पवित्र भूमि भारत: विश्व को दिशा देने वाला देश
प्रारंभिक भाव:
भारत—यह केवल एक भूखंड नहीं, यह एक चेतन संस्कृति, एक आध्यात्मिक ऊर्जा और मानवता के कल्याण की भावना का अद्भुत संगम है। यह वह पुण्य भूमि है जिसने न केवल हमें जन्म दिया, बल्कि हमें यह सौभाग्य भी प्रदान किया कि हम मानवता के मार्गदर्शक इस महान देश के नागरिक हैं।
यह भूमि अपने आप में एक प्राचीन तपस्या है, जहाँ हर धूल कण ऋषियों की साधना से पवित्र है और हर नदी माँ की तरह जीवनदायिनी। यहाँ के पर्वत, यहाँ की हवाएँ, यहाँ की गूँज—सब कुछ किसी दिव्य संगीत की तरह आत्मा को छूते हैं।
भारत की दिव्यता:
भारत की धरती को केवल पावन कहना पर्याप्त नहीं। यह वह भूमि है जहाँ
- वेदों की ऋचाएँ गूंजीं,
- उपनिषदों की गहराई में आत्मा की खोज हुई,
- बुद्ध और महावीर जैसे संतों ने करुणा, अहिंसा और आत्म-साक्षात्कार का मार्ग दिखाया,
- और जहाँ गुरु नानक, संत कबीर, तुलसीदास और मीरा ने भक्ति की निर्झरिणी बहाई।
भारत वह भूमि है जहाँ प्रेम केवल भाव नहीं, एक जीवन-पथ है। जहाँ सेवा केवल कार्य नहीं, आत्मा की अभिव्यक्ति है। और जहाँ तप, त्याग और समर्पण जीवन के मूलभूत सिद्धांत हैं।
भारत की वैश्विक भूमिका:
जब दुनिया तकनीक की प्रगति में आत्मा से दूर होती जा रही है, तब भारत वह प्रकाश-स्तंभ है जो संतुलन, सह-अस्तित्व और शांति का मार्ग दिखाता है।
- योग और ध्यान ने न केवल शरीर को स्वस्थ किया है, बल्कि आत्मा को भी जागरूक किया है।
- आयुर्वेद ने केवल औषध नहीं दी, जीवन का विज्ञान दिया।
- “वसुधैव कुटुम्बकम्” ने हमें सीमाओं से ऊपर उठकर समस्त विश्व को एक परिवार मानने का दृष्टिकोण दिया।
भारत एकमात्र ऐसा राष्ट्र है जो विज्ञान और अध्यात्म दोनों को समरसता से अपनाता है। यही समन्वय ही आज की असंतुलित विश्व-व्यवस्था के लिए संजीवनी बन सकता है।
हमारा सौभाग्य:
हमारा जन्म इस भूमि पर हुआ — जहाँ
- सत्य के लिए गांधी जी ने असहयोग का मार्ग चुना,
- भगत सिंह ने क्रांति को देशप्रेम का रूप दिया,
- और अनगिनत वीरों ने माँ भारती के चरणों में अपना जीवन समर्पित किया।
यह मिट्टी केवल जमीन नहीं, संस्कार है। यह हवा केवल श्वास नहीं, आदर्शों की गंध है। यह भारत—कभी हार नहीं मानता, कभी थमता नहीं, क्योंकि इसकी आत्मा अनंत है।
भारतीय होना केवल एक नागरिकता नहीं, एक जिम्मेदारी है। हमें इस सौभाग्य को आत्मगौरव से नहीं, आत्मनिष्ठा से निभाना है।
समापन भाव:
आज जब विश्व दिशाहीनता और मूल्यहीनता के संकट से गुजर रहा है, तब भारत की भूमिका केवल एक राष्ट्र की नहीं, एक जीवंत प्रेरणा की है।
आइए, हम सब मिलकर इस चेतन भारत को उसका यथोचित स्थान दिलाएँ —
- अपने आचरण से,
- अपने विचारों से,
- और अपने समर्पण से।
क्योंकि भारत केवल एक देश नहीं —
एक विचार है, एक दृष्टि है, एक जीवंत ज्योति है —
जो अंधकार में भी सत्य, प्रेम और शांति का मार्ग दिखा सकती है।
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