सत्य की विजय: एक अनिवार्य सत्य
लेखक: आनंद किशोर मेहता
सारांश
सत्य और असत्य का संघर्ष अनादि काल से चला आ रहा है। यह केवल समाज तक सीमित नहीं, बल्कि हमारे भीतर भी चलता रहता है। जब तक हम अपने भीतर की बुराइयों को पहचानकर उन्हें समाप्त नहीं करेंगे, तब तक समाज में सत्य की पूर्ण विजय संभव नहीं होगी। इतिहास साक्षी है कि अंततः सत्य की ही जीत होती है, चाहे असत्य कितना भी प्रबल क्यों न लगे।
भूमिका
जब तक इस संसार में बुराई विद्यमान है, तब तक यह संकेत है कि हम अभी पूर्ण चेतना और शांति से दूर हैं। बुराई केवल समाज में नहीं, बल्कि हमारे भीतर भी निवास करती है। यदि हम अपने भीतर सुधार नहीं करेंगे, तो सत्य की विजय अधूरी ही रहेगी। यह लेख सत्य की यात्रा को समझने और हमारे कर्तव्यों के प्रति जागरूक करने का प्रयास है।
सत्य और बुराई का संघर्ष
राम-रावण, कृष्ण-कंस, महाभारत—ये केवल कथाएँ नहीं, बल्कि प्रमाण हैं कि सत्य और असत्य का संघर्ष शाश्वत है। आज भी अन्याय, लालच और असत्य को देखकर लगता है कि बुराई प्रबल हो रही है, लेकिन इतिहास ने बार-बार सिद्ध किया है कि सत्य की जीत अवश्यंभावी है।
क्या बुराई केवल बाहरी है?
हम समाज में व्याप्त बुराइयों की आलोचना करते हैं, लेकिन क्या हम स्वयं निर्दोष हैं? जब हम स्वार्थवश अनुचित साधनों का उपयोग करते हैं या अन्याय देखकर मौन रहते हैं, तो हम भी बुराई के भागीदार बन जाते हैं। इसलिए, सत्य की विजय के लिए हमें अपने भीतर से बदलाव की शुरुआत करनी होगी।
सत्य की विजय कैसे संभव है?
स्वयं में सुधार करें – अपनी कमजोरियों को पहचानें और उन्हें दूर करें।
सत्य का साथ दें – अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाएँ और सत्य के पक्ष में खड़े रहें।
नैतिक मूल्यों को अपनाएँ – सत्य, प्रेम, अहिंसा और न्याय को अपने जीवन का आधार बनाएँ।
समाज में जागरूकता बढ़ाएँ – लोगों को बुराई के प्रति सचेत करें और सत्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करें।
संकल्प और धैर्य रखें – सत्य का मार्ग कठिन होता है, लेकिन दृढ़ निश्चय से इसे पार किया जा सकता है।
यदि हम निष्क्रिय रहे तो?
यदि हम अपने कर्तव्यों के प्रति उदासीन रहे, तो बुराई और अधिक बलवती होगी। यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम स्वयं इस परिवर्तन के वाहक बनें और सत्य की विजय में योगदान दें।
निष्कर्ष
सत्य की विजय सुनिश्चित है, यह केवल समय की बात है। लेकिन यह अपने आप नहीं होगा—हमें अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक होना होगा। यदि हम सत्य, प्रेम, करुणा और न्याय को अपनाएँ, तो संसार शीघ्र ही शांति और दिव्यता से भर जाएगा। अब निर्णय आपका है—क्या आप इस परिवर्तन का हिस्सा बनेंगे, या केवल मूकदर्शक बने रहेंगे?
मुख्य बिन्दु:
सत्य दब सकता है, हार नहीं सकता।
बुराई कितनी भी शक्तिशाली लगे, अंततः सत्य ही विजयी होता है।
जो सत्य के पक्ष में खड़ा होता है, इतिहास उसी का गुणगान करता है।
सत्य की राह अकेले चलनी पड़ सकती है, लेकिन अंत में पूरा विश्व उसे अपनाता है।
परिवर्तन बाहर नहीं, भीतर से शुरू होता है।
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