सत्य और प्रकाश का संघर्ष: क्यों अंधकार रूठ जाता है?
~ आनंद किशोर मेहता
भूमिका
"सत्य और प्रकाश का मार्ग चुनना जितना सरल दिखता है, उतना ही चुनौतीपूर्ण होता है। जैसे ही व्यक्ति ज्ञान और सच्चाई की ओर बढ़ता है, अंधकार उसे रोकने का हर संभव प्रयास करता है।"
अंधकार केवल रोशनी की अनुपस्थिति नहीं, बल्कि एक मानसिक और आत्मिक स्थिति भी है। जब कोई व्यक्ति सत्य, ज्ञान और नैतिकता की ओर अग्रसर होता है, तो वे शक्तियाँ जो अंधकार में जीने की अभ्यस्त हैं, इसका विरोध करने लगती हैं। सत्य का प्रकटीकरण अज्ञान और स्वार्थ पर आघात करता है, इसलिए विरोध स्वाभाविक है।
अंधकार का स्वभाव: क्यों वह रूठता है?
अंधकार का स्वभाव अपने अस्तित्व को बचाने का है। जब कोई प्रकाश जलाता है, तो अंधकार को हटना ही पड़ता है, और यह उसे स्वीकार नहीं होता।
- परिवर्तन का भय – सत्य परिवर्तन लाता है, और लोग परिवर्तन से डरते हैं क्योंकि यह उनकी जड़ता को तोड़ता है।
- स्वार्थ और अहंकार – जो अंधकार से लाभ उठाते हैं, वे सत्य को स्वीकार नहीं कर सकते, क्योंकि यह उनके स्वार्थ पर चोट करता है।
- मोह और अज्ञान – अंधकार में रहने वालों को प्रकाश असहज करता है, क्योंकि वे उसी को सत्य मान बैठे होते हैं।
- टकराव और प्रतिरोध – सत्य आत्म-परिवर्तन मांगता है, और परिवर्तन कठिन होता है, इसलिए लोग विरोध करते हैं।
इतिहास में सत्य और अंधकार का संघर्ष
इतिहास साक्षी है कि जब भी सत्य का प्रकाश फैला, अंधकार ने विरोध किया:
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गुरु नानक को कई विरोधों का सामना करना पड़ा क्योंकि उनका आध्यात्मिक संदेश रूढ़ियों को चुनौती दे रहा था। उन्होंने जात-पात, अंधविश्वास और बाहरी आडंबरों का विरोध किया और एक ईश्वर, सत्य, सेवा और प्रेम का संदेश दिया। उनकी शिक्षाएँ उस समय की धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं के विपरीत थीं, जिससे उन्हें कई बार विरोध और बहिष्कार झेलना पड़ा। लेकिन उनके विचार आज भी करोड़ों लोगों को सत्य और आध्यात्मिक जागरूकता की राह दिखाते हैं।
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संत कबीरदास का विरोध हुआ क्योंकि वे सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ रहे थे। उन्होंने हिंदू-मुसलमान दोनों समाजों में व्याप्त पाखंड और अंधविश्वास को चुनौती दी, जिससे दोनों पक्षों के कट्टरपंथी उनके विरोधी बन गए।
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महात्मा गांधी को कैद किया गया क्योंकि वे अहिंसा और सत्य का संदेश दे रहे थे। ब्रिटिश सरकार को उनका सत्याग्रह असहज करता था, क्योंकि वह अन्याय के अंधकार को हटाने का कार्य कर रहा था।
लेकिन अंततः सत्य की विजय हुई।
कैसे बनें प्रकाश के वाहक?
- धैर्य और साहस रखें – विरोध से घबराएँ नहीं, सत्य का मार्ग कठिन होता है।
- स्वयं को मजबूत करें – आत्मिक और मानसिक शक्ति के बिना प्रकाश फैलाना कठिन है।
- बुद्धिमत्ता से कार्य करें – सत्य को प्रेम और करुणा से प्रस्तुत करें ताकि लोग उसे स्वीकार सकें।
- समय को समझें – हर परिवर्तन धीरे-धीरे होता है, अधीर न हों।
- अपने उद्देश्य को न भूलें – आलोचना से विचलित न हों, सत्य की शक्ति अंततः विजयी होती है।
निष्कर्ष
"अंधकार कितना भी घना हो, एक दीपक उसकी सत्ता को समाप्त करने के लिए पर्याप्त होता है।"
सत्य का प्रकाश अवश्य विरोध झेलता है, परंतु अंततः वही स्थायी होता है। सूरज के उगते ही रात का अंधकार समाप्त हो जाता है। इसलिए, धैर्य और साहस के साथ अपने दीपक को जलाए रखें—अंधकार चाहे जितना भी रूठे, सत्य की विजय निश्चित है।
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