ईश्वर की स्वीकृति: भय, वैराग्य या प्रेम? लेखक: आनंद किशोर मेहता मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा प्रश्न यही है— ईश्वर को हम क्यों और कैसे स्वीकार करते हैं? क्या हम उन्हें तब स्वीकारते हैं जब जीवन में सब कुछ बिखर जाता है? क्या हम उन्हें तब खोजते हैं जब दुनिया के सुख हमें अर्थहीन लगने लगते हैं? या फिर हम ईश्वर को प्रेम से, श्रद्धा से, उनके अस्तित्व की गहरी अनुभूति से स्वीकारते हैं? मनुष्य प्रायः तीन अवस्थाओं में ईश्वर की शरण में जाता है— 1. वैराग्य के कारण ईश्वर की स्वीकृति जब व्यक्ति जीवन के भोग-विलास से संतृप्त हो जाता है, उसे लगता है कि यह संसार केवल क्षणिक सुख-दुःख का खेल है। वह देखता है कि जो कुछ भी उसने अर्जित किया, वह अंततः समाप्त हो जाता है। धन, प्रसिद्धि, परिवार, मित्र—सब समय के साथ बदलते हैं, मिट जाते हैं। ऐसे में उसका मन सांसारिक मोह-माया से हटकर किसी शाश्वत सत्य की खोज में लग जाता है। यह खोज उसे ईश्वर तक ले जाती है। वह अनुभव करता है कि संसार के सारे सुख क्षणभंगुर हैं, लेकिन ईश्वर का आनंद अनंत है। संतों और मनीषियों ने इसे ही 'वैराग्य' कहा है—एक ऐसी अवस्था जहाँ संसार की च...
Fatherhood of God & Brotherhood of Man.