मैंने जिसे अपना दोस्त समझा, वही मेरी तकलीफ का किस्सा बना गया
लेखक: ~ आनंद किशोर मेहता
एक आत्मगाथा, एक चेतावनी, एक सीख...
कुछ रिश्ते चेहरे पर मुस्कान लाते हैं, और कुछ मुस्कानें उम्रभर की चुप्पी दे जाती हैं। यह सिर्फ कहानी नहीं है------ यह उन सभी के लिए है, जो अपनों की परछाई में खुद को खो चुके हैं।
मेरा भी एक ऐसा ही रिश्ता था, जो ऊपर से तो दोस्ती का ताज पहनाए बैठा था, पर भीतर ही भीतर वह आग बन चुका था, जो मेरी पहचान को चुपचाप जलाता रहा।
मैंने उसे अपना कहा। अपने आँसू, अपने हालात, और अपने टूटे सपनों तक उसे सौंप दिए। सोचा, ये शख़्स शायद मेरी तकलीफ़ों में मेरी ढाल बनेगा। पर वो तो उन्हीं तकलीफ़ों से मेरा नक्शा बना रहा था— कैसे, कब, और कहाँ मुझे गिराया जाए।
कविता: "मैंने जिसे अपना समझा"
मैंने जिसे अपना समझा, वो गैरों से भी बदतर निकला,
साथ बैठा, मुस्कराया, और भीतर ही भीतर शिकारी निकला।
मैंने अपना हाल बताया, आँसुओं में भी उसे दोस्त माना,
पर वो तो उन आँसुओं से अपने इरादों का नक्शा बनाता रहा।
मैंने हर रात उसे पुकारा, अपने दर्द का भगवान समझ कर,
पर वो तो मेरी पुकारों में अपनी विजय की ताल ढूंढता रहा।
मैंने सोचा, ये मेरा है…
पर वो तो बस “मेरे लिए” नहीं, “मेरे खिलाफ़” जी रहा था।
समाज के लिए एक सच्चा संदेश
मैं टूट गया था… पर मैं रुका नहीं।
मैं बिखर गया था… पर मैं बुझा नहीं।
क्योंकि मैंने सीखा कि जब अपने ही धोखा दें,
तो जीवन हमें एक नया पाठ पढ़ाता है—
कि सबसे पहले, खुद से दोस्ती करनी चाहिए।
मैं ये कहानी सिर्फ इसलिए नहीं लिख रहा कि मेरी भावनाएँ हल्की हों,
बल्कि इसलिए कि कोई और "मैं" न टूटे…
कोई और मासूम इंसान, किसी चेहरे के पीछे छिपे नकाब को समय रहते पहचान ले।
जिन्हें दोस्त मानते हैं, वे हर बार दोस्त नहों होते...
कुछ चेहरे आईनों जैसे लगते हैं— मगर सच दिखाने की बजाय, चेहरा बदल देते हैं।
हर मीठा बोल सच्चा नहीं होता,
और हर “हमदर्द” दर्द बाँटने वाला नहीं होता।
कभी-कभी लोग आपके आँसुओं को देखकर
आपका इतिहास नहीं, अपना भविष्य बनाते हैं।
आत्मबल की पुनर्रचना
मैंने सब देखा—दोगलापन, धोखा, निर्दयता…
पर मैंने कुछ खोया नहीं।
बल्कि पाया कि मेरी सच्चाई, मेरी सरलता, मेरी भावुकता—
मुझे कमजोर नहीं बनाती,
बल्कि यही मेरी सबसे बड़ी शक्ति है।
अब मैं डरता नहीं… क्योंकि अब मैं जान चुका हूँ: सच्चे रिश्ते खुद को साबित करने की ज़रूरत नहीं समझते।
"जो टूटकर भी जुड़ता है, वहीं असली मोती होता है।"
अंतिम विचार: एक लौ, जो बुझी नहीं
जो लोग दूसरों के विश्वास का फायदा उठाते हैं,
वे क्षणिक जीतते हैं—पर भीतर से हमेशा हार जाते हैं।
और जो लोग धोखा खाकर भी मानवता नहीं छोड़ते,
वे सच्चे विजेता होते हैं—अपने लिए भी और समाज के लिए भी।
इसलिए, अगर आप भी कभी टूटे----- तो टूटिए मत....... जुड़िए, खुद से..... अपने --- आत्मबल से..... और फिर चलिए।
एक नई शुरुआत की ओर।
लेखक:
~ आनंद किशोर मेहता
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