कोई दवा नहीं है उसके रोगों की… ~ जो जलता है तरक्की देखकर लोगों की!
~ आनंद किशोर मेहता
हर इंसान की यात्रा अलग होती है।
कोई कठिनाइयों को चीरता हुआ आगे बढ़ता है,
कोई अवसरों का सदुपयोग करके उन्नति करता है,
तो कोई आत्मचिंतन और प्रयास से अपने जीवन को सँवारता है।
लेकिन समाज में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं
जो दूसरों की तरक्की देखकर प्रेरणा लेने के बजाय,
भीतर ही भीतर जलने लगते हैं।
यह जलन कोई सामान्य भावना नहीं होती —
यह एक मानसिक रोग बन जाती है।
और दुख की बात यह है कि इस रोग की कोई दवा नहीं होती,
क्योंकि यह मन से उत्पन्न होती है और वहीं पलती रहती है।
ईर्ष्या: आत्मविकास का सबसे बड़ा बाधक
ईर्ष्यालु व्यक्ति अपने प्रयास पर ध्यान नहीं देता।
वह दूसरों की उन्नति को देखकर दुखी होता है,
दूसरों को गिराने की सोचता है,
और धीरे-धीरे अपनी ऊर्जा, शांति और आत्मबल खो देता है।
जबकि तरक्की करने वाले लोग
हर आलोचना को प्रेरणा बना लेते हैं
और बिना किसी से मुकाबला किए अपनी राह चलते रहते हैं।
सफलता पर नहीं, संघर्ष पर गौर कीजिए
जो व्यक्ति सफल हुआ है,
उसकी मेहनत और संघर्ष की अनदेखी करना आसान है।
लेकिन किसी की मुस्कान के पीछे छुपे आँसू,
किसी की ऊँचाई के पीछे छुपी तपस्या को समझना –
यह एक बड़े दिल और खुले विचार का काम है।
जो लोग दूसरों की सफलता को देखकर प्रेरित होते हैं,
वे स्वयं की राह बनाते हैं।
लेकिन जो केवल जलते हैं, वे अंधकार में खो जाते हैं।
तुलना नहीं, आत्मचिंतन कीजिए
दूसरों से तुलना करने की बजाय यदि हम यह सोचें कि –
"मैं अपनी स्थिति में क्या बेहतर कर सकता हूँ?"
तो ईर्ष्या की आग शांति की ठंडी छाँव में बदल सकती है।
खुद को निखारना ही असली प्रतियोगिता है।
समाज को चाहिए प्रोत्साहक, न कि आलोचक
एक उन्नत समाज वह होता है
जहाँ लोग एक-दूसरे की सफलता पर तालियाँ बजाते हैं,
न कि जलते हैं।
किसी की सफलता को देखकर उसे प्रोत्साहित कीजिए –
क्योंकि उसका उत्साह बढ़ेगा तो समाज भी आगे बढ़ेगा।
निष्कर्ष
"दूसरों की तरक्की देखकर जलना,
स्वयं को पीछे धकेलना है।
यदि प्रेरणा लो, तो मार्ग बनता है –
और अगर जलो, तो जीवन जलता है।"
याद रखिए –
ईर्ष्या से आत्मा खोखली होती है,
प्रेरणा से आत्मा ऊर्जावान।
चुनाव आपके हाथ में है।
"जीवन प्रतियोगिता नहीं, आत्म-विकास की यात्रा है —
जहाँ लक्ष्य दूसरों से नहीं, खुद से बेहतर बनना है।"
"दूसरों की सफलता से खुद को कम आंकना,
आत्मबल को खो देता है।
तुलना तभी प्रेरक बनती है जब वह सकारात्मक सोच से हो।"
© 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved.
"जलन नहीं, बस इश्क़ हो तरक्की से"
~ आनंद किशोर मेहता
जलन नहीं, मोहब्बत हो किसी की उड़ान से,
सीख लें कुछ हम भी उसकी पहचान से।
जो आगे बढ़ा, उसने कुछ सीखा होगा,
हर कदम से पहले शायद गिरा भी होगा।
क्यों न उस रौशनी से रौशनी लें हम,
और जलाएं अपनी राह, सच्चे कर्मों से हम।
दिल को साफ़ रखें, आँखों में दुआ हो,
हर किसी की खुशी में भी खुदा हो।
तू क्यों जलता है? चल, चलना सीख,
हर मंज़िल तुझसे एक वादा कर रही है।
तरक्की किसी की हो — अपनी जीत मान,
उसकी कामयाबी में खुद को भी पहचान।
रूह से रूह का हो जुड़ाव अगर,
तो फिर दिल में नफ़रत की जगह क्यों ?
इश्क़ बाँट, सुकून बाँट, दुआ दे जहाँ को,
फिर देख, कैसे लौटेगा चैन तेरे रूह को।
जलन नहीं, बस इश्क़ हो तरक्की से,
हर रूह नाचे उस रब की बंदगी से।
© 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved.
दुनिया को जीतना है तो मुस्कराओ,
नफ़रत नहीं — मोहब्बत बोओ, महक फैलाओ।
दुनिया की दौलत जो भी पा ले,
अगर खुद से दूर हो जाए — तो खाली ही रह जाए।
रब की राह आसान नहीं होती,
पर जो उस पर चलता है — मंज़िल खुद उसका नाम लेती है।
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