मौन पथ का राही
लेखक: आनन्द किशोर मेहता
जीवन की यात्रा में कुछ ऐसे क्षण आते हैं, जब सब कुछ ठहर सा जाता है।
चेहरों की भीड़ में अकेलापन गूंजता है,
शब्दों के शोर में मौन गहराता है।
वही लोग जो कभी साथ थे, अब दूर हैं।
अब कोई नहीं बोलता... शायद इसलिए नहीं कि कहने को कुछ नहीं,
बल्कि इसलिए कि अब मैंने सुनना बंद कर दिया है।
अब मुझे किसी का साथ नहीं चाहिए।
यह कोई घमंड नहीं, यह वह स्वीकृति है जो भीतर से आई है।
अब मैं अकेला नहीं, स्वयं के साथ हूं।
और यही साथ सबसे सच्चा है।
मैं अब उस पथ का राही हूं जो भीड़ से नहीं, मौन से गुजरता है।
जहां शोर नहीं, शांति है।
जहां सवाल नहीं, स्वीकृति है।
जहां दिशा नहीं पूछनी पड़ती, क्योंकि भीतर की आवाज़ ही मार्गदर्शक बन गई है।
मैं नाचता हूं, गाता हूं, झूमता हूं,
पर वह सब भीतर ही भीतर।
बाहरी दुनिया को यह एक खामोश चलना लगता है,
पर अंदर एक ज्वालामुखी फूट रहा है।
मैं आज भी कहना चाहता हूं —
जो मेरे साथ चलना चाहता है, चले।
पर एक शर्त के साथ:
खामोशी में चलो।
बिना शोर, बिना शिकायत, बिना शंका।
क्योंकि यह यात्रा बाहरी नहीं, चेतना की गहराइयों तक जाती है।
मैं फिर से शंखनाद करूंगा —
पर उसकी ध्वनि कानों को नहीं,
चेतना को झकझोर देगी।
उसका नाद इतना मौन होगा कि केवल वे ही सुन सकेंगे,
जिनका अंतःकरण जाग गया है।
समय आ रहा है।
बहुत जल्द — जब सब कुछ बदल जाएगा।
जो चलना नहीं चाहते, वे अभी से किनारा कर लें।
क्योंकि यह मार्ग किसी को ढोकर नहीं ले जाएगा।
यह एक आत्मिक ज्वारभाटा है —
जो अधीर आत्माओं को नई दिशा देगा,
और निष्क्रियता को बहाकर ले जाएगा।
मैं मौन पथ का राही हूं...
अगर तुम भी तैयार हो — तो चलो।
जब मन मुस्कराए… बिना वजह के
(मौन पथ पर चलते हुए भीतर फूटती कुछ मधुर अनुभूतियाँ)
- आज का दिन बिना किसी कारण अच्छा लग रहा है — जैसे ज़िंदगी ने हल्का सा हाथ थाम लिया हो।
- खुश होने के लिए वजह ढूंढनी नहीं पड़ती, बस दिल को शुक्रगुजार बना लो – हर पल अच्छा लगने लगेगा।
- आज दिल ने कुछ नहीं मांगा… फिर भी सब कुछ मिल गया।
- कभी-कभी एक सादा सा दिन दिल की सबसे बड़ी ईद बन जाता है।
- ख़ुशी किसी को दिखाने की चीज़ नहीं… आज वो चुपचाप मेरी रगों में उतर आई है।
- जिस दिन दिल की ज़ुबान खामोश हो और फिर भी सब कुछ कह दे… वो दिन बड़ा हसीन होता है।
- आज कुछ भी खास नहीं हुआ, पर फिर भी सब कुछ खास लग रहा है।
- कभी-कभी बिना किसी कारण के अच्छा महसूस करना भी ईश्वर की सबसे प्यारी सौगात होती है।
- आज महसूस हो रहा है – खुशी कहीं बाहर नहीं, मेरे भीतर ही घर बनाकर बैठी है।
- चलते-चलते थम गया एक पल… जैसे वक़्त ने मेरी ख़ुशी पर दस्तक दी हो।
- ना कोई चाह, ना कोई शिकायत… सिर्फ एक मीठा-सा एहसास – "मैं ज़िंदा हूँ, और यह काफी है।"
- आज सब कुछ वैसा ही है, फिर भी कुछ तो बदला है — शायद मैं… खुद से मिल आया हूँ।
- मौसम नहीं बदला… पर नज़रिया थोड़ा साफ़ हो गया है।
- हर चीज़ अपनी जगह पर है, और मैं पहली बार कहीं भाग नहीं रहा — बस ठहरकर महसूस कर रहा हूँ।
- आज कोई दुआ नहीं मांगी, बस सुकून से आँखें बंद कीं — और दिल मुस्करा उठा।
© 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved.
Comments
Post a Comment