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Showing posts from March, 2025

श्रेष्ठ विचारों को अपनाने से खुद में परिवर्तन

श्रेष्ठ विचारों को अपनाने से खुद में परिवर्तन   ~ आनंद किशोर मेहता परिचय विचारों का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। हम जो सोचते हैं, वही हमारी वास्तविकता बनता है। श्रेष्ठ और सकारात्मक विचारों को अपनाकर हम अपने व्यक्तित्व, मानसिकता और जीवन की दिशा में परिवर्तन ला सकते हैं। यह परिवर्तन न केवल व्यक्तिगत जीवन में बल्कि समाज में भी समृद्धि और प्रगति का कारण बन सकता है। श्रेष्ठ विचारों को अपनाने की आवश्यकता क्यों? ज्ञान और समझ का विस्तार – श्रेष्ठ विचारों को अपनाने से हम नए दृष्टिकोण और विचारों को समझते हैं, जिससे हमारी बौद्धिक क्षमता का विस्तार होता है। सुकरात ने कहा था, "सही ज्ञान वही है जो हमें अपने अज्ञान को पहचानने में मदद करे।" नवाचार और विकास – वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति नए विचारों को अपनाने के कारण ही संभव हुई है। यदि आइज़ैक न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को स्वीकार नहीं किया होता, तो भौतिकी के वर्तमान रूप की कल्पना नहीं की जा सकती थी। समाज में समरसता और सहिष्णुता – महात्मा गांधी का सत्य और अहिंसा का विचार सभी दृष्टिकोणों को अपनाने और सहिष्णुता रखने पर आ...

संघर्ष और समर्पण: सफलता की नई कहानी

संघर्ष और समर्पण: सफलता की नई कहानी   ~ आनंद किशोर मेहता प्रिय विद्यार्थियों, जीवन एक अद्भुत यात्रा है, जिसमें हर दिन हमें कुछ नया सिखाने और हमारे सपनों को साकार करने का अवसर देता है। जब आप किसी लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं, तो रास्ते में कई चुनौतियाँ आती हैं, लेकिन याद रखें कि यही चुनौतियाँ आपकी शक्ति को निखारने का मौका देती हैं। "बेटा, उठो और जागो, सवेरा हो गया है। हिम्मत मत हारो, एक दिन तुम्हारी यह मेहनत रंग लाएगी और तुम अपनी एक नई कहानी लिखोगे।" यह संदेश केवल एक शब्द नहीं, बल्कि जीवन के हर संघर्ष को पार करने के लिए एक प्रेरणा है। जब आप किसी कठिन रास्ते पर होते हैं, तो यह समझना ज़रूरी है कि सफलता केवल प्रयास से ही प्राप्त होती है। हर संघर्ष में छिपी होती है आपकी सफलता की कुंजी। संघर्ष का महत्व संघर्ष, जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है। जब हम किसी लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं, तो हम कई बार गिरते हैं, उठते हैं, और फिर से चलते हैं। यही संघर्ष हमें सिखाता है कि सफलता कभी आसान नहीं होती, लेकिन वह सबसे अधिक स्वादिष्ट होती है। विचार : "संघर्ष न केवल हमें परिष्कृत करता ह...

60 की उम्र – जीने का सही समय!

60 की उम्र – जीने का सही समय!  ~  आनंद किशोर मेहता "अब अपनी ज़िंदगी को नए रंग दो, क्योंकि असली मज़ा अब शुरू होता है!" 60 की उम्र तक हम ज़िंदगी की भाग-दौड़ में इतना उलझ जाते हैं कि जीना ही भूल जाते हैं। जिम्मेदारियों का बोझ, समाज की अपेक्षाएँ, बच्चों का भविष्य, करियर की ऊँचाइयाँ—इन सबमें उलझते-उलझते कब जवानी बीत जाती है, पता ही नहीं चलता। लेकिन क्या ज़िंदगी का सफर यहीं खत्म हो जाता है? बिल्कुल नहीं! "अब समाज की नहीं, अपने दिल की सुनो—क्योंकि असली जीवन अब शुरू होता है!" 60 की उम्र तो असल में जीवन का स्वर्णिम दौर है। यह वह समय है जब आप अपनी मर्जी से जी सकते हैं, अपने अधूरे सपनों को पूरा कर सकते हैं और ज़िंदगी को अपने अंदाज में फिर से जीने का आनंद उठा सकते हैं। 1. अब दुनिया की चिंता छोड़ो, खुद को जियो! अब तक हमने अपने परिवार, समाज और ज़िम्मेदारियों को निभाने में अपनी इच्छाओं को कहीं पीछे छोड़ दिया था। लेकिन अब समय आ गया है कि हम अपने मन की सुनें! ✔ क्या आप कभी पहाड़ों पर घूमना चाहते थे? ✔ क्या आपको पेंटिंग, संगीत या नृत्य का शौक था? ✔ क्या कभी बिना किसी फ...

विज्ञान + आध्यात्म = संतुलित और सुरक्षित भविष्य

विज्ञान + आध्यात्म = संतुलित और सुरक्षित भविष्य  ~ आनंद किशोर मेहता परिचय आज की दुनिया विज्ञान की चमत्कारी उपलब्धियों से परिपूर्ण है। मानव जाति ने तकनीकी उन्नति के माध्यम से जीवन को आसान बनाया है, परंतु इस प्रगति के साथ मानसिक अशांति, तनाव और आध्यात्मिक शून्यता भी बढ़ी है। क्या विज्ञान और आध्यात्म एक-दूसरे के विरोधी हैं, या इनका समन्वय ही मानवता के उज्जवल भविष्य की कुंजी है? यदि हमें एक संतुलित और सुरक्षित समाज बनाना है, तो इन दोनों का एकीकरण आवश्यक है। विज्ञान और आध्यात्म: परस्पर विरोधी या पूरक? विज्ञान और आध्यात्म को अक्सर दो अलग दिशाओं में चलता हुआ समझा जाता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि ये दोनों एक ही सत्य के विभिन्न पहलू हैं। विज्ञान भौतिक जगत के रहस्यों को खोजता है, जबकि आध्यात्म हमारे आंतरिक जीवन और चेतना के रहस्यों को उजागर करता है। जब ये दोनों एक साथ चलते हैं, तो मानव जीवन संतुलित और समृद्ध बनता है। "तकनीक और संवेदनशीलता साथ चलें, तभी दुनिया सुरक्षित होगी।" विज्ञान की भूमिका विज्ञान ने हमें चिकित्सा, संचार, अंतरिक्ष अन्वेषण और आधुनिक जीवनशैली जै...

तू हारकर भी विजेता है

तू हारकर भी विजेता है  ~ आनंद किशोर मेहता जीवन में हार और जीत केवल बाहरी घटनाएँ नहीं हैं, बल्कि ये हमारी आंतरिक स्थिति को भी परिभाषित करती हैं। अक्सर लोग हार को अंत समझ लेते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि हर हार अपने भीतर एक नई जीत की संभावना समेटे होती है। जब तक हम प्रयास करना नहीं छोड़ते, तब तक कोई भी हार अंतिम नहीं होती। "हार कोई अंत नहीं, यह तो बस एक नया आरंभ है!" वैज्ञानिक दृष्टिकोण थॉमस एडिसन का उदाहरण लें, जिन्होंने 1000 से अधिक बार असफल होने के बाद बल्ब का आविष्कार किया। जब उनसे पूछा गया कि इतनी बार विफल होने के बावजूद उन्होंने हार क्यों नहीं मानी, तो उन्होंने उत्तर दिया, "मैं असफल नहीं हुआ, मैंने 1000 ऐसे तरीके खोजे जो काम नहीं करते थे।" यही असली जीत है—असफलताओं से सीखकर आगे बढ़ना। "असली हार तब होती है जब हम प्रयास करना छोड़ देते हैं।" दार्शनिक दृष्टिकोण सुकरात, जिन्होंने तर्क और विचारशीलता से समाज को नई दिशा दी, उन्हें भी अपनी सत्यनिष्ठा के कारण विष का प्याला पीना पड़ा। उनकी मृत्यु को उनके विरोधियों ने जीत समझा, लेकिन उनके विच...

प्रकृति की सुंदरता: एक अनुपम एहसास

प्रकृति की सुंदरता: एक अनुपम एहसास   ~ आनंद किशोर मेहता प्रकृति स्वयं में एक महान कलाकार है, जिसकी कूची से निकली हर रचना अनूठी और अनुपम होती है। जब हम प्रकृति की सुंदरता को देखते हैं, तो मन एक असीम शांति और आनंद का अनुभव करता है। हरी-भरी वादियाँ, ऊँचे पर्वत, कलकल बहती नदियाँ, सुरम्य झरने, रंग-बिरंगे फूल, चहचहाते पक्षी—ये सब मिलकर एक ऐसा संसार रचते हैं, जिसमें आत्मा को सुकून और हृदय को स्फूर्ति मिलती है। "फूलों की तरह खिलो, नदियों की तरह बहो, और पेड़ों की तरह धरती से जुड़े रहो।" प्राकृतिक सौंदर्य का महत्व प्राकृतिक सुंदरता केवल आँखों को लुभाने का साधन नहीं है, बल्कि यह हमारे भीतर सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी करती है। जब हम प्रकृति के सान्निध्य में होते हैं, तो हमारी चिंताओं का भार हल्का हो जाता है। वैज्ञानिक भी मानते हैं कि हरे-भरे स्थानों में समय बिताने से मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है और जीवन में संतुलन बना रहता है। "जब मन व्याकुल हो, तो प्रकृति की ओर देखो—हर वृक्ष, हर लहर, हर झोंका शांति का संदेश देता है।" प्रकृति से जुड़ाव: आत्मिक अनुभव जो व्यक्ति प्रकृति ...

बच्चों की निश्चल प्रेम और संस्कारों की छाँव

बच्चों की निश्चल प्रेम और संस्कारों की छाँव  ~ आनंद किशोर मेहता बच्चे समाज का भविष्य होते हैं। उनकी मासूमियत, सरलता और निष्कपट प्रेम हमें सच्चे प्रेम और आत्मीयता का एहसास कराते हैं। जिस प्रकार एक पीपल का वृक्ष अपनी छाँव, शीतलता और प्राणवायु से संसार को संजीवनी प्रदान करता है, उसी प्रकार यदि बच्चों को अच्छे संस्कारों से पोषित किया जाए, तो वे भी समाज के लिए जीवनदायी बन सकते हैं। संस्कार और बच्चों का पवित्र प्रेम संस्कार हमारे जीवन के वे मूल्य होते हैं, जो हमें सही और गलत का भेद सिखाते हैं। एक अच्छे विद्यालय का कार्य केवल शिक्षा देना नहीं, बल्कि बच्चों में उत्कृष्ट संस्कारों का संचार करना भी है। जब बच्चे इन मूल्यों से सिंचित होते हैं, तो उनका प्रेम और भी पवित्र और सार्थक हो जाता है। संस्कारों की जड़ें और बच्चों की विशेषताएँ सम्मान और स्नेह जब बच्चे यह सीखते हैं कि माता-पिता, गुरुजन, मित्रों और समाज के सभी लोगों का सम्मान करना चाहिए, तो वे सच्चे प्रेम की परिभाषा को समझ पाते हैं। उनका यह स्नेह आदर और आत्मीयता से परिपूर्ण होता है। करुणा और सहयोग का भाव संस्कार बच्चों को यह स...

बच्चों के साथ अटूट प्रेम: सफलता और सुख का आधार

बच्चों के साथ अटूट प्रेम: सफलता और सुख का आधार ~ आनंद किशोर मेहता परिचय बचपन जीवन का सबसे कोमल और संवेदनशील चरण होता है। जिस प्रकार एक बीज को उपयुक्त मिट्टी, जल और प्रकाश मिलने पर वह एक विशाल, फलदायी वृक्ष में परिवर्तित हो जाता है, उसी प्रकार बच्चों का सर्वांगीण विकास भी प्रेम, स्नेह और सतत मार्गदर्शन पर निर्भर करता है। सच्चा प्रेम केवल एक भावना नहीं, बल्कि बच्चों की आत्मा को संवारने वाली सबसे शक्तिशाली ऊर्जा है। यह न केवल उन्हें आत्मनिर्भरता और निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करता है, बल्कि उनके मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक, सामाजिक और आध्यात्मिक विकास की भी आधारशिला रखता है। अटूट प्रेम: बच्चों के विकास की जड़ें बच्चों के प्रति अटूट प्रेम का अर्थ केवल उन्हें स्नेह देना नहीं, बल्कि उनके चहुंमुखी विकास के लिए एक सुरक्षित, प्रेरणादायक और पोषण देने वाला वातावरण प्रदान करना है। यह प्रेम उनके व्यक्तित्व को आकार देता है, आत्मविश्वास से भरता है और जीवन के हर मोड़ पर उन्हें सशक्त बनाता है। 1. आत्मनिर्भरता और निर्णय लेने की क्षमता जब बच्चे प्रेम और विश्वास से घिरे होते हैं, तो उनमें आत...

माता-पिता और संतान का सच्चा कर्तव्य

माता-पिता और संतान का सच्चा कर्तव्य ~ आनंद किशोर मेहता माता-पिता और संतान का संबंध केवल प्रेम और भावनाओं का नहीं, बल्कि कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का भी होता है। अगर कोई माता-पिता सिर्फ उपहार देकर या मीठी बातें कहकर अपने फर्ज से बचना चाहें, या संतान केवल दिखावे के प्रेम से माता-पिता को खुश करने की कोशिश करे, तो यह उनके वास्तविक कर्तव्य से विमुख होना है। माता-पिता का कर्तव्य संस्कार और मार्गदर्शन – बच्चों को नैतिकता, अनुशासन और आत्मनिर्भरता सिखाना। समय और सहयोग – केवल भौतिक सुख नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक सहयोग देना। स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता – बच्चों को जीवन में संघर्ष के लिए तैयार करना। संतान का कर्तव्य सम्मान और सेवा – माता-पिता के प्रति सच्चा आदर और उनकी देखभाल करना। समय देना – व्यस्तता के बावजूद माता-पिता के साथ समय बिताना। भावनात्मक और आर्थिक संबल – उम्र बढ़ने पर उन्हें सुरक्षा और सहारा देना। भावार्थ माता-पिता और संतान दोनों को एक-दूसरे के प्रति अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाना चाहिए। केवल उपहारों और दिखावे से नहीं, बल्कि सच्चे प्रेम, सेवा...

भोग और योग: जीवन की पूर्णता का रहस्य

भोग और योग: जीवन की पूर्णता का रहस्य ~ आनंद किशोर मेहता मनुष्य दो ध्रुवों के बीच जीता है—भोग और योग। भोग जीवन के अनुभवों को समेटने की कला है, तो योग इन अनुभवों से शांति और संतुलन प्राप्त करने की विधि। लेकिन क्या इनमें से कोई एक ही सही मार्ग है? नहीं। सही सुख न केवल भोग में है, न केवल योग में—बल्कि इन दोनों के संतुलन में है । भोग: जीवन की सुगंध, लेकिन अधूरी भोग हमें आनंदित करता है। यह हमें अनुभवों से समृद्ध करता है, रिश्तों से जोड़ता है, उपलब्धियों की ऊँचाई तक ले जाता है। यह दुनिया की सबसे आकर्षक शक्ति है, लेकिन यह अकेले पर्याप्त नहीं है। क्योंकि हर इच्छा पूरी होते ही एक नई प्यास जन्म लेती है । सुख की खोज अनंत हो जाती है, और हम एक ऐसी दौड़ में शामिल हो जाते हैं, जिसका कोई अंत नहीं। जो कल आनंद देता था, वह आज साधारण लगता है। भोग बुरा नहीं है, लेकिन यदि हम इसे ही अंतिम सत्य मान लें, तो यह हमें थका देता है । "भोग जीवन को रंग देता है, योग उसे अर्थ देता है।" योग: भीतर की शांति का स्पर्श जब जीवन के भोग हमें अधूरेपन का अहसास कराने लगते हैं, तब योग की यात्रा शुर...

साधना की शक्ति: सफलता और आत्मविकास का मार्ग

साधना की शक्ति: सफलता और आत्मविकास का मार्ग ~ आनंद किशोर मेहता "साधना वह प्रक्रिया है, जो साधारण को असाधारण बना देती है।" साधना केवल आध्यात्मिकता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त करने का सबसे महत्वपूर्ण साधन है। शिक्षा, खेल, कला, विज्ञान या व्यवसाय—हर क्षेत्र में साधना की शक्ति व्यक्ति को ऊँचाइयों तक पहुँचाती है। यह केवल एक कार्य नहीं, बल्कि अनुशासन, निरंतर अभ्यास और स्वयं को लगातार बेहतर बनाने की प्रक्रिया है। साधना का वास्तविक अर्थ साधना का अर्थ है—किसी लक्ष्य को पाने के लिए निरंतर अभ्यास करना और उसमें पूर्णता हासिल करना। यह कोई चमत्कार नहीं, बल्कि नियमित प्रयास, धैर्य और आत्मसंयम का परिणाम है। प्रेरणादायक उदाहरण: सचिन तेंदुलकर बचपन में दिन में 12-14 घंटे अभ्यास करते थे, जिससे वे क्रिकेट के दिग्गज बने। लता मंगेशकर ने हजारों बार रियाज़ किया, जिससे उनकी आवाज़ विश्वभर में गूँजने लगी। एपीजे अब्दुल कलाम ने असफलताओं के बावजूद अपने शोध और मेहनत को जारी रखा, जिससे वे भारत के मिसाइल मैन कहलाए। अल्बर्ट आइंस्टीन गणित और भौ...

सत्य और प्रकाश का संघर्ष: क्यों अंधकार रूठ जाता है?

सत्य और प्रकाश का संघर्ष: क्यों अंधकार रूठ जाता है? ~ आनंद किशोर मेहता भूमिका "सत्य और प्रकाश का मार्ग चुनना जितना सरल दिखता है, उतना ही चुनौतीपूर्ण होता है। जैसे ही व्यक्ति ज्ञान और सच्चाई की ओर बढ़ता है, अंधकार उसे रोकने का हर संभव प्रयास करता है।" अंधकार केवल रोशनी की अनुपस्थिति नहीं, बल्कि एक मानसिक और आत्मिक स्थिति भी है। जब कोई व्यक्ति सत्य, ज्ञान और नैतिकता की ओर अग्रसर होता है, तो वे शक्तियाँ जो अंधकार में जीने की अभ्यस्त हैं, इसका विरोध करने लगती हैं। सत्य का प्रकटीकरण अज्ञान और स्वार्थ पर आघात करता है, इसलिए विरोध स्वाभाविक है। अंधकार का स्वभाव: क्यों वह रूठता है? अंधकार का स्वभाव अपने अस्तित्व को बचाने का है। जब कोई प्रकाश जलाता है, तो अंधकार को हटना ही पड़ता है, और यह उसे स्वीकार नहीं होता। परिवर्तन का भय – सत्य परिवर्तन लाता है, और लोग परिवर्तन से डरते हैं क्योंकि यह उनकी जड़ता को तोड़ता है। स्वार्थ और अहंकार – जो अंधकार से लाभ उठाते हैं, वे सत्य को स्वीकार नहीं कर सकते, क्योंकि यह उनके स्वार्थ पर चोट करता है। मोह और अज्ञान – अंधकार में र...

गुरु-शिष्य संबंध: ज्ञान से जीवन के प्रकाश तक

गुरु-शिष्य संबंध: ज्ञान से जीवन के प्रकाश तक भूमिका गुरु-शिष्य का संबंध केवल शिक्षा तक सीमित नहीं, बल्कि यह जीवन का आधार और आत्मिक विकास की नींव है। गुरु केवल एक शिक्षक नहीं, बल्कि वह दीपक है जो अज्ञान के अंधकार को मिटाकर शिष्य को प्रकाश की ओर ले जाता है। यह संबंध केवल शब्दों का नहीं, बल्कि अनुभव, अनुशासन और आंतरिक चेतना का सेतु है। प्राचीन से आधुनिक तक: बदलता स्वरूप गुरुकुल युग: तप और समर्पण शिष्य अपने अहंकार, स्वार्थ और अज्ञान को त्यागकर गुरु की शरण में जाता था। शिक्षा केवल ज्ञान नहीं, बल्कि आत्मबोध और कर्तव्यबोध का माध्यम थी। गुरु, शिष्य के जीवन का वह शिल्पकार था, जो उसे हीरे की तरह तराशता था। "गुरु की छाया में बैठा शिष्य, तपस्वी की तरह ज्ञान की अग्नि में जलता था और एक दैदीप्यमान रत्न बनकर निकलता था।" आधुनिक युग: तकनीक और नई सोच के साथ संबंध कक्षाएँ डिजिटल हो गईं, लेकिन गुरु की भूमिका आज भी अमूल्य बनी हुई है। शिक्षक अब केवल पढ़ाने वाले नहीं, बल्कि कोच, मार्गदर्शक और मनोवैज्ञानिक भी हैं। शिक्षा अब केवल पाठ्यक्रम तक सीमित नहीं, बल्कि इनोवेशन, क्रि...

"वचन की शक्ति: एक संकल्प जो नियति बदल दे"

" वचन की शक्ति: एक संकल्प जो नियति बदल दे" ~ आनंद किशोर मेहता भूमिका शब्दों में गहरी शक्ति होती है। एक सही वचन, सही समय पर, सही व्यक्ति द्वारा कहा गया, किसी के जीवन को पूरी तरह बदल सकता है। जब श्रद्धा और समर्पण के साथ कोई वचन स्वीकार किया जाता है, तो वह केवल शब्द नहीं रहता, बल्कि भाग्य की धारा को मोड़ने वाली शक्ति बन जाता है। "एक सच्चा वचन केवल शब्द नहीं, बल्कि भाग्य की रचना करता है।" इतिहास गवाह है कि जिसने भी संपूर्ण श्रद्धा से किसी एक वचन को अपनाया, उसने असंभव को भी संभव बना दिया। यही शक्ति 'एक वचन' में निहित होती है। 1. आध्यात्मिक मार्गदर्शन में वचन की शक्ति आध्यात्मिकता में गुरु, भगवान या किसी उच्च चेतना के प्रति संपूर्ण समर्पण महत्वपूर्ण होता है। जब कोई भक्त कहता है— "तेरे एक वचन की शक्ति," तो इसका अर्थ है कि वह पूर्ण रूप से उस दिव्य वाणी पर विश्वास करता है। श्रीराम और केवट की कथा इसका सुंदर उदाहरण है। केवट जानता था कि श्रीराम के चरण कमल का स्पर्श ही उसके समस्त जन्मों का उद्धार कर सकता है। इसलिए वह पहले उनके चरण धोना चा...

बच्चों पर होमवर्क और स्कूली शिक्षा का बोझ

बच्चों पर होमवर्क और स्कूली शिक्षा का बोझ  ~ आनंद किशोर मेहता आज की शिक्षा प्रणाली बच्चों के संपूर्ण विकास के बजाय उन पर पढ़ाई और होमवर्क का भारी बोझ डाल रही है। स्कूल से लौटने के बाद भी बच्चे असाइनमेंट और रटने में उलझे रहते हैं, जिससे उनका खेल-कूद, रचनात्मकता और पारिवारिक समय प्रभावित होता है। समस्या के मुख्य कारण अत्यधिक होमवर्क – पढ़ाई का बोझ इतना बढ़ गया है कि बच्चों को आराम का समय ही नहीं मिलता। रचनात्मकता और खेल की कमी – खेल और अन्य गतिविधियों को पढ़ाई से कम महत्वपूर्ण समझा जाता है, जबकि वे मानसिक और शारीरिक विकास के लिए ज़रूरी हैं। मानसिक तनाव – पढ़ाई के दबाव से बच्चे चिड़चिड़े और तनावग्रस्त होने लगे हैं। समाधान सीमित और उपयोगी होमवर्क दिया जाए ताकि बच्चे अन्य गतिविधियों में भी भाग ले सकें। खेल-कूद और रचनात्मकता को बढ़ावा दिया जाए ताकि शिक्षा बोझ न लगे। स्मार्ट लर्निंग और रुचिकर शिक्षण पद्धतियाँ अपनाई जाएँ जिससे बच्चे पढ़ाई का आनंद ले सकें। माता-पिता और शिक्षक बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान दें ताकि वे तनावमुक्त और खुशहाल रह सकें। निष्...

Find the Way: मार्ग खोजें

Find the Way: मार्ग खोजें  ~ आनंद किशोर मेहता भूमिका: जीवन एक अनंत यात्रा है, जहाँ हर मोड़ पर हमें अपना मार्ग स्वयं खोजना पड़ता है। कभी राह स्पष्ट होती है, तो कभी धुंध में खो जाती है। लेकिन जो मार्ग खोजने का साहस रखते हैं, वे ही अपने लक्ष्य तक पहुँचते हैं। मार्ग खोजने की आवश्यकता क्यों? हर व्यक्ति अपने जीवन में किसी न किसी लक्ष्य की ओर बढ़ रहा होता है। लेकिन जब राह स्पष्ट नहीं होती, तो मन भ्रमित हो जाता है। इस भ्रम को दूर करने और सही दिशा में आगे बढ़ने के लिए हमें अपने मार्ग की खोज करनी पड़ती है। मार्ग खोजने के उपाय: 1. स्वयं को जानो (Know Yourself) मार्ग खोजने से पहले यह समझना जरूरी है कि हमें जाना कहाँ है। आत्मचिंतन करें, अपने उद्देश्य को पहचानें और अपनी क्षमताओं को समझें। 2. सही प्रश्न पूछो जब रास्ता न दिखे, तो स्वयं से प्रश्न करो— क्या मैं सही दिशा में जा रहा हूँ? क्या यह मार्ग मुझे मेरे लक्ष्य तक ले जाएगा? मुझे क्या बदलने की जरूरत है? 3. ज्ञान प्राप्त करो सही मार्ग खोजने के लिए ज्ञान आवश्यक है। पुस्तकों, अनुभवी व्यक्तियों, प्रकृति और आत्मचिंतन से स...

साँवले रंग की कीमत

साँवले रंग की कीमत ~ आनंद किशोर मेहता परिचय सौंदर्य की परिभाषा समय के साथ बदलती रही है। कभी गोरा रंग श्रेष्ठता और आकर्षण का प्रतीक माना गया, तो कभी साँवला और गहरा रंग गरिमा, शक्ति और रहस्य का। लेकिन क्या सुंदरता केवल त्वचा के रंग तक सीमित है? क्या किसी व्यक्ति का मूल्य उसकी सोच, चरित्र और कर्म से अधिक उसके बाहरी रूप पर निर्भर करता है? यह लेख समाज में व्याप्त इस मानसिकता की पड़ताल करता है और साँवले रंग की वास्तविक कीमत को उजागर करता है। सौंदर्य का वास्तविक पैमाना सौंदर्य केवल बाहरी रंग-रूप से परिभाषित नहीं होता, बल्कि यह आत्मविश्वास, आचरण और व्यक्तित्व की आभा में प्रकट होता है। साँवले रंग वाले लोग भी उतने ही सम्मान और गरिमा के अधिकारी हैं, जितने किसी अन्य रंग के व्यक्ति। इतिहास साक्षी है कि महात्मा गांधी, नेल्सन मंडेला, बाबा साहेब अंबेडकर और ए. पी. जे. अब्दुल कलाम जैसे महान व्यक्तित्वों का रंग गोरा नहीं था, लेकिन उनके विचारों और कार्यों की रोशनी ने पूरे विश्व को आलोकित किया। उन्होंने यह सिद्ध किया कि असली पहचान रंग में नहीं, बल्कि ज्ञान, संघर्ष और कर्म में होती है। स...

बच्चों की ड्राइंग: उनकी कल्पना और अभिव्यक्ति की उड़ान

बच्चों की ड्राइंग: उनकी कल्पना और अभिव्यक्ति की उड़ान " हर बच्चा अपनी कल्पना की उड़ान में एक कलाकार होता है – बस उसे रंग भरने की आज़ादी चाहिए।" बच्चों की ड्राइंग केवल रंगों और रेखाओं का मेल नहीं होती, बल्कि यह उनकी कल्पनाशक्ति, भावनाओं और सोचने की प्रक्रिया को व्यक्त करने का सबसे सरल और सुंदर माध्यम है। जब बच्चे कागज पर रंग भरते हैं, तो वे अपनी दुनिया को अपने तरीके से उकेरते हैं—कभी वे परियों के देश की यात्रा करते हैं, तो कभी अपने परिवार की तस्वीर बनाकर प्यार जताते हैं। 1. बच्चों की ड्राइंग: रचनात्मकता का द्वार हर बच्चा अपनी दुनिया को अनोखे ढंग से देखता और व्यक्त करता है। ड्राइंग के ज़रिए वे अपनी कल्पनाओं को आकार देते हैं—कभी वे बादलों में उड़ता घर बनाते हैं, तो कभी हंसते हुए पेड़ और बात करते सूरज को चित्रित करते हैं। यह उनकी स्वतंत्र सोच और रचनात्मक विकास का प्रतीक है। "बच्चों की कल्पना अनमोल है, बस उन्हें रंगों से खेलने दो।" 2. भावनाओं की अभिव्यक्ति बच्चे जब बोलकर अपनी भावनाएँ व्यक्त नहीं कर पाते, तो वे उन्हें चित्रों में उकेरते हैं। अगर ...