कविताएँ: शिक्षा और बचपन की लौ
© 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved.
(शिक्षा, संस्कार और मानवीय संवेदनाओं पर आधारित प्रेरणादायक काव्य संग्रह)
~ आनंद किशोर मेहता
1. ज्ञान की किरने
(शिक्षा से चमकता भारत, मुस्कुराता विश्व)
नन्हीं सी किरण, जब चलती है,
अंधेरों से जंग वो पलती है।
ज्ञान बनकर जो मन में उतर जाए,
तो मिट जाए पीड़ा, हर दिशा मुस्काए।
पाटशाला नहीं बस ईंटों की दीवार,
वो तो होती है भविष्य की रचनाकार।
जहाँ शिक्षक न हो बस शाब्दिक पाठक,
बल्कि हो प्रेम से पोषक, पथदर्शक।
हर बच्चा एक दीप, हर मन में उजाला,
सच्ची शिक्षा से बने जीवन हाला।
न हो बस अंक, न हो रटने की दौड़,
हो आत्मा का विकास, हो विवेक की गूँज।
भारत के कोने-कोने में जले यह दीप,
संस्कारों से हो हर बालक सजीव।
नैतिकता, संवेदना और श्रम से जो सने,
वो बालक फिर दुनिया को दिशा दें।
जब हर विद्यालय बने उपवन जैसा,
हर शिक्षक हो प्रेम का झरना प्यारा।
तब भारत नहीं, विश्व भी मुस्कुराएगा,
“We are one” हर कोना गुनगुनाएगा।
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2. बचपन की लौ
(शिक्षा से संवरता जीवन, जगता भविष्य)
नन्हें पाँवों की थाप में छुपा है,
आने वाले कल का उजाला,
हर मासूम हँसी में छिपा हुआ,
जग को सँवारने का निवाला।
कंधे पे बस्ता, आँखों में सपना,
मन में हो शिक्षा का दीप,
संस्कारों से सींचा जाए जीवन,
तो बन जाए हर बच्चा अनमोल रत्न-सीप।
ना हो डर, ना हो सज़ा,
ना सूनी हो कोई मुस्कान,
शिक्षक बने साथी, सखा,
और कक्षा बने सच्चा इंसान।
पढ़ाई हो प्रेम से पुकारती,
हर पाठ हो जीवन की राह,
बचपन की लौ से जल उठे,
भारत की नव-उम्मीदों की चाह।
जहाँ हर बालक की सोच में,
विश्व-बंधुत्व की उमंग हो,
वहाँ शिक्षा केवल डिग्री नहीं,
एक मानव-क्रांति की तरंग हो।
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3. जागो, बेटा!
इधर आ, बेटा, आँखों में झाँक,
तेरे लिए है यह रोशनी की झलक।
एक किरण जो तुझे जगाने आई,
तेरी ही मंज़िल की बात बताई।
बहुत सो चुका तू, अब उठना है,
हर कदम पर थोड़ा-थोड़ा बढ़ना है।
धीरे-धीरे, पर रुकना नहीं,
पढ़ते जाना — थकना नहीं।
देख, सफलता तुझे बुला रही,
सपनों की डगर सजा रही।
समय खड़ा है तेरे द्वार,
अब ना करना कोई इनकार।
धैर्य रख, पर चलते रहना,
हर रोज़ खुद से कुछ कहना—
"मैं कर सकता हूँ, मैं चलूँगा,
हर मुश्किल से लड़ूँगा!"
और जब जीत सामने आएगी,
तेरी मुस्कान सबको भाएगी।
तब कहना —
“आज जो मैं बना हूँ,
वो उसी दिन की बात है…
जब मैंने खुद को पहचाना था।”
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4. सपनों की उड़ान: हर बच्चा एक सितारा
~ आनंद किशोर मेहता
आज का दिन, बस एक दिन नहीं,
यह उम्मीदों की उड़ान है कहीं।
जहाँ नन्हें चेहरे मुस्कुराते हैं,
वहीं भविष्य की किरणें खिलखिलाते हैं।
हर बच्चा एक कहानी अनकही,
हर आँख में चमक है सच्ची सही।
आज जो अक्षर बनते गीत,
वो कल गूंजेंगे नव दृष्टि के मीत।
यह कक्षा नहीं, कोई साधारण जगह,
यह सपनों को आकार देने की रचना है।
शब्दों की माला, सोच की ध्वनि,
यहीं बनती है जीवन की सच्ची रवानी।
जब शिक्षक बन जाए दीप दिखाने वाला,
हर बच्चा हो अपने भीतर उजाला।
जब सवाल न हों डर की पहचान,
बल्कि हों उत्सुकता की उड़ान।
हर दीवार पर दिखे कुछ नया,
हर कोना कहे— "हौसला बढ़ा!"
ज्ञान ही है असली जादू,
जो दिखाए सोच का सच्चा मार्ग और फासला घटा दे हर बाधा का।
हर गलियारा गूंजे जैसे उमंग की ताल,
हर मुस्कान बने सीख की मिसाल।
यह विद्यालय नहीं बस ईंटों का घर,
यह है हर बालक के सपनों का आधार।
तो आज का दिन, बस यूँ ही न बीते,
हर पल में जागे नया विश्वास।
आज कोई बच्चा अपने आप से कहे—
"मैं कर सकता हूँ, मैं कुछ खास बनूँगा!"
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5. जागो बेटा, सफलता तुम्हे पुकार रही है
~ आनंद किशोर मेहता
यह वार्तालाप एक यात्रा बनी,
जिसमें हर शब्द एक कदम था,
हर विचार एक सपना था,
और हर भाव एक नया उत्साह था।
यह संवाद बना एक दीपक,
जिसने अंधेरे में उजाला किया,
हर शब्द की रोशनी में,
एक नई राह, एक नई दुनिया दिखलाई।
अब तुम जागो बेटा,
सफलता तुम्हे पुकार रही है,
तेरी मंज़िल अब पास है,
वो खड़ी है तेरे द्वार पे, खड़ी इंतजार में।
अब तू उठ, और अपनी राह पकड़,
हर कदम पर अपने सपने को साकार कर,
तेरी मेहनत और संघर्ष एक दिन रंग लाएगा,
सफलता तुझे खुद अपनी बाहों में समेटेगी।
आओ, इस यात्रा का हिस्सा बनो,
क्योंकि यह कहानी सिर्फ तुम्हारी है,
जागो बेटा, अब समय तुम्हारा है।
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6. हँसी की पाठशाला
~ आनंद किशोर मेहता)
छोटे-छोटे पाँवों की थिरकन,
हर सुबह नई उमंग लाए।
हँसी की वो झरने जैसी आवाज़,
सारा आँगन महका जाए।
बस्तों में किताबों से ज्यादा,
सपनों की चमक दिखती है।
हर चेहरा जैसे सूरज हो,
जो मुस्कानों से दीप्ति है।
कभी झूले की ऊँचाई में,
तो कभी मिट्टी की रेखाओं में।
हर खेल में छुपा होता है,
बचपन का अमूल्य राग बिन।
बिना कारण खिलखिलाना,
जैसे जीवन की पूजा हो।
मासूम सी वो मस्ती उनकी,
ईश्वर की एक आरती हो।
कक्षा, मैदान, गलियारे सब,
उनकी ध्वनि से गूँज उठते हैं।
स्कूल नहीं फिर केवल भवन,
वो तो प्रेम के फूल लगते हैं।
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7. एक नन्हा सा मन
(~ बच्चों की चुप्पी की पुकार)
छोटी-सी आँखों में सपने बड़े,
पर कह न सके, दिल के रस्ते खरे।
जो हँसी कहीं गुम हो जाती है,
वो चुप्पी कुछ तो कह जाती है।
माँ-बाबा की दुनिया है प्यारी,
फिर भी क्यों मन में हो बेकरारी?
शब्दों में बाँध न पाए वो हाल,
शिक्षक ने देखा वो मौन सवाल।
कभी खामोशी में लिपटी दुआ,
कभी भीगी-सी नज़रों में वफ़ा।
कोई पास आया, बस यूँ ही छू गया,
दिल की गिरह को धीरे से खोल गया।
ना डांटा, ना टोका, ना जज किया,
बस थोड़ी देर बैठ, सब समझ लिया।
वो कौन था? शायद कोई ‘गाइड’ नहीं,
बस दिल से जुड़ा एक ‘अपना’ कहीं।
हर बच्चा चाहता है सिर पे हाथ,
ना हो किताबें, बस हो एक साथ।
जहाँ नापी न जाए उसकी काबिलियत,
बल्कि सराही जाए उसकी मासूमियत।
तो चलो बनें हम सब वो ‘कोना’,
जहाँ बच्चा पाए दिल का खजाना।
माँ-बाप हों, या शिक्षक बन जाएं,
बस बच्चे के ‘अपने’ कहलाएं।
© 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved.
8. मैं कर सकता हूँ!
मैं छोटा हूँ, मगर दिल में प्यार है,
हर दिन कुछ नया सीखने की जज़्बा साथ है।
मेरे भीतर एक अलौकिक रौशनी चमकती है,
जिससे मेरी राहें, हर मुश्किल से निकलती हैं।
मैं गिरता हूँ, फिर उठ जाता हूँ,
हर नया कदम, मुझे और ताकत दिलाता हूँ।
जूते भी बांध सकता हूँ, किताबें भी पढ़ सकता हूँ,
हर अल्फाज़ में, खुद को पहचान सकता हूँ।
मुझे बस अपना दिल सुनने दो,
सच्चाई की राह पर चलने दो।
मेरे अंदर वो आवाज़ है,
जो मुझे कहती है, “तू कर सकता है!”
मैं प्यार से सबका साथ दूँ,
मित्रों के साथ हँसी बाँट दूँ।
मेरे कदम सही दिशा में बढ़ते जाएँ,
हर पल में प्यार और सचाई की रीतें सिखाए जाएँ।
जब आत्मविश्वास हो मन में,
हर अंधेरा भी लगे सुनहरा।
मैं कर सकता हूँ, बस खुद पर यकीन रखो,
मेरी राह में यही शक्ति है, यही सच्चा जहाँ है!
बच्चों के लिए संदेश:
तुमसे बड़ा कोई नहीं,
तुम्हारी शक्ति अनमोल है।
विश्वास रखो, अपने अंदर की ताकत पहचानो,
तुम कुछ भी कर सकते हो, खुद से प्यार करो!
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9. एक दीप तुम्हारे जैसे
(समर्पित – एक शिक्षक, एक साधक, एक सेवक को)
तुम चलते हो चुपचाप पग धर के,
ना शोर है, ना पहचान का आग्रह।
बस सेवा है, समर्पण है, और
हर बच्चे में ईश्वर का भाव है।
न किताबों तक सीमित तुम्हारी दृष्टि,
ना पाठ्यक्रम ही तुम्हारा सत्य है।
तुम पढ़ाते हो जीवन का गणित,
जहाँ ‘प्यार + अनुशासन = प्रगति’ है।
छोटे-से गाँव में जो सपना बोया,
वो फूल बनके मुस्कुराता है।
तुम्हारी छाया में एक मासूम बच्चा
पहली बार खुद को पाता है।
न माता-पिता ने जो नहीं दिया,
वो तुमने हर स्पर्श में दे डाला।
भूले हुए घर को तुमने
विद्यालय की गोदी में सहेज डाला।
तुम दीप नहीं — दीपों का पुंज हो,
अंधेरों के बीच उम्मीद की ताजगी हो।
जो हर दिल में भरोसा भर दे,
तुम वैसा ही कोई सच्चा ऋषि हो।
~© 2025 आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved.
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