज की स्थापना है, जहाँ चेतना का प्रवाह संपूर्ण मानवता के कल्याण का मार्ग प्रशस्त कर सके।


कविता – चेतना की यात्रा

जहाँ अंतर्मन प्रकाशित हो,
वहीं दिव्यता का द्वार खुले।
जहाँ मिटे सब द्वंद्व, विभाजन,
वहीं सत्य का सार मिले।।

जब चेतन स्वर लहराए भीतर,
जब प्रेम की सरिता बहे अपार,
तब माया की सीमाएँ टूटें,
और मिल जाए परम आधार।।

जो पाया था, वह विलीन हो,
जो खोया था, वही प्रकट हो।
जब 'मैं' और 'तू' मिट जाए,
तब चेतना परम चेतना में लय हो।।

— आनन्द किशोर मेहता
(© सर्वाधिकार सुरक्षित)



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