सही या गलत से परे जाओ: आत्मा की स्वच्छंद उड़ान
~ आनंद किशोर मेहता
हम अपने जीवन में हर क्षण निर्णय करते हैं — यह सही है या गलत? यह अच्छा है या बुरा? यह पाप है या पुण्य? पर क्या कभी आपने सोचा है कि यह "सही और गलत" का विचार स्वयं कहाँ से आता है? यह समाज से आता है, परंपराओं से आता है, संस्कारों से आता है — परंतु आत्मा की आवाज़ इन सबसे परे होती है।
द्वैत से अद्वैत की ओर
हमारा जीवन द्वैत (Duality) से भरा है: सुख-दुख, जीत-हार, दोष-गुण, सही-गलत। परंतु जब आत्मा जागती है, तो वह इन सभी द्वंद्वों को पार करके अद्वैत में प्रवेश करती है — जहाँ कोई पक्ष नहीं होता, केवल शुद्ध चेतना होती है। वहाँ न आलोचना होती है, न प्रशंसा; न अस्वीकार होता है, न पक्षपात — केवल साक्षीभाव होता है।
साक्षी बनो, निर्णायक नहीं
जब हम स्वयं को और दूसरों को सही या गलत ठहराने लगते हैं, तो हम अहंकार से भर जाते हैं। पर जब हम साक्षीभाव में आते हैं, तब हम समझने लगते हैं कि हर जीव अपनी स्थिति, परिस्थिति और चेतना के अनुसार ही व्यवहार करता है। हममें करुणा आती है, और प्रतिक्रिया की जगह समझदारी जन्म लेती है।
सत्य की खोज
सही-गलत का खेल अंतहीन है, पर सत्य केवल एक है — और वह सत्य हमारे भीतर है, जो मौन है, शांत है, प्रेममय है। वह हमें न तो बाँधता है, न डाँटता है — वह केवल प्रकाश देता है, दिशा देता है। सत्य तक पहुँचने के लिए हमें 'सही और गलत' के शोर से निकलकर 'भीतर की शांति' की ओर लौटना होता है।
भगवद्गीता का मार्गदर्शन
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा — "बुद्धियोग युक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते।"
जो व्यक्ति बुद्धियोग (अंतर्मन की शुद्ध दृष्टि) से युक्त होता है, वह पुण्य और पाप — दोनों से परे चला जाता है। यह वही अवस्था है जहाँ हम केवल कर्म करते हैं — निष्काम, निःस्वार्थ, साक्षी भाव से।
प्रेम ही अंतिम सत्य है
जब हम सही और गलत के पार पहुँचते हैं, तब हम प्रेम को पहचानते हैं। वह प्रेम न किसी नियम से बँधा है, न किसी शर्त से — वह बस बहता है, सबको अपनाता है, और अंततः हमें मुक्ति देता है।
निष्कर्ष:
जो व्यक्ति सही और गलत के परे जा सकता है, वह न तो संसार से भागता है, न उसे दोष देता है — वह उसमें रहकर भी निर्लिप्त हो जाता है। यही सच्ची आध्यात्मिकता है — जहाँ हम सबको अपनाते हैं, समझते हैं और बिना निर्णय किए, केवल प्रेम और प्रकाश फैलाते हैं।
© 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved.
Comments
Post a Comment