अनुभवों की आँच में पका हुआ सत्य
~ आनंद किशोर मेहता
हम अक्सर सोचते हैं कि सत्य केवल किताबों, शोधों या बड़े-बड़े मंचों पर बोला जाता है —
पर मेरे अनुभव ने सिखाया है कि सत्य वहाँ भी होता है जहाँ आँसू चुपचाप बहते हैं,
जहाँ एक मासूम बच्चा स्कूल की ओर निहारता है,
और जहाँ एक शिक्षक अपने भीतर की सारी थकावट भूलकर बच्चों की आँखों में भविष्य देखता है।
मेरे जीवन का विज्ञान कुछ और है —
यह हृदय की गणना करता है, आत्मा की गति नापता है, और संवेदना के परमाणुओं को जोड़कर एक जीवनद्रव्य बनाता है।
यहाँ नियम कोई सूत्र नहीं, बल्कि प्रेम, धैर्य और सेवा हैं।
सत्य की खोज कहाँ से शुरू होती है?
न किसी प्रयोगशाला से, न किसी पुरस्कार से।
बल्कि तब, जब एक बच्चा पूछता है –
"सर, अगर आप नहीं होते तो हमें कोई नहीं पढ़ाता। घर पर तो कोई पूछता ही नहीं..."
उस एक वाक्य ने मुझे झकझोर दिया था।
किसी को विज्ञान में अनिश्चितता दिखती है,
पर मुझे बच्चों के भविष्य में विश्वास की तलाश दिखती है।
मेरे छोटे से स्कूल का बड़ा सच
यह स्कूल लक्जरी से भरा नहीं है –
पर इसकी दीवारों पर जो प्रेम की ध्वनि गूंजती है,
वह किसी वैज्ञानिक प्रयोग से कम नहीं।
यहाँ बच्चे किताबों से नहीं, व्यवहार और आत्मीयता से सीखते हैं।
मैंने देखा है कि जब बच्चों को सिर्फ शिक्षा नहीं, सहारा भी मिलता है —
तो उनका चेहरा बदलता है, उनकी चाल बदलती है, और उनका भविष्य भी।
जीवन का सबसे बड़ा प्रयोग
अगर आप मुझसे पूछें कि मैंने कौन-सा सबसे बड़ा प्रयोग किया —
तो मैं कहूँगा,
“मैंने अपने भीतर के अभिमान को त्यागकर सेवा को अपनाया। और यही मेरा सबसे सफल प्रयोग रहा।”
संक्षेप में:
सत्य किसी एक पद्धति से नहीं पाया जा सकता।
कभी वह विज्ञान की प्रयोगशाला में जन्म लेता है,
तो कभी किसी बच्चे की चुप्पी में, किसी शिक्षक की मुस्कान में, और किसी माता-पिता की आँखों की उम्मीद में।
मैं आज भी सीख रहा हूँ —
हर दिन, हर अनुभव से।
क्योंकि मेरे लिए जीवन कोई सिलेबस नहीं,
बल्कि एक अनोखा पाठ है — जो केवल प्रेम, सेवा और समर्पण से ही समझा जा सकता है।
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