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क्या यह इंसानों की बस्ती है?

क्या यह इंसानों की बस्ती है?  ~ ANAND KISHOR MEHTA सुबह के साथ उम्मीद जगती है। हर मोहल्ला, हर गली, हर घर – एक नई शुरुआत की संभावना लेकर उठता है। लेकिन कुछ जगहों पर सुबह की यह संभावना शोर में दब जाती है। जैसे ही सूरज निकलता है, किसी के घर में गालियाँ गूंजती हैं, तो कहीं दरवाज़े पटके जाते हैं। मोहल्ला जैसे झगड़ों का अखाड़ा बन चुका हो – न किसी को सुनना है, न समझना है – सिर्फ बोलना है, चिल्लाना है, थोपना है। ऐसा लगता है मानो लोग अपनी-अपनी जिंदगी की हताशा, कुंठा और अधूरी इच्छाओं का बोझ एक-दूसरे पर फेंककर हल्का होना चाहते हैं। कोई अपनी बात न माने जाने पर खुद को चोट पहुँचा देता है – जैसे स्वयं से ही बदला ले रहा हो। कोई दूसरों की आवाज दबाकर खुद को सही सिद्ध करता है – मानो बहस जीतना ही जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि हो। कोई चुप रहता है, पर भीतर ही भीतर घुटता है, अपनी चुप्पी से नफरत करने लगता है। और कोई, नशे में डूबकर खुद को ‘शांत’ करने की कोशिश करता है – लेकिन वह नशा केवल थोड़ी देर के लिए चीखों की आवाज धीमी करता है, हालात नहीं बदलता। क्या यही मानवता है? क्या यही सभ्यता है? क्या इस झगड़े...

कविता श्रृंखला: अनकहे एहसास: दिल की बात

कविता श्रृंखला:  अनकहे एहसास: दिल की बात  मैं दिया हूँ!  मेरी दुश्मनी तो सिर्फ अँधेरे से है, हवा तो बेवजह ही मेरे खिलाफ है। – गुलज़ार कविता: मैं दिया हूँ ~ आनंद किशोर मेहता मैं दिया हूँ... मुझे बस अंधेरे से शिकायत है, हवा से नहीं। वो तो बस चलती है… कभी मेरे खिलाफ, कभी मेरे साथ। मैं चुप हूँ, पर बुझा नहीं, क्योंकि मेरा काम जलना है। ताकि किसी राह में भटके हुए को रौशनी मिल सके। मुझे दिखावा नहीं आता, ना ही शोर मचाना। मैं जलता हूँ भीतर से — सच, प्रेम और सब्र के संग। हवा सोचती है, कि वो मुझे गिरा सकती है। पर उसे क्या पता — मैं हर बार राख से भी फिर से जल उठता हूँ। मैं दिया हूँ… नम्र हूँ, शांत हूँ, मगर कमजोर नहीं। मैं अंधेरे का दुश्मन हूँ, इसलिए उजाले का दोस्त बना हूँ। तू चाहे जितनी बार आज़मा ले, मैं फिर भी वही रहूँगा — धीरे-धीरे जलता, पर हर दिल को छूता। © 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved. "दीया कभी अंधेरे से डरता नहीं,… वो तो उसी के बीच खुद को साबित करता है।" "हवा से शिकवा नहीं,… क्योंकि उसे नहीं पता — कि मेरी लौ मेरी श्रद...

ऊपर से सख्त, भीतर से विनम्र

ऊपर से सख्त, भीतर से विनम्र  ~ आनंद किशोर मेहता कई लोग ऐसे होते हैं जो बाहर से कठोर और अनुशासनप्रिय प्रतीत होते हैं, पर भीतर से अत्यंत संवेदनशील, कोमल और करुणामय होते हैं। यह कोई विरोधाभास नहीं, बल्कि एक संतुलित व्यक्तित्व की निशानी है। बाहरी सख्ती उनके अनुभवों की उपज होती है — जीवन में मिले धोखे, उपेक्षा या जिम्मेदारियों की गंभीरता ने उन्हें दृढ़ बनना सिखाया होता है। जबकि उनकी आंतरिक विनम्रता एक शुद्ध अंतःकरण और भावनात्मक समझदारी का परिचायक होती है। वे हर किसी को हानि पहुँचाने से बचते हैं, परंतु ज़रूरत पड़ने पर सच्चाई और अनुशासन के लिए अडिग रहते हैं। ऐसे लोग जीवन में मर्यादा, अनुशासन और प्रेम का संतुलन बनाए रखते हैं। वे न तो दिखावे के दयालु होते हैं, न ही क्रूर हृदय वाले। वास्तव में, यही संतुलन उन्हें समाज में एक सच्चे मार्गदर्शक और भरोसेमंद व्यक्तित्व बनाता है। © 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved. दिल की गहराई ~ आनंद किशोर मेहता मैं बाहर से सख्त जरूर हूँ, पर दिल में इक रौशनी भरपूर हूँ। मेरे लफ्ज़ कभी तीखे लगते हैं, मगर हर बात में दुआ रखते हैं। मैं चुप रहता हूँ...

वो अनकहा जो रिश्तों को तोड़ देता है

वो अनकहा जो रिश्तों को तोड़ देता है  ~ आनंद किशोर मेहता रिश्ते कभी एक दिन में नहीं टूटते। ना ही कोई बड़ी घटना इसकी वजह होती है। यह तो छोटे-छोटे अनदेखे क्षणों की वो दरारें हैं, जब किसी ने सुना नहीं, किसी ने समझा नहीं, और किसी ने चाहकर भी कुछ कहा नहीं। हर बार जब हम अपनी भावनाएँ दबा जाते हैं, हर बार जब हम सामने वाले को 'समझ जाएगा' मान लेते हैं — हम अनजाने में एक ईंट खींच लेते हैं उस नींव से, जिस पर कभी विश्वास की दीवार खड़ी थी। हम सोचते हैं, "अभी नहीं तो बाद में कह दूँगा", पर वो 'बाद' कभी आता नहीं। और एक दिन, हम पाते हैं कि वो रिश्ता सिर्फ यादों में रह गया है — उससे जुड़ा इंसान अब हमारे पास नहीं। या अगर है भी... तो वैसा नहीं रहा, जैसा कभी हुआ करता था। ऐसे में हमें खुद से पूछना होगा — क्या हम सच में आगे बढ़े हैं? या दूसरों को पीछे छोड़ते हुए खुद को खो बैठे हैं? जीवन में सम्मान चाहिए, पर उस कीमत पर नहीं कि किसी को छोटा करके खुद बड़े दिखें। हमें हँसना है, मगर किसी की चुप्पी की कीमत पर नहीं। हमें उड़ना है, मगर किसी के सपनों को रौंदकर नहीं। रिश्ते सँजोने ...

बुद्धि और विवेक को निखारने के 9 संतुलित और सार्थक उपाय

बुद्धि और विवेक को निखारने के 9 संतुलित और सार्थक उपाय  ~ आनंद किशोर मेहता 1. पढ़ने की आदत को आनंदमय बनाएं पढ़ना केवल सूचनाएँ लेने के लिए नहीं, बल्कि सोचने और समझने की एक सुंदर प्रक्रिया है। जब हम भावपूर्वक और रुचि से पढ़ते हैं, तो न केवल जानकारी बढ़ती है, बल्कि मन की स्पष्टता और भाषा की सुंदरता भी निखरती है। 2. ऐसे लोगों का संग चुनें जो सोच को विस्तार दें हमेशा समान सोच वाले नहीं, बल्कि सकारात्मक और विवेकी लोगों के बीच समय बिताएं। उनकी बातें और दृष्टिकोण आपकी सोच में संतुलन और परिपक्वता ला सकते हैं। 3. सीखने को जीवन का स्वाभाविक हिस्सा बनाएं चाहे उम्र कोई भी हो, नई चीज़ें सीखने का उत्साह कभी कम न करें। रोज़मर्रा के जीवन में भी छोटे-छोटे अनुभवों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है, बशर्ते दृष्टि जागरूक हो। 4. कल्पना को दिशा दें, सीमा नहीं कल्पना केवल उड़ान नहीं है, यह सोच की गहराई है। कल्पनाशक्ति का उपयोग करें समस्याओं के समाधान खोजने, नई संभावनाएँ देखने और भीतर की रचनात्मकता को जाग्रत करने के लिए। 5. आत्मचिंतन करें, लेकिन आलोचना नहीं जो सीखा है उस पर शांत होकर विचार करें — वह आ...

सोचने लायक बना दिया है…

  सोचने लायक बना दिया है…  ~ आनंद किशोर मेहता जब लोग मेरी कमियाँ गिनाने में व्यस्त होते हैं, तब मैं मुस्कुरा कर यह समझ जाता हूँ — मैंने उन्हें सोचने लायक कुछ तो दिया है। किसी को चुभी है मेरी बात, किसी को खटक गया मेरा बदलाव, और किसी को झुकना पड़ा अपने अहम के सामने। क्योंकि, जो कुछ भी हमें भीतर से हिला दे — वो साधारण नहीं होता। रिश्ते कभी कुदरती मौत नहीं मरते। इन्हें मारता है इंसान खुद — नफरत से, नजरअंदाज़ से, और कभी-कभी, सिर्फ एक गलतफहमी से। कभी-कभी सोचता हूँ — मुझे क्या हक है कि किसी को मतलबी कहूं? मैं खुद रब को सिर्फ मुसीबत में याद करता हूँ! तो फिर दूसरों के स्वार्थ पर क्यों उंगली उठाऊँ? हम जब किसी की सफलता को स्वीकार नहीं कर पाते, तो वह हमारे भीतर ईर्ष्या बनकर जलती है। और जब उसे अपनाकर देखें — तो वही सफलता प्रेरणा बन जाती है। मैं अक्सर जिनके झूठ का मान रख लेता हूँ, वो सोचते हैं, उन्होंने मुझे बेवकूफ़ बना दिया। पर उन्हें यह कौन समझाए — मैंने रिश्ते की मर्यादा बचाई, ना कि अपनी मूर्खता दिखाई। कोई दवा नहीं है उन रोगों की, जो तरक्की देखकर जलने लगते ह...

THOUGHTS 18 MAY 2025

THOUGHTS:-   ना मुझे काना-फूसी भाती है, ना जी-हुजूरी रास आती है; मैं तो बस प्रेम का राही हूँ — जिसकी हर एक चाल, प्रेम ने सुलझाई है। — आनंद किशोर मेहता झूठ के सहारे बड़ी-बड़ी बातें की जा सकती हैं, लेकिन मानवता की ऊँचाई केवल सच से ही हासिल होती है। — आनंद किशोर मेहता मानवता कोई वेश नहीं, जिसे ज़रूरत के हिसाब से बदला जा सके — यह तो आत्मा की असली परछाई है। — आनंद किशोर मेहता जहाँ स्वार्थ बोलते हैं, वहाँ वास्तविकता खामोश हो जाती है — क्योंकि वह दिखावे की मोहताज नहीं होती। — आनंद किशोर मेहता रिश्ते बनते हैं शब्दों से, लेकिन टिकते हैं कर्तव्यों से। — आनंद किशोर मेहता जो पीठ पीछे भी वैसा ही रहे, वही सच्ची मानवता है — बाकी सब अभिनय है। — आनंद किशोर मेहता स्वयं का मूल्य न जानने वाला, दूसरों के मूल्य को क्या समझेगा? जो अपने ही अस्तित्व को न पहचान सका, वो भला औरों की अहमियत क्या जाने? — आनंद किशोर मेहता जिसने खुद की अहमियत को पहचान लिया, वही दूसरों की असल कदर करना जानता है – क्योंकि सम्मान देना, पहले स्वयं से शुरू होता है। — आनंद किशोर मेहता जो अपने ही मन की चालबाज़ियों, भ...